पुष्पा गुप्ता
_भोले भक्त ट्रोल्स ब्रह्मणिकल सोसायटी का मतलब ऐसे समाज से समझते हैं, जिसमे ब्राह्मण का वर्चस्व हो। इस शब्द को ब्राह्मण वर्चस्व का विरोध मानकर, गालीयुद्ध के लिए जुबान कसने लगते हैं। असल मे इस शब्द का मतलब ऐसा नही।_
ब्रह्मणिजम दरअसल हर जाति है। ठाकुरों की दर्जनों प्रजातियां है, वैश्यों की भी। सबमे ऊंच नीच है। यहां तक कि ब्राह्मण कहे जाने वालों में भी दर्जनों प्रजातियां है।
कोई सरयूपारी है कोई कान्यकुब्ज कोई मैथिल कोई सारस्वत, कोई उत्कल कोई गौड़.. आदि आदि आदि। आप जानते हैं, इनमे भी आपस मे ऊंच नीच है। गुजरात में आरक्षण की मांग करने वाले पटेल समाज एक करुआ पटेल होते हैं, एक लेउआ पटेल। दोनो एक दूसरे को फूटी आंख नही सुहाते।
इनकी छोड़िए, निम्न जाति कहे जाने वालों में भी उच्च वाली निम्न जाति, और निम्न वाली निम्न जाति होती है।और तो और, आदिवासियों में भी ऊंच नीच है। राजगोंड होते है, और साधारण गोड भी। इनमे आपस मे शादी ब्याह, लेन देन कम ही होता है।
मेरे एक धनाढ्य मित्र हैं, जाति से तेली है। बताते है कि वो उस टाइप के तेली है जिनके बैल से पेराई करके तेल निकालते थे। वे उच्च है। उनके गांव में दूसरे किस्म के तेली होते है, जो ढेंकी- मूसल से पीटकर तेल निकालते थे। वे बेचारे निम्न है।
उन्होंने बताया कि दोनो के बीच वैवाहिक सम्बन्ध नही होते। जाहिर है बैल वाले रईस थे, हाथ से पेरने वाले गरीब। याने इनके बीच गरीबी अमीरी से उच्चता निम्नता आयी।
पर कालक्रम में, कोई निम्न वाला तेली खूब पैसे भी कमा ले, तो भी जन्म की वजह से निम्न श्रेणी ही गिना जाएगा।
बस यही ब्रह्मणिकल सोसायटी है।
कभी सुना आपने, कि टेम्स पार वाले प्रोटेस्टेंट उच्च है, औऱ ईस्ट इंड वाले निम्न। रोम वाले रोमन कैथोलिक, उच्च होते है और वोल्गा किनारे वाले नीच कैथोलिक होते हैं??
कहाँ का लॉजिक है भाई??
कोई लॉजिक नही।
लेकिन यह लॉजिक न सिर्फ प्रचलित है, बल्कि सर्वमान्य है। गर्व शर्म का कारण है। गर्व से कहो हम तेली हैं..
बात हिन्दुओ तक ही सीमित नही। समानता का धर्म इस्लाम भी, इस ब्रह्मणिकल सिस्टम के फेर मे फंस गया है। सैयद साहिब वहां ब्राह्मण हुए बैठे हैं, तो पसमांदा शूद्र हुए पड़े हैं।
यही बौद्ध का भी है, पारसी भी।
ब्राह्मणीज्म खून है इस सबकॉन्टिनेंट में, और यह तमाम नाश की जड़ है।
सभी धर्म जाति मे, काल्पनिक मानवीय ग्रुप है, जो अपने आपको ऊंचा घोषित किये पड़े हैं। वे तथाकथित निम्न का असम्मान करते है, शोषण करते हैं। वो निम्न भी, अपने से निम्न का असम्मान, और ऊपर वाले को नमस्कार करता है।
हर जाति और समाज मे शोषण करने करवाने की पूरी सीढ़ीदार व्यवस्था है। यह व्यवस्था ही ब्रह्मणिकल सोसायटी है। इसका विरोध, ब्राह्मण का विरोध नही है।
हां, आपका नाम ही किसी यूनिवर्सल बुराई का आइकन बन जाये, तो चीख़म चीखी करने की जगह आत्मनिरीक्षण करें।
भारत की गरीबी, अशिक्षा, लो स्किल सेट, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता और विश्वगुरु न बनने के पीछे यह ब्रह्मणिकल सिस्टम है।
यहां वैश्विक ब्रांड खड़े नही हो सकते। कोई नाइकी का जूता नही बन सकता, रेड चीफ की बेल्ट नही बन सकती: क्योकि वह तो कोई चमार ही बनाएगा। औऱ उसे बिजनेस को इंटरनेशनल बनाने के लिए शिक्षा, फंड और अवसर मिलेंगे नही।
ठाकुर साहब और बाबू साहब लोग तमाम सम्पत्ति ज्ञान पर कब्जा करके बैठेंगे, लेकिन जूता बनाने या अन्य स्किल बेस्ड नीच काम कैसे करें?? वो आरक्षण के विरुद्ध आंदोलन करेंगे।
भला हो संगीत सोम जैसे ब्राह्मणों का, जिन्होंने बूचड़खाने और बीफ के व्यापार में हाथ डालकर भारत के समाज को नई राह दिखाई है।
यूथ को गरीबी से दूर हटकर, रईस बनना है तो फोकट गर्व छोड़कर कुछ काम धाम करना होगा। पूरे भारत को शाहरुख पठान और संगीत सोम जैसे ज्ञानियों की बात सुननी चाहिए।
कोई धंधा छोटा नही होता
और धंधे से बड़ा धर्म नही होता ..
जाति तो हरगिज नही।