हीना ताज
ऐसा क्यों है कि देश में हर तरफ से सामने आ रही हिंसा की तस्वीरों में बीजेपी के कथित राष्ट्रवाद का जोश दिखाई देता है। सत्ता संभालने वाली सरकारें जिनका काम हिंसक घटनाओं पर नियंत्रण होना चाहिए, वह अपने बुलडोज़र न्यायालय की बदौलत समाज में बचे कुचे सौहार्द की कब्रें क्यों खोदने में लगी हैं। ऐसा क्यों है कि राजनीतिक मुद्दों पर अब मुद्दे कम और राजनीति ज़्यादा हावी होने लगी है। इनके जवाब वही लोग खोज सकते हैं जो कम से कम भक्त नहीं हो या फिर विवेक नाम की चिड़िया का इस्तेमाल अब भी कर रहे हों।
राजस्थान के संदर्भ में यदि बात करें तो यहां कालांतर से लेकर अब तक सरकारें किसी भी पार्टी की रही हों लेकिन उनमें कुतर्कों वाली विसंगतियां देखने को नहीं मिलीं। राजस्थान की राजनीति की यह खासियत भी रही है कि यहां पक्ष और विपक्ष द्वारा मिलकर जनता के मुद्दों पर स्वस्थ बहस की गई है। देश के अन्य इलाकों की अपेक्षा यहां सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाली प्रवृत्ति नेताओं में नहीं देखी गई। यहां तक कि राजस्थान की राजनीतिक ज़मीन पर सत्ता और विपक्ष के बीच शब्द बांण तो चले पर मर्यादाओं की सीमा उन्होंने कभी नहीं लांघी। लेकिन ऐसा अब नहीं है, पिछला चुनाव हारने के बाद राज्य की विपक्षी बीजेपी के सुर अब दिल्ली दरबार की परंपरागत तानों को छेड़ने लगे हैं। अचानक हिंसा एक पक्षीय चश्मे से देखी जाने लगी है और आकाओं की आंखों में खटकने वाले लोग भी अब चाटुकारिता की मजबूरी में उनकी पसंद को तरजीह देने लगे हैं। प्रदेश बीजेपी में अब राजनीति महत्वाकांक्षाएं भी बिसरी बातें हो गई हैं क्योंकि आका ने सब महत्वाकांक्षाओं का जनाज़ा निकालते हुए चुनाव में खुद एंट्री करने का हुकम सुना दिया है।
इस संबंध में राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर इतने संगीन आरोप लगाए हैं जिनकी सही पड़ताल यदि हो जाए तो भारत में इमरान खान पार्ट 2 बनना तय है। हालांकि गोदी मीडिया के ज़माने में इसकी उम्मीद कम है फिर भी राजनीतिक गलियारों से गुज़र कर जो बात गहलोत तक पहुंची है वह यह है कि मुख्यमंत्री बनने की लॉलीपॉप की खींचतान में बीजेपी नेताओं से जब सत्ताधारियों की कुर्सी नहीं हिल पाई तो प्रधानमंत्री ने राज्य में अराजकता फैलाने का फरमान सुना दिया। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने खुद एक इंटरव्यू में यह बात कही है कि प्रधानमंत्री ने राजस्थान के बीजेपी नेताओं और सांसदों की निष्क्रियता पर नाराज़ होकर यहां कानून व्यवस्था को तोड़ने, लोगों को भड़काने और आग लगवाने जैसी बातें कही हैं।
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि वह प्रधानमंत्री पद की गरिमा को समझते हैं इसके बावजूद यह बातें सामने आई हैं तो मीडिया को इनकी सच्चाई पता करनी चाहिए। इतनी बड़ी बात सामने आने के बाद कम से कम राजस्थान के लोगों को तो यह पता करना चाहिए कि बीजेपी का हिंदुत्व और राष्ट्रवाद क्या वाकई चुनाव जीतने तक ही तो सीमित नहीं है ? इस पार्टी के नेताओं की संवेदनाएं लखीमपुर जैसी घटनाओं में मारे गए हिंदुओं पर क्यों नहीं निकलती और कहीं भी हुई हिंसा की एक छोटी सी घटना पर इनकी संवेदनाओं का ज्वार भाटा क्यों फूटने लगता है ? जय श्री राम नहीं बोलना जिनके लिए धार्मिक भावनाओं का अपमान होता है मगर अजय रहने के अहंकार में मर्यादा पुरुषोत्तम पर एक नहीं बल्कि दो बार अमर्यादित बयान देना स्लिप ऑफ टंग होता है। गृह मंत्री ने जो शब्द दिया है उसकी व्याख्या कीजिए यानी क्रोनोलॉजी समझीए.. थोड़ा सा विवेक जगाएं तो भूख, गरीबी, बेरोजगारी की जगह लेते हिजाब और हिंसा का अर्थ समझ आने लगेगा। करौली और खरगोन के बीच न्याय के पैटर्न समझ आएंगे। मंदिर और ऑक्सीज़न में क्या ज़्यादा ज़रूरी है समझ पाएंगे। वैसे जब गोधरा का मास्टरमाइंड देश चला रहा हो तो देश में आरती और अज़ान के स्थानों पर दंगे भड़क जाना भी कोई बड़ी बात नहीं है।