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कट्टरपंथियों के निशाने पर अब इसाई 

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 हरनाम सिंह

               धार्मिक कट्टरता किस कदर अमानवीय होती है देश में इसके उदाहरण तलाश करने की जरूरत नहीं है। शायद ही कोई दिन होगा जब धार्मिक पहचान के आधार पर अन्याय और प्रताड़ना के समाचार न मिलते हों। हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, भगत सिंह से लेकर स्वतंत्रता संग्राम की संपूर्ण विरासत और उसके मूल्यों को धता बताकर, उन्हें बदनाम किया जाता रहा है। अल्पसंख्यक समुदाय में मुसलमानों के खिलाफ दमन और अत्याचार की अनेक घटनाओं के बाद अब इसाई समूह इनके निशाने पर हैं। ईसाइयों के एकमात्र प्रमुख पर्व क्रिसमस पर इन उपद्रवी संगठनों ने जिस स्तर पर इस समुदाय को परेशान किया, उन्हें पर्व की खुशियां मनाने से रोका ये घटनाएं अभूतपूर्व और निंदनीय है।

              कुछ माह पूर्व ही इसाई मिशनरी द्वारा संचालित स्कूलों में इन तत्वों  द्वारा तोड़फोड़ कर प्रबंधकों, शिक्षकों और विद्यार्थियों को डराने के प्रयास हुए थे। अब इनके निशाने पर ईसाइयों के पूजा स्थल है, जहां उन्हें त्यौहार मनाने से रोका जा रहा है। धर्म स्थलों के नाम बदलने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

#आसान है धर्मांतरण का आरोप

               ईसाइयों पर आरोप प्रचारित किया जाता रहा है कि वे प्रलोभन देकर गरीबोंका धर्मांतरण करवाते हैं। कोई यह नहीं पूछता की देश में कोई भी व्यक्ति गरीब क्यों है ? वह कौन सी मजबूरी है जिसके कारण वह प्रलोभन में आ जाता है ? इसके पीछे के कारण क्या है ?

           वैसे तो धर्मांतरण के आरोप तथ्यहीन और झूठे है। देश के अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों में ईसाइयों की आबादी निरंतर घट रही है। देश में जहां हिंदू आबादी बढ़ने की रफ्तार 16.80 प्रतिशत है वहीं ईसाइयों की जनसंख्या बढ़ने की रफ्तार 15.5 प्रतिशत है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मध्य प्रदेश में ईसाइयों की आबादी मात्र 0.29  प्रतिशत है। 1971 के बाद से ही इसाईआबादी का अनुपात निरंतर घट रहा है। वर्ष 2001 से 2011 की जनगणना के बीच इसाई आबादी का अनुपात 2.34 प्रतिशत से घटकर 2.30 प्रतिशत रह गया है। अगर धर्मांतरण के आरोप  में कोई सच्चाई होती तो आबादी बढ़ना चाहिए थी न कि घटना।

                  कुछ माह पूर्व विद्यार्थी परिषद की सदस्यता के नाम पर भोपाल, मंदसौर, जावरा में क्रिश्चियन स्कूलों को निशाना बनाया गया था। परिषद के नेताओं ने भोपाल के ओरियन स्कूल में घुसकर स्कूल के निदेशक और सचिव के साथ मारपीट की। पुलिस ने आरोपियों के साथ पीड़ितों पर भी प्रकरण दर्ज कर लिया।

               मंदसौर के सेंट थॉमस सीनियर सेकेंडरी स्कूल में चलती कक्षाओं और परीक्षा के दौरान परिषद के नेता स्कूल में बिना  अनुमति के जा घुसे, प्रबंधन से दुर्व्यवहार किया।इन नेताओं ने स्कूल प्रबंधकों से कहा की एबीवीपी के सम्मेलन में विद्यार्थियों को भगवा वस्त्र पहनकर भेजें, प्रबंधन का कहना था कि बिना अभिभावकों की  अनुमति के वे किसी भी विद्यार्थी को स्कूल से बाहर नहीं भेज सकते। इस पर परिषद के नेताओं ने आरोप लगाया कि यह हिंदू विरोधी स्कूल है। स्कूल में कहीं भी सरस्वती और विवेकानंद के चित्र नहीं है। उन्हें स्कूल में भारत माता की जय के नारे लगाने से रोका गया, उल्लेखनीय है कि इस स्कूल में सर्वाधिक हिंदू विद्यार्थी ही पढ़ते हैं उनके पालकों को स्कूल प्रबंधन से कोई शिकायत नहीं है।

               जावरा में भी सेंट पीटर्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल में घुसकर विद्यार्थी परिषद कार्यकर्ताओं ने ईसा मसीह के चित्र फाड़ दिए। उसके स्थान पर सरस्वती की तस्वीर लगाई। कार्यकर्ताओं ने स्कूल में आरती गाई। घटना के बाद सभी धर्म के आक्रोशित अभिभावकों ने प्रशासन से इन असामाजिक तत्वों पर कड़ी कार्यवाही करने की मांग की।

         #क्रिसमस पर्व निशाने पर

              शांतिप्रिय और करुणा जगाने वाले इसाई धर्म के पर्व क्रिसमस को बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद ने देश के कई शहरों में रोकने की कोशिश की। इन हिंदुत्व वादी समूहों ने चर्च में, सार्वजनिक स्थलों पर ही नहीं अपने घरों में पर्व  मानते लोगों को भी रोका।

  * #लखनऊ के कैथ्रेडल में जब समाजजन ईसा मसीह का जन्म दिवस मना रहे थे इस दौरान वहां भीड़ घुस गई और हरे कृष्णा- हरे रामा के भजन गाने लगी। इन उपद्रवियों का दावा था कि वे सनातनी हैं। देश में केवल राम और कृष्ण के ही भजन गाए जा सकते हैं।

   * #हरियाणा के रोहतक में  वर्षों से एक स्थानीय धर्मशाला में क्रिसमस पर्व मनाया जाता रहा हैं। बीते 25 दिसंबर को यहां क्रिसमस का आयोजन रखा गया। प्रमुख अतिथि महाबली खली थे। आयोजन शुरू होने के पहले ही विहिप और बजरंग दल कार्यकर्ता धर्मशाला में जा घुसे  उनका कहना था कि यहां पर्व क्यों मनाया जा रहा है चर्च में क्यों नहीं। हुड़दंगियों  ने मंच पर कब्जा कर लिया और हनुमान चालीसा का पाठ करने लगे। पुलिस मूक दर्शक बनी रही। अंतत्त्वोगत्वा इसाई धर्मावलंबियों ने अपना आयोजन रद्द कर दिया।

  * #उत्तराखंड के ऋषिकेश में अपने घर में रिश्तेदारों के साथ पर्व मना रहे लोगों को बजरंगियों ने घर में घुसकर रोका उनका आरोप था कि परिवार के पास त्यौहार मनाने की अनुमति नहीं है। अब यह न पूछा जाए की अपने ही धर्म के त्यौहार को मनाने के लिए किसकी अनुमति की जरूरत होती है ?

       * #इंदौर के एक डिलीवरी बाय जो सांता क्लॉस के वेशभूषा में अपने ग्राहक को पार्सल पहुंचाने जा रहा था, उसे रोका गया और सड़क पर ही सांता के कपड़े उतारने पर मजबूर किया गया। देश के अनेक भागों में ऐसी घटनाएं हुई है।

 #अब मंदिर शब्द पर आपत्ति

 देश के कई इसाई समूह अपने उपासना स्थल को मसीही मंदिर के नाम से पुकारते हैं। अब हिंदू कट्टर पंथियों को मंदिर शब्द पर भी आपत्ति है। उज्जैन में 75 वर्ष पुराने मसीही मंदिर से मंदिर शब्द हटवा दिया गया। इंदौर में लगभग 98 वर्ष से छावनी क्षेत्र स्थित चर्च से भी मंदिर शब्द हटाने की चेतावनी जारी कर दी गई है। निश्चित ही असहिष्णुता की यह मुहिम आगे बढ़ेगी।

#आदिवासी अंचलों में आतंक

 ग्रामीण आदिवासी अंचलों में इसाई आदिवासी प्रताड़ना के शिकार बनते रहे हैं।  चार वर्ष पूर्व एक तथ्यान्वेशी दल के साथ यह लेखक अलीराजपुर के ग्रामीण अंचलों में अध्ययन के लिए गया था। वहां ऐसी कई घटनाएं सामने आई। धर्मांतरण का आसान आरोप लगाकर न केवल इसाई आदिवासियों से मारपीट की गई थी, महिलाओं पर यौन हमले भी हुए। पीड़ितों की कहीं सुनवाई नहीं होती। थाने में उनसे आवेदन लेकर रख लिया जाता है। यहां भी 

आदिवासियों को अपने घरों में सामूहिक प्रार्थना करने से रोका जाता है। पुलिस अपराधियों के खिलाफ कार्यवाही करने के स्थान पर आदिवासियों को ही समझाती है कि वे प्रार्थना न करें।

               संग्रहित तथ्यों के अनुसार अनुसूचित जाति जनजाति के ईसाई समुदाय को प्रशासन संरक्षण देने से इनकार करता है। उन्हें बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के दबंगों के रहमो करम पर छोड़ दिया गया है।

              यह विडंबना ही है कि देश के प्रधानमंत्री क्रिसमस पर्व के तीन दिन पूर्व से ही बधाई संदेश देना प्रारंभ कर देते हैं। ईसाइयों के कार्यक्रमों में शामिल होते हैं। लेकिन उनके समर्थक, अनुयायी, सहयोगी ईसाइयों को आतंकित करने की मुहिम चलाए हुए हैं। अधिक  पुरानी बात नहीं है जब मणिपुर में 250 से अधिक चर्च जला दिए गए थे और सरकार हाथ पैर हाथ धरे बैठी रही। ऐसा माना जा सकता है कि यह सरकार और भाजपा की सोची समझी नीति ही है। अन्यथा अल्पसंख्यक समाज के संवैधानिक अधिकारों पर निरंतर आक्रमण  बिना शीर्ष सत्ता संरक्षण के संभव नहीं हो सकता है।

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