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अजेय कमलनाथ को अनाथ करने की मुहिम…..

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राकेश अचल

एक निशान और एक विधान की बात करने वाली भाजपा इस समय मध्यप्रदेश में लोकसभा की छिंदवाड़ा सीट जीतने के लिए न केवल पूरी पार्टी की बल्कि प्रदेश की डबल इंजिन की सरकार की प्रतिष्ठा को दांव पर लगा बैठी है । यहां से कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। कमलनाथ कांग्रेस के उन नेताओं में से एक हैं जो राजनीति में अजेय रहकर चुनावी राजनीति से बाहर खड़े भाजपा को खीजते देख रहे हैं।
मध्य्प्रदेश में लोकसभा की 29 में से 28 सीटों पर चुनाव हो रहा है। एक सीट का चुनाव बसपा प्रत्याशी के निधन की वजह से स्थगित हो गया है। पिछले लोकसभा चुनाव में [2019 ] भाजपा ने कांग्रेस के अजेय युवा नेता और केंद्रीय मंत्री रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को ठीक जिस तरह घेरकर पराजित किया था,उसी तरह से इस बार भाजपा के निशाने पर नाथ परिवार है । सिंधिया अब भाजपा में हैं। कांग्रेस मप्र की प्रतिष्ठापूर्ण लोकसभा सीट को अपने खाते में डालने के लिए पहले कमलनाथ और उनके बेटे नकुलनाथ को पार्टी में शामिल करने जके लिए उतावली थी ,लेकिन ऐन मौके पर पार्टी में उठे विरोध की वजह से ये काम। हो नहीं पाया। अब भाजपा नकुलनाथ के बहाने कमलनाथ की राजनीतिक विरासत को छीन लेना चाहती है।
मध्यप्रदेश में अकेली छिंदवाड़ा सीट ऐसी है जहां दिलचस्प चुनाव हो रहा है। यहां एक तरफ भाजपा की अक्षोहिणी सेना है और दूसरी तरफ कमलनाथ अकेले हैं। कमलनाथ 1980 से छिंदवाड़ा सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ते आ रहे हैं और पिछले 44 साल में एक उप चुनाव को छोड़ कमलनाथ यहां से सदैव विजयी रहे। कमलनाथ ने छिंदवाड़ा को 9 बार जीता और जब खुद चुनाव नहीं लड़े तो एक बार अपनी पत्नी अलकानाथ को और एक बार अपने बेटे नकुलनाथ को चुनाव जितवाया। 2014 और 2019 की मोदी लहर में भी छिंदवाड़ा ने नाथ परिवार को ही चुना। छिंदवाड़ा ने अब तक हुए 17 लोकसभा चुनावों में से केवल एक बार भाजपा को मौक़ा दिया था 1997 में लेकिन बाद में अपनी गलती सुधार ली।
मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव लड़ रहे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की राजगढ़ सीट भी है लेकिन भाजपा का फोकस केवल और केवल छिंदवाड़ा पर है।भाजपा इस बार राजगढ़ की कीमत पर छिंदवाड़ा सीट जीतना चाहती है ,क्योंकि भाजपा के भाग्यविधाताओं को लगता है की मध्यप्रदेश में अब कमलनाथ ही कांग्रेस के सबसे सम्पन्न और ताकतवर नेता बचे है। उन्हें राजनीति से बेदखल किये बिना मध्यप्रदेश से कांग्रेस को नेस्तनाबूद नहीं किया जा सकता। कमलनाथ के मुकाबले दिग्विजय सिंह भाजपा को कम खतरनाक नेता लगते है। वैसे भी भाजपा में कमलनाथ के चिंतक कम दिग्विजय सिंह के ज्यादा है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज और विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर की जोड़ी कभी भी दिग्विजय सिंह के खिलाफ नहीं गयी और आज भी परोक्ष रूप से ये जोड़ी दिग्विजय सिंह की मददगार मानी जाती है।
2019 में करीब 38 हजार वोटों से चुनाव जीतने वाले कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ पर एक बार फिर से कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया है. वहीं भाजपा ने विवेक बंटी साहू को टिकट दिया है। ये वही विवेक हैं जिन्होंने साल 2018 और साल 2023 के विधानसभा चुनाव में कमलनाथ को कड़ी टक्कर दी थी. हालांकि दोनों बार कमलनाथ जीत गए थे। लेकिन वोटों का फासला बेहद कम था. 2018 के चुनाव में कमलनाथ ने 25 हजार और 2023 के चुनाव में 34 हजार वोटों से ही सफलता पाई थी। विवेक साहू पार्टी के जिलाअध्यक्ष भी रहे हैं। छिंदवाड़ा में जहाँ भाजपा ने अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगा दिया है वहीं कांग्रेस ने कमलनाथ को अकेला छोड़ दिया है। कांग्रेस पूरे प्रदेश में चुनाव लड़ रही है । कांग्रेस को उम्मीद है की भाजपा के छिंडवाडा में उलझने का लाभ कांग्रेस को मिलेगा और इस चुनाव में कांग्रेस कम से कम दो अंकों में लोकसभा की सीटें हासिल कर लेगी।
मै अपने अनुभव से ये कह सकता हूँ कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा जहाँ केवल और केवल प्रधानमंत्री मोदी जी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है वहीं कांग्रेस में अनेक सीटों पर प्रत्याशियों की अपनी भूमिका है ,हालाँकि एन मौके पर बसपा ने मध्यप्रदेश में अनेक लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े कर कांग्रेस का खेल खराब करते हुए भाजपा की इमदाद की है। खास तौर पर ग्वालियर-चंबल अंचल में। बसपा को मप्र से एक भी सीट नहीं मिल सकती लेकिन वो भाजपा का नुक्सान कम जरूर कर सकती है।

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