शंभूनाथ शुक्ल
जब रामलला की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा का महापर्व मनाया जा रहा हो और नेता, अभिनेता आदि सब बुलाये जा रहे हों तब राम परिवार के एक सदस्य को ही भूल जाना दुःखद है। राम और उनके शेष तीन भाई एक ही दिन पैदा हुए थे। रानी कौशल्या की कोख से राम और कैकेयी की कोख से भरत तथा सुमित्रा मां की कोख से दो जुड़वां भाई- लक्ष्मण और शत्रुघ्न पैदा हुए थे। अयोध्या में लक्ष्मण मंदिर भी है और भरत का भी। मगर शत्रुघ्न का कोई मंदिर नहीं है। शत्रुघ्न का अकेला मंदिर मथुरा में है। यह मंदिर मथुरा शहर के अंदर होली गेट के निकट छत्ता बाज़ार की बारी गली में स्थित है। श्रीराम जन्मस्थान तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय इस मंदिर को बुलावे हेतु अक्षत भेजना भूल गये।शायद रामलला मंदिर के पुनर्निर्माण का ठेका लेने वाले संगठन विश्व हिंदू परिषद ने राम जी के परिवार को न्योता देना सही न समझा हो।
सनातन परंपरा में पहला न्योता विघ्न संहारक गणेश जी को जाता है। इसके बाद राम और उनके भाइयों के मामा को जाना चाहिए। कौशल्या का मायका पंजाब में था, जो अब पाकिस्तान में है। कौशल्या का एक अन्य मायका छत्तीसगढ़ में भी बताया जाता है जिसका पूर्णोद्धार भूपेश बघेल सरकार ने कराया था. भरत का ननिहाल कैकय देश में था जो अफ़ग़ानिस्तान और ईरान में रहा होगा। सुमित्रा का संबंध दक्षिण पूर्व एशिया में था, अतः थाइलैंड भी न्योता भेजा जाना चाहिए था। किंतु चंपत राय जी मामाओं को न्योता देना तो दूर राम जी के भाई शत्रुघ्न को न्योता भेजना विस्मृत कर गए। ध्यान रखिये, सनातन धर्म में मृत व्यक्तियों को भी न्योता देने की परंपरा है। मातृपक्ष और पितृपक्ष की सात पीढ़ियों को न्योता जाता है। किंतु जिन राम जी का मंदिर बन रहा है, उनके भाइयों को ही न बुलाया जाना तो अक्षम्य भूल है।
शत्रुघ्न जी के इस मंदिर का उल्लेख वाल्मीकि रामायण और विष्णु पुराण में भी मिलता है। मथुरा के वरिष्ठ पत्रकार और वहाँ पर अंग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर रहे श्री अशोक बंसल ने अपनी पुस्तक ‘चल मन वृंदावन’ में इस मंदिर की खोज की है। उन्होंने इस मंदिर का चित्र भी दिया है। वाल्मीकि रामायण में लिखा है, कि मधुपुरी (मथुरा) के राजा मधु का पुत्र लवणासुर रोज़ाना चार आदमियों की हत्या कर उन्हें खा जाता। अयोध्या की पीड़ित जनता ने अयोध्या जा कर राजा राम से विनती की, कि राम जी उनको इस अत्याचारी शासक से मुक्त कराएँ। राजा राम ने अपने छोटे भाई शत्रुघ्न को कहा, जाओ और लवणासुर का विनाश करो। शत्रुघ्न ने इस असुर का वध कर दिया, तब राजा राम ने उन्हें मथुरा का शासक नियुक्त किया। इसीलिए शत्रुघ्न को मथुराधीश कहा गया है।
मथुरा के इस मंदिर के भीतर एक शिलालेख लगा है। इसके अनुसार कोई 200 वर्ष पूर्व रघुनाथ दास शर्मा ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। जीर्णोद्धार से लगता है, मंदिर बहुत प्राचीन है। यह मंदिर अत्यंत विशाल और भव्य बना है। विग्रह अद्भुत है और संगमरमर का है। अशोक बंसल द्वारा संपादित यह पुस्तक मथुरा वृंदावन की संपूर्ण छवि प्रस्तुत करती है। इस पुस्तक के प्रकाशक हैं, बिमटेक फ़ाउंडेशन के डायरेक्टर डॉ. हरिवंश चतुर्वेदी।