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चीन ताइवान संघर्ष में भारत के लिए भी असुरक्षा का माहौल

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ए. के. ब्राईट

संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त देशों की सूची में ताइवान नाम का कोई देश नहीं है. हालांकि कुछ छोटे देशों ने ताइवान को एक देश की मान्यता दी है लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ में ताइवान देश नहीं है. ताइवान समुद्र के बीच एक टापू है. यह तकरीबन 37 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है. यहां की जनसंख्या डेढ़ करोड़ से भी कम है. इसे यूं समझ लीजिए कि यह भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का आधा हिस्से जितना है.

भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 33 लाख वर्ग किलोमीटर है, जबकि चीन का भौगोलिक क्षेत्रफल 96 लाख वर्ग किलोमीटर से भी अधिक है, यानी, तीन भारत के बराबर एक अकेला चीन है. वर्तमान में जहां भारत की जनसंख्या 1 अरब 44 करोड़ तक पहुंच गई है, वहीं ‘चीनी जनसंख्या नियंत्रण कानून’ ने जनसंख्या के मामले में अपने को भारत से कम कर लिया है, इस समय चीन की कुल जनसंख्या 1 अरब 42 करोड़ है.

बेल्जियम एक छोटा सा देश है, जिसकी राजधानी ब्रुसेल्स है. यह भौगौलिक दृष्टिकोण से ताइवान से भी छोटा है लेकिन संयुक्त राष्ट्र में बेल्जियम एक देश के तौर पर नामित है. 32 देशों के नाटो सैन्य संगठन का मुख्यालय ब्रुसेल्स में ही है. अब मामला ये है कि बीते गुरुवार को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वायुसेना प्रमुख को तलब कर ताइवान के ऊपर चार दर्जन फाइटर जेट उड़ाने के आदेश जारी कर दिये.

इधर, राष्ट्रपति जिनपिंग ने आदेश दिया उधर दर्जनों चीनी फाइटर जेट गर्जना करते हुए ताइवान की सीमा पर मंडराने लगे. रेडियो ताइवान को आपातकाल की घोषणा करनी पड़ीं और इमरजेंसी सायरनों से ताइवान पूरे दिन सिहरता रहा. ताइवान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति लिंग-ताई ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से संयम बरतने की अपील की.

दरअसल ताइवान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति लिंग-ताई को कट्टर चीन विरोधी माना जाता है. अपने शपथ ग्रहण समारोह में लिंग ताई ने साफ कहा कि ताइवान किसी भी तरह से चीनी दादागिरी के आगे नहीं झुकेगा. उधर जिनपिंग को लिंग ताई के इन कटु वचनों से ऐसा बुरा लगा कि उन्होंने ताइवान द्वीप को लगभग 17 समुद्री युद्ध पोतों से घेरकर उसके हवाई क्षेत्र में घुसपैठ कर डाली.

अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में गुरुवार को दक्षिण एशिया में हुई इस अप्रत्याशित घटना के कई मायने निकाले जा रहे हैं लेकिन चीन जैसा एक महाशक्तिशाली राष्ट्र सीधा ताइवान पर हमला कर दे, ऐसा नहीं है. यह मामला रूस यूक्रेन युद्ध के बीच यूक्रेन में बढ़ते नाटो देशों के दखल का नतीजा है. चूंकि रणक्षेत्र में पुतिन दुनिया के सबसे अनुभवी राष्ट्राध्यक्ष में सुमार हैं और पुतिन का लक्ष्य यूक्रेन जीतना कम नाटो की तबाही ज्यादा है इसीलिए पुतिन यूक्रेन में कभी ज्यादा आक्रामक होकर कभी धीमा होकर नाटो देशों की नब्ज टटोलते रहते हैं.

पिछले दिनों पुतिन की चीन यात्रा का कुल जमा भी यही रहा कि अमरीका को छोटे-छोटे युद्धों में फंसाते हुए खोखला कर बाद में उसे कुचल देना. रूस को चीन का साथ देना ही होगा. अगर चीन इस समय पुतिन के नाटो वध में साथ नहीं देता है तो कल वही नाटो शत-प्रतिशत चीन की तरफ भी बढ़ेगा.

उधर, उत्तर कोरिया ने अमरीका को दक्षिण कोरिया की पहरेदारी में फंसा रखा है तो उसी अमरीका को ईरान ने इजरायल की चौकसी में लगा दिया और अब चीन ने ताइवान को आतंकित कर अमरीका का ध्यान दक्षिण एशिया की तरफ खींच लिया है और इस सबमें पुतिन के फाइटर जेट टैंक मिसाइलें यूक्रेन में नाटो की हर रणनीति को धुआं धुआं कर रहे हैं.

जिनपिंग चाहते थे कि ताइवान का राष्ट्रपति उनकी पसंद का निर्वाचित हो. अगर ताइवानी नागरिक जिनपिंग की नसीहत को मान लेते तो ताइवान न केवल एक शांत क्षेत्र होता बल्कि संयुक्त राष्ट्र में ताइवान को देश होने की मान्यता भी मिल जाती. इतना तो तय है कि बिना चीनी समर्थन के ताइवान कभी भी संयुक्त राष्ट्र में देश होने की मान्यता प्राप्त नहीं कर सकता और जब ताइवान कोई देश ही नहीं है तो चीन की सीमा पर ताइवान नाम का भू-भाग चीन का ही होगा.

इस पर ताइवान को ना-नुकुर करने की न केवल असहनीय कीमत चुकानी होगी बल्कि अपने अस्तित्व से हाथ धोने की नौबत भी आ सकती है. अमरीका ताइवान की मदद सिर्फ औपचारिक तौर पर ही कर सकेगा. अमरीका यह अच्छी तरह जानता है पुतिन-जिनपिंग की राजनितिक जुगलबंदी उसके दुर्दान्त को करीब ही लायेगा. लेकिन अपने को हर युद्ध में आकंठ फंसा चुका अमरीका के पास पीछे लौटने की सभी लाइफलाइनेंं एक्सपायर हो चुकी हैं.

चीन ताइवान संघर्ष में भारत के लिए भी असुरक्षा का माहौल बन सकता है. भारत को चाहिए कि सीमा विवादों को लेकर चीन के साथ बातचीत के विकल्प को पुनः बहाल किया जाये. यह सही है कि आज का भारत हर क्षेत्र में मजबूती रखता है लेकिन चीन दुनिया की महाशक्ति है, इसे अंधराष्ट्रवाद के नशे में भुलाया नहीं जाना चाहिए.

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