पेरियार ई. वी. रामासामी शब्द समूह में पेरियार का मतलब है– महान। उन्हें यह उपाधि महिलाओं ने दी। इसकी वजह पेरियार का आत्मसम्मान आंदोलन रहा, जिसने स्त्रियों को न केवल पुरुषों के बराबर माना, बल्कि स्त्री-पुरुष के बीच मैत्रीपूर्ण जीवन को स्थापित किया। दरअसल, पेरियार का पूरा जीवन ही समतामूलक समाज की स्थापना के लिए था। हालांकि उत्तर भारत में आंबेडकर अब व्यापक स्तर पर जाने जाते हैं। उनकी तुलना में जोतीराव फुले और पेरियार के बारे में कम ही लोग जानते हैं। इसकी भी वजह रही है और वजह यह कि आंबेडकर की कर्मभूमि महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली तक रही। इसके अलावा एक बड़ी वजह यह भी रही कि आंबेडकर ने अपना अधिकांश लेखन अंग्रेजी में किया, जिनका हिंदी अनुवाद भी आसानी से होता चला गया और आंबेडकर के विचारों का फैलाव उत्तर भारत में हुआ। हालांकि यह भी एक सत्य ही है कि अभी भी आंबेडकर के बारे में उत्तर भारत का एक बड़ा वर्ग केवल उनके नाम से परिचित है। आंबेडकरवाद उन्हें छू तक नहीं पाया है।
इसके विपरीत पेरियार उत्तर भारत के लिए अभी भी दक्षिण भारत के पेरियार हैं। मूल रूप से दो वजहें रहीं। पहली वजह तमिल भाषा, जिसमें पेरियार ने मूल रूप से अपना लेखन किया। हालांकि पेरियार की कुछ अहम रचनाएं 1960 तक अंग्रेजी में उपलब्ध हो चुकी थीं। इनमें उनकी एक पुस्तक थी– ‘रामायण : अ ट्रू रीडिंग’। हिंदी में इसका अनुवाद ‘सच्ची रामायण’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। इसका प्रकाशन ललई सिंह यादव ने किया, जिन्हें बाद में पेरियार ललई सिंह यादव कहा गया।
‘सच्ची रामायण’ के प्रकाशन ने उत्तर भारत में हलचल मचा दी थी। उत्तर प्रदेश हुकूमत ने ‘सच्ची रामायण’ पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन ललई सिंह यादव ने हार नहीं मानी। उन्होंने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाई कोर्ट ने न केवल प्रतिबंध को खारिज किया बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार को डांट भी लगायी। इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची। लेकिन वहां भी उसे मुंह की खानी पड़ी।
इस पूरे प्रकरण ने ललई सिंह यादव का काम आसान कर दिया था। दरअसल, द्विज वर्गों के विरोध और अदालती हस्तक्षेपों के कारण ‘सच्ची रामायण’ को पर्याप्त चर्चा मिली। लेकिन यदि हम आज के दौर के लिहाज से चिंतन करें तो हम पाते हैं कि उत्तर भारत में पेरियार के विचारों पर अघोषित रूप से प्रतिबंध ही है। उत्तर भारत के विद्यालयों के पाठ्यक्रमों को तो छोड़ ही दें विश्वविद्यालयों में भी पेरियार के विचारों को शायद ही कहीं शामिल किया गया हो।
इस तरह हम देखें तो पेरियार के विचारों को उत्तर भारत के लोगों तक पहुंचाने की हर कोशिश महत्वपूर्ण है। हाल ही में सेतु प्रकाशन, नोएडा द्वारा एक किताब का प्रकाशन किया गया है, जिसका नाम है– ‘पेरियार ई.वी. रामासामी : भारत के वाॅल्टेयर”। इसके लेखक हैं ओमप्रकाश कश्यप। कुल 606 पन्नों की यह किताब इस रूप में भी अलहदा है कि इसमें लेखक ने पेरियार के विचारों का उत्तर भारतीय दृष्टिकोण से विश्लेषण किया है। इसके पहले पेरियार के आलेखों और भाषणों आदि का संग्रह अनेक प्रकाशकों ने अवश्य प्रकाशित किया है। लेकिन विश्लेषणपरक किताब तैयार करने में ओमप्रकाश कश्यप ने कठिन श्रम किया है। इसकी बानगी इस किताब के 12 अध्याय व एक परिशिष्ट है।
किताब की भूमिका दलित समालोचक व चिंतक कंवल भारती ने लिखी है। उनके मुताबिक, “पेरियार के संपूर्ण जीवन संघर्ष को यदि एक नाम देना हो तो वह उनका ‘आत्मसम्मान आंदोलन’ है। लेखक [ओमप्रकाश कश्यप] के इस महत्वपूर्ण शोधकार्य के मूल में ‘आत्मसम्मान आंदोलन’ ही है। हिंदी में यह वस्तुत: पहला ग्रंथ है, जिसमें इतने विस्तार से पेरियार रामासामी के इस क्रांतिकारी आंदोलन को रेखांकित किया गया है।”
दरअसल, पेरियार को यदि हिंदी पट्टी के राज्यों के हिसाब से समझने की कोशिश करें तो वह कबीर की परंपरा के ऐसे संत हैं, जिन्होंने सामाजिक जड़ता को खुलकर चुनौती दी। ‘कुदीआरसु’ जो कि ‘आत्मसम्मान आंदोलन’ का मुखपत्र था, के जरिए पेरियार ने तमिलनाडु के शू्द्र व अति शूद्र वर्ग के लोगों को मुक्तिकामी चेतना से लैस कर दिया। ओमप्रकाश कश्यप ने अपनी किताब में लेखक प्रो. के. रमेश को उद्धृत किया है– “आरंभ में ‘कुदीआरसु’ की लगभग 4000 प्रतियां ही बिक पाती थीं। मगर कम संख्या में प्रकाशित होने के बावजूद वह अपने समय का सबसे प्रभावशाली अखबार था। वह जितना पेरियार के समर्थकों को उत्साहित करता था, उससे कहीं ज्यादा विरोधियों के दिलों को धड़का देता था।”
असल में पेरियार का ‘आत्मसम्मान आंदोलन’ कोई एक आंदोलन नहीं बल्कि अनेक आंदोलनों का समुच्चय था। इसमें शूद्रों व अतिशूद्रों की पर्याप्त भागीदारी के सवाल से लेकर सामाजिक तौर पर छुआछूत का विरोध, द्विज वर्ग के वर्चस्ववाद का विरोध, महिलाओं के अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य तक के सवाल शामिल थे। पेरियार एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थे। इसका बड़ा सबूत उन्होंने 1953 में तब दिया जब राजगोपालाचारी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री थे और वे एक ऐसी शिक्षा नीति बनाना चाहते थे, जो वर्णव्यवस्था आधारित पेशों को स्थापित करता था। पेरियार ने उनका जमकर विरोध किया और विधानसभा में राजगोपालाचारी की सरकार की सारी तिकड़मबाजी विफल हो गई। एक साल बाद 1954 में ही उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। उनके बाद मुख्यमंत्री बने के. कामराज ने राजगोपालाचारी की शिक्षा नीति को पूर्ण रूप से खारिज कर दिया।
ओमप्रकाश कश्यप की खासियत यह है कि पेरियार के विचारों का विश्लेषण करते समय वह किसी तरह की हड़बड़ी नहीं दिखाते। मसलन, किताब के पहले अध्याय “पेरियार ई. वी. रामासामी : भारत के वॉल्टेयर” में करीब 74 पन्नों में उन्होंने पेरियार के जीवन विस्तार से बताया है। गाेया उन्होंने ऐसा करते समय हिंदी पट्टी के राज्यों के लोगों के मन में पेरियार के संबंध में उठनेवाले तमाम सवालों का पहले संकलन किया हो और फिर एक-एक कर उनका जवाब दिया हो। इस तरह का लेखन सहज नहीं होता। किताब का दूसरा अध्याय ‘आत्मसम्मान आंदोलन’ पर केंद्रित है। इसमें भी इस क्रांतिकारी आंदोलन के तमाम आयामों को सामने रखने की कोशिश की गयी है। ओमप्रकाश कश्यप ने पेरियार के भाषणों और आलेखों के अंशों को संदर्भ-सहित उद्धृत कर इसे एक मुकम्मिल दस्तावेज बना दिया है।
किताब के दो अध्याय बेहद खास हैं। एक, ‘स्त्री मुक्ति के संघर्ष में पेरियार का योगदान’ और दूसरा, ‘पेरियार और बुद्ध’। ओमप्रकाश कश्यप ने पेरियार के योगदानों का वर्णन करने के साथ ही उन महिलाओं के संघर्ष को भी पर्याप्त स्पेस दिया है, जिन्होंने पेरियार के आंदोलन में आगे बढ़कर साथ दिया। इनमें अन्नयी नागम्मियार उर्फ नागम्मल (पेरियार की पत्नी), मूवालुर रामामृतअम्मियार (जो पूर्व में देवदासी थीं और बाद में पेरियार के आत्मसम्मान आंदोलन की महत्वपूर्ण कार्यकर्ता बनीं), टी. एस. कुंजीतम गुरुसामी और शिवगामी अम्मियार आदि शामिल हैं। ‘पेरियार और बुद्ध’ शीर्षक अध्याय में ओमप्रकाश कश्यप ने यह बताने की कोशिश की है कि कैसे पेरियार के विचार बुद्ध के विचारों के नजदीक थे।
कुल मिलाकर यह किताब पठनीय है। हालांकि कई जगहों पर दुहराव बोझिल भी है। इसके अलावा पेरियार को ‘भारत का वॉल्टेयर’ कहे जाने के संबंध में अमेरिकी इतिहासकार जॉन रैली की किताब ‘पेरियार : दी एजीटेटिंग फेस ऑफ अनबिलीफ’ के बारे में और विस्तार से जानकारी अपेक्षित प्रतीत होती है। इसके बावजूद यह किताब हर लिहाज से मुकम्मिल है, जो अध्येत्ताओं और पेरियार को जानने की इच्छा रखने वाले जनसामान्य दोनों के लिए आवश्यक है।
समीक्षित किताब : पेरियार ई. वी. रामासामी : भारत के वॉल्टेयर
लेखक : ओमप्रकाश कश्यप
प्रकाशक : सेतु प्रकाशन, नोएडा
मूल्य : 595 रुपए