अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

आजीवन वंचित तबके के लिए लड़ते रहे चंद्रशेखर

Share

युवा तुर्क के नाम से जनता के बीच लोकप्रिय पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का समूचा व्यक्तित्व और जीवन दर्शन सामाजिक जीवन के लिए आदर्श प्रस्तुत करता रहेगा। सैद्धांतिक राजनीति औरजीवन पर्यंत अपने उसूलों से समझौता न करने का आत्मबल समेटने वाले चंद्रशेखर ने आजीवन देश की राजनीति में एक अलग ही पंक्ति का निर्माण करने का काम किया। बलिया के ग्रामीण परिवेश से कांग्रेस के सामान्य कार्यकर्ता के रूप में राजनीतिक सफर शुरू करने वाले भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के शीर्ष पद प्रधानमंत्री तक पहुंचे। जीवन के अंतिम समय तक वे पूरेआभामंडल के साथ अपने कद और औरा को बनाये रखने में पूरी तरह सफल दिखे।

देश की सबसे बड़े पंचायत संसद में लोकसभा का वह विहंगम दृश्य भला कौन भूल सकता है,जिसमें कई कद्दावर नेता पूरी जिम्मेदारी और गंभीरता के साथ चंद्रशेखर को अपना राजनीतिकगुरु घोषित करते थे। सदन के गलियारों में उनके पीछे आधे संसद सदस्यों का चलना बहुत कुछ बयां कर देता था। जब वे सदन में बोलने के लिए उठते थे,पूरा वातावरण शान्तमय एकाग्र हो जाता था, जिसकी बड़ी वजह जमीनी स्थितियों की समकालीन अर्थव्यवस्था के अंतर्संबंधों केसाथ उम्दा विश्लेषण करने की उनकी शैली थी।

लम्बे राजनैतिक जीवन में उतार-चढाव से भी उनका नाता रहा। उनके राजनैतिक जीवन मेंअनेक उथल पुथल रहे। जीवनपर्यंत उनकी संघर्षशील जिद ही थी कि जब जनता दल के बाद दलों में बिखराव हुआ, तब भी उन्होंने समाजवादी जनता पार्टी का अंतिम समय तक विलय नहींकिया। संसदीय राजनीति में बलिया का प्रतिनिधित्व अपने दल से ही करते रहे, जबकि उनके पास अनेक विकल्प खुले हुए थे। अस्सी के दशक में आपातकाल के दौरान कांग्रेस में रहते हुए इंदिरा गांधी से टकराने की कूवत केवल चंद्रशेखर में ही दिखी। जिसका परिणाम था कि देश के
नौजवान तबके ने उन्हें ‘युवा तुर्क’ के नाम से पहचान के रूप में लोकप्रिय बनाया।

पूरब का ऑक्सफ़ोर्ड के रूप में ख्यातिप्राप्त इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बतौर छात्र नेता के रूप में उनका महत्व न केवल छात्रों-नौजवानों के बीच था, बल्कि अकादमिक बहस में भी उनके विचारों का पूरा सम्मान होता था। वे छात्र संघ अध्यक्ष तो नही रहे लेकिन कई दशक के छात्र नेताओं के विचार और व्यक्तित्व निर्माण पर उनका प्रभाव बखूबी झलकता रहा।चंदशेखर ने अपनी राजनैतिक यात्रा आचार्य नरेंद्र देव के मार्गदर्शन में शुरू की थी। देश की आजादी के बाद सोशलिस्ट आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी करते हुए प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से होते हुए आपातकाल के बाद जनता पार्टी के अध्यक्ष भी बने। कांग्रेस से राज्यसभा और लोकसभा सदस्य चुने जाने के बाद भी मुद्दा आधारित विरोध जारी रखा। बैंकों के राष्ट्रीयकरण और प्रिवी पर्स की समाप्ति की सफलता का श्रेय उन्ही को जाता है। पूरे देश को जानने और समझने के क्रम में 1983 की ऐतिहासिक पदयात्रा ने उन्हें पूरे देश का नेता बना दिया।

चन्द्रशेखर का जितना योगदान और संघर्ष समाज के लिए था, उसकी तुलना में समाज ने उन्हें कम ही दिया। यंग इंडिया के माध्यम से उन्होंने ज्वलंत मुद्दों पर अपनी लेखनी चलाई। उनके सृजन कर्म को पढ़कर ऐसा लगता है कि यदि वे एक कुशल राजनीतिज्ञ के रूप में ख्यातिलब्ध न होते तो बड़े पत्रकार के रूप में जरूर जाने जाते।अपनी लेखकीय अभिरुचि की वजह से ही युवा तुर्क के संबंध साहित्यिक और रचनाकर्मियों में बड़े मजबूत थे। उनके जैसे नेता की वजह से राजनीति करने वालों के प्रति बुद्धिजीवियों की राय अच्छी रही।

विगत कुछ वर्षो से चंद्रशेखर के जयंती और पुण्यतिथि अवसर पर आयोजनों की संख्या बढ़ी है। निसंदेह यह एक अच्छी परंपरा की शुरुआत है। लेकिन जिस तरह से उन्हें एक जाति/समुदाय विशेष के नेता के तौर पर प्रचारित और स्थापित किया जा रहा है,वह उचित नही है। चंद्रशेखर आजीवन गरीबों,मजलूमों सहित समाज के सभी वंचित तबके के लिए लड़ते रहे। वे सभी जाति – धर्म-सम्प्रदाय के नेता के रूप में जाने गए। यही वजह है कि समाजवादी विचार परंपरा के दलों ने चंदशेखर के समाजवादी सोच का सम्मान करते हुए उनके सम्मान और महत्व को बनाये रखा।

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें