पुस्तक समीक्षा: संविधान, लोकतांत्रिक मूल्य और हम जब कवि सुदामा पांडेय “धूमिल” कहते हैं, “क्या आजादी सिर्फ तीन थके हुए रंगों का नाम है, जिसे एक पहिया ढोता है या इसका कोई खास मतलब होता है।” 26 जनवरी 1950 को जब एक लंबी बहस...
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को बाभन को सूदा:दलित-ओबीसी समुदायों के संघर्ष को बयां करती आत्मकथा
ब्राह्मण या ऊंची जातियों के जैसे अपनी जाति को श्रेष्ठ बताने की अनावश्यक कोशिशों को छोड़ दें तो हरिनारायण ठाकुर की यह कृति स्वतंत्र भारत में दलित-ओबीसी समुदायों में बढ़ती शिक्षा और उसके कारण बढ़ती चेतना को बयां करती है...