अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

पुस्‍तक: कश्‍मीर मेरी जान:कश्‍मीर में मुठभेड़ या एनकाउंटर के नाम पर निर्दोषों को मार देना सामान्‍य-सी बात

Share

वास्‍तविकता यह है कि कश्‍मीर को सेना के हवाले कर दिया गया है। वहां सारे अधिकार एक तरह से सेना के हाथ में हैं। 5 अगस्‍त 2019 को कश्‍मीर को जम्‍मू-कश्‍मीर तथा लद्दाख में बांट कर राष्‍ट्रपति शासन लगा दिया गया है। वह भी कोई समाधान नहीं है।सबसे दुखद है कि वहां निर्दोष कश्‍मीरी नागरिकों को खास कर युवाओं को विद्रोही या आतंकवादी या हाईब्रिड बताकर सेना द्वारा हलाक कर दिया जाता है। कई बार वहां मज़दूरी करने गए कश्‍मीर से बाहर के मज़दूरों को भी आतंकी बता कर मार दिया जाता है।वहां मुठभेड़ या एनकाउंटर के नाम पर निर्दोषों को मार देना सामान्‍य-सी बात हो गई है।

राज वाल्‍मीकि 

कहते हैं कि दुनिया में कहीं स्‍वर्ग या जन्‍नत है तो वह है – कश्‍मीर। पर दुर्योग से कश्‍मीर के वास्‍तविक जीवन पर पर चचा ग़ालिब का यह शेर भी मौजू हैं कि हमें मालूम है जन्‍नत की हक़ीकत लेकिन कवि और राजनीतिक विश्‍लेषक अजय सिंह ने कश्‍मीर पर अपनी चिंता व्‍यक्‍त करते हुए अपनी यह पुस्‍तक ‘कश्‍मीर मेरी जान’ लिखी है। कश्‍मीर में जो होना चाहिए वह हो नहीं रहा है और जो हो रहा है वह होना नहीं चाहिए। अजय सिंह कहते हैं कि कश्‍मीर हमारे दिमागी नक्‍शे से ग़ायब न हो, वह हमारी चिंता में बना रहे… कश्‍मीर को गैर-हिंदुत्‍ववादी नजरिया चाहिए। उसे स्‍वतंत्रता, समानता और बंधुत्‍व पर आधारित नजरिया चाहिए।

पर वास्‍तविकता यह है कि कश्‍मीर को सेना के हवाले कर दिया गया है। वहां सारे अधिकार एक तरह से सेना के हाथ में हैं। 5 अगस्‍त 2019 को कश्‍मीर को जम्‍मू-कश्‍मीर तथा लद्दाख में बांट कर राष्‍ट्रपति शासन लगा दिया गया है। वह भी कोई समाधान नहीं है।सबसे दुखद है कि वहां निर्दोष कश्‍मीरी नागरिकों को खास कर युवाओं को विद्रोही या आतंकवादी या हाईब्रिड बताकर सेना द्वारा हलाक कर दिया जाता है। कई बार वहां मज़दूरी करने गए कश्‍मीर से बाहर के मज़दूरों को भी आतंकी बता कर मार दिया जाता है।वहां मुठभेड़ या एनकाउंटर के नाम पर निर्दोषों को मार देना सामान्‍य-सी बात हो गई है।

लेखक की चिंता है कि कश्‍मीर में जब तक मुठभेड़ों पर रोक नहीं लगती, हर मुठभेड़ की न्‍यायिक जांच नहीं कराई जाती, और सेना को बैरक में लौटने का आदेश नहीं दिया जाता, तब तक कश्‍मीर में खून-खराबा रोक पाना नामुमकिन है। जो कश्‍मीरी मारे गए और जो मारे जा रहे हैं वे भारतीय नागरिक हैं – यह भूलना नहीं चाहिए।

कश्‍मीर में जारी हिंसा निश्चित रूप से चिंता का विषय है पर इस पर नियंत्रण के लिए राजनीतिक प्रयास नहीं हो रहा है।

कश्‍मीर में शांति की स्‍थापना के लिए वहां की जनता को विश्‍वास में लेकर राजनीतिक प्रक्रिया तेज की जानी चाहिए और भारतीय सेना को पीछे किया जाना चाहिए व उसकी गतिविधियों और कार्रवाईयों को सख्‍ती से नियंत्रित किया जाना चाहिए।

कश्‍मीर के बारे में कई बार जिम्‍मेदार व्‍यक्तियों के बयान बड़े ही चौंकाने वाले और चिंतनीय होते हैं जैसे कि चीफ ऑफ डिफेंस स्‍टाॅफ (सेना, नौसेना व वायुसेना के मुख्यिा) जनरल विपिन रावत के बयान पर लेखक चिंता व्‍यक्‍त करते हैं जिस में रावत एक टीची चैनल को दिए गए इंटरव्‍यू में कहते हैं ‘ ”जम्‍मू-कश्‍मीर के स्‍थानीय लोग कह रहे हैं कि हम आ‍तंकवादियों को लिंच कर देंगे, और यह बहुत सकारात्‍मक संकेत है…अगर कोई आतंकवादी आपके इलाके में सक्रिय है, तो उसे क्‍यों नहीं लिंच कर दिया जाना चाहिए?’’

गौरतलब है कि ऐसे ख़तरनाक बयान पर भी कोई राजनीतिक हलचल नहीं होती यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी स्‍वत: संज्ञान नहीं लेता। यह स्थिति निसंदेह चिंताजनक है।

केंद्र का कश्‍मीरी जनता के साथ भेदभाव साफ नजर आता है। लेखक सवाल करते हैं कि नगालैंड में सेना पर एफआईआर दर्ज हो सकती है तो कश्‍मीरी सेना पर क्‍यों नहीं?

दरअसल कश्‍मीर की राजनीति पर हिंदुत्‍ववादी राजनीतिक सोच हावी है। पूर्व नियोजित तरीके से हिंदुत्‍व की ताकतों का ऐसा हिंसक प्रदर्शन- जो अल्‍पसंख्‍यकों को निशाना बना कर किया जाता है और जिसे राजसत्ता का समर्थन मिला होता है- कश्‍मीरी जनता को भारत से और गहरे अलगाव में डालता है।

काबिले गौर है कि 14फरवरी 2019 को कश्‍मीर में जो पुलवामा कांड हुआ जिसमें 50 से अधिक सैनिक मारे गए उसके बाद से पूरे देश में- खासकर हिंदी-उर्दू पट्टी के राज्‍यों में- कश्‍मीर छात्र-छात्राओं, अध्‍यापकों, व्‍यापारियों, दुकानदारों और मज़दूरों पर- जो सबके सब सब मुसलमान हैं- जिस तरह हिंदुत्‍व फासीवादियों की तरफ से जो हिंसक हमले हुए, वह स्‍तब्‍धकारी और शर्मनाक हैं।

कश्‍मीर पर हिंदुत्‍ववादी विचारधारा थोपने के लिए ही 5 अगस्‍त 2019 को कश्‍मीर के विशेष राज्‍य का दर्जा देने वाले अनुच्‍छेद 370 को समाप्‍त कर दिया गया। उसे जम्‍मू-कश्‍मीर और लद्दाख में बांट कर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। क्‍या कश्‍मीर के साथ यह सुलूक इसलिए किया गया कि वह मुस्लिम बहुत इलाका है। अब कश्‍मीर घाटी की हालत वह है जो इजरायली यहूदीवाद ने फिलिस्‍तीन की कर रखी है।

पुस्‍तक: कश्‍मीर मेरी जान

लेखकअजय सिंह

प्रकाशकगुलमोहर किताब, 55 सी पॉकेट4,

मयूर विहार-1, दिल्‍ली-110091

मूल्‍य: 200 रुपये

पृष्ठ: 100

प्रथम संस्‍करण: 2024

लेखक का मत है कि कश्‍मीर मसले पर कश्‍मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता यासीन मलिक को जेल से रिहा कर उनके साथ भारत, पाकिस्‍तान व कश्‍मीरी जनता के बीच (त्रिपक्षीय) बातचीत हो, तभी कश्‍मीरी मसले का शांतिपूर्ण तरीके से समाधान हो सकता है। (गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में 2 जुलाई 1972 को पाकिस्‍तान के तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति जुल्फिकार भुट्टो और तत्‍कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘शिमला समझौते’ के अंतर्गत भारत वाले कश्‍मीर को विवाद का मुद्दा माना गया था और जम्‍मू-कश्‍मीर का अंतिम समाधान ढूंढने की बात कही गई है।)

पुस्‍तक पढ़ते हुए एक बात की कमी खलती है- वह है कश्‍मीरी पंडितों के मुद्दे पर पुस्‍तक में एक भी लेख नहीं होना। भले ही कश्‍मीर में कश्‍मीरी पंडित अल्‍पसंख्‍यक हैं पर कश्‍मीरी पंडितों का मुद्दा भी बीच-बीच में उठता रहा है उस पर भी कम से कम एक लेख में लेखक के विचार आने चाहिए थे।

लेखक इस पुस्‍तक में कई सवाल उठाते हैं जैसे- क्‍या कश्‍मीर में लोकतंत्र है? ‘हाइब्रिड मिलिटेंट’ कौन हैं? कश्‍मीर को क्‍या भारत जोड़ो यात्रा जोड़ पायेगी? क्‍या कश्‍मीर को उसका अपना कश्‍मीर वापस मिल सकता है, जिसे प्रधानमंत्री के नेतृत्‍व में केंद्र की हिंदुत्‍ववादी भारतीय जनता पार्टी सरकार ने 5 अगस्‍त 2019 को छीन लिया था और जिसे सुप्रीमकोर्ट ने चार साल बाद 11 दिसंबर 2023 को अपने फैसले में जायज और वैध बना दिया?

लेखक कश्‍मीर और उसकी जनता के प्रति संवेदनशील हैं और वहां मारे जा रहे निर्दोष कश्‍मीरी युवाओं के प्रति उनकी चिंता वाजिब है। लेखक कश्‍मीर में सेना की तानाशाही से भी दुखी नजर आते हैं। सेना किसी की व्‍यक्ति को ‘आतंकवादी’ ठहरा देती है, फर्जी मुठभेड़ या एनकांउटर में उसकी हत्‍या कर देती है और कहीं कोई सुनवाई नहीं।

इसलिए लेखक अपनी पुस्‍तक मे कश्‍मीर मुद्दे पर सैनिक समाधान की नहीं बल्कि राजनीतिक समाधान की वकालत करते हैं। अन्‍य भारतीय राज्‍यों की तरह जम्‍मू-कश्‍मीर भी लोकतांत्रिक राज्‍य बने यही लेखक की कामना है और होनी भी यही चाहिए। कश्‍मीर के विभिन्‍न पहलुओं के बारे में विस्‍तृत जानकारी रखने के इच्‍छुक पाठकों को पुस्‍तक पढ़नी चाहिए।

Add comment

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें