सुधा सिंह
अफ्रीका की लोक कथाओं के अनुसार, एक बार एक आलसी शिकारी व्यक्ति सवाना के घास के मैदान में आसान शिकार का इंतजार कर रहा था।
इतने में उसने ऊंची घास के मैदान में कुछ दूर पर हलचल देखी। वह कुछ ज्यादा समझ पाता तब एक कमजोर बिल्डरबीस्ट शिकार बन चुका था। गोली की रफ्तार से झपट्टा मारने वाली एक मादा चीता थी।
यह देखकर आलसी शिकारी को आईडिया आया कि क्यों न शिकार के लिए चीता ही पाल लिया जाए। इसके बाद वह मौके देखकर एक दिन उस मादा चीते के दोनों शावकों को चुराकर घर लाया।
जब मादा चीता शिकार से वापस लौटी को अपने शावकों को नहीं पाकर बहुत रोई। इतना रोई कि उसके चेहरे पर अश्रु रेखा बन गई। फिर जब कुछ समय बाद उसने नए शावकों को जन्म दिया तो उनके भी चेहरे पर अश्रु रेखा बन गए।
इस तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी अश्रु रेखा बनती गई। उधर शिकारी के साथ के साथ ये हुआ कि कबीले के मुखिया ने उसे कबीले से ही निकाल दिया क्योंकि किसी जंगली जानवर के बच्चों का शिकार या मां से अलग करना उनके नियम के खिलाफ था।
यह तो हुई लोक मान्यता की बात। अब आते हैं बायोलॉजिकल एवल्युशन की बात। तो बात ये है कि चीता है घास के मैदान का निवासी। वह खुले मैदान में जीवों को दौड़ाकर शिकार बनाता है।
ऐसे में सूर्य की तेज रोशनी में उसकी आंख चौंधिया जाया करती थी। इस समस्या ने धीरे धीरे उसकी आंखों के नीचे एक काली रेखा को जन्म दिया। जो उसकी आंख को चौंधियाने से बचाती हैं। यह अश्रु रेखा उसे शिकार पर फोकस बनाए रखने में मदद करती है।
आपने कई बार देखा होगा कि फुटबॉल या रग्बी जैसे खेलों के खिलाड़ी आंखों के नीचे काले रंग का पेंट या ऐसा कुछ लगाते हैं। वह इसे आंखें चौंधियाने से बचाने के लिए बनाते हैं।