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*सुमेर व बेबीलोन की सभ्यता और एनुमा एलिश की सृजन गाथा*

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       ~ पुष्पा गुप्ता 

एनुमा एलिश (Enuma Elish )दुनिया का सबसे पुराना सृष्टि कथानक (myth of creation ) है जो सात मृद्पट्टिकाओं पर उत्कीर्ण है  और बेबीलोन के राजा अशुरबनिपाल की राजधानी निनवे के पुस्तकालय, अस्सुर तथा किश नामक स्थानों की  खुदाई में पाया गया है।

      यद्यपि इन पट्टिकाओं का समय  1200 ई पू तय किया गया है किन्तु इनकी अन्तर्वस्तु से ज़ाहिर होता है कि इनमें लिखी सामग्री बेबीलोन के राजा हम्मूराबी के शासन काल (1792-2750 ई पू ) से भी ज़्यादा पुराने लेखों की अनुकृति है।

     हम्मुराबी ने ही मरदुक को बेबीलोन के अध्यक्षीय देवता के रूप में प्रतिष्ठित किया था।अनेक विद्वानों का मानना है कि एनुमा एलिश की यह कहानी और भी प्राचीन समय में सुमेरी सभ्यता में प्रचलित सृजन कथा का ही नया संस्करण 

है।

सुमेर की ये पट्टिकाएँ  “सात सृजन मृद्पट्टिका (Seven tablets of creation )के नाम से प्रसिद्ध हैं।

     एनुमा एलिश की यह कहानी बेबीलोन के देवता मर्दुक द्वारा अव्यवस्था (Chaos )की शक्तियों की देवी तिआमत (Tiamat ) पर विजय प्राप्त कर व्यवस्था (order ) स्थापित करने का बयान करती है।

     इस कहानी में मर्दुक व्यवस्था के देवता तथा तिआमत अव्यवस्था की  देवी हैं। बेबीलोन की कथा में जो किरदार मर्दुक ने निभाया है , सुमेर की कथा में वही किरदार एनकी या एनलिल (Enki or Enlil ) देवता ने निभाया है। मेसोपोटैमिया की प्राचीन संस्कृति में प्रत्येक शहर का अपना अध्यक्षीय देवता हुआ करता था और चूँकि एनुमा एलिश की कथा बताने वाली पट्टिकाएँ  बेबीलोन के शहरों से मिली हैं , इसलिए इस कहानी का नायक मर्दुक देवता है।

      इस कहानी में ब्रह्मांड के सृजन तथा देवता और मनुष्यों की उत्पत्ति का वर्णन किया गया है।

संक्षेप में कहानी इस प्रकार है :

    प्रारंभ में न तो ज़मीन थी और न ही आसमान , सर्वत्र  अविभक्त , अव्यवस्थित , निर्बाध और बेतरतीब हिलोरें मारती हुई जल राशि  थी। यह जल दो भागों में बँट गया।

    पहले भाग में  ताज़ा और मीठा जल आया जिसका प्रतिनिधित्व  अप्सु  देवता करते थे। दूसरे भाग में नमकीन और खारा जल आया जिसकी प्रतिनिधि देवी तियामत थी। अप्सु और तियामत के समागम से अन्य बहुत से छोटे देवताओं का जन्म हुआ। ये देवता अत्यंत शरारती और वाचाल थे जिसके कारण अप्सु की रातों की नींद और दिन के कामों में ख़लल पड़ता था।

       वज़ीर अम्मू की सलाह पर अप्सु ने इन छोटे देवताओं को मार डालने का निर्णय लिया जो तियामत को अच्छा नहीं लगा और उसने अपने सबसे बडे  पुत्र एनकी या इआ (Ea )को अप्सु की योजना से आगाह कर दिया जिससे अप्सु की योजना विफल हो गई और एनकी ने ही अप्सु को पहले सुला दिया और फिर उसे मार डाला। अप्सु के देहावशेष से एनकी ने अपना घर बना लिया।

     अप्सु की मौत से तियामत जो अभी तक अपने पुत्रों के साथ थी , क्रुद्ध हो गई और उसने किंगू (Quingu ) देवता की सलाह पर अपने  पुत्रों -छोटे देवताओं – के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। तिआमत ने किंगू को पट्टिका (tablet ) पुरस्कार में दिया जो एक देवता की हुकूमत और उसके द्वारा भाग्य नियंत्रण को अधिकृत करती थी।

     किंगू ने इस पट्टिका को गर्व से अपनी छाती पर बख्तर बन्द की तरह पहना था। किंगू के सहयोग से तिआमत ने अव्यवस्था की शक्तियों का आह्वान किया और उनसे अपने पुत्रों का वध करने के लिए इग्यारह भयंकर महादानव उत्पन्न किए।

तिआमत और उसके पुत्र छोटे देवताओं के बीच की इस लड़ाई में देवताओं को तब तक कोई सफलता नहीं मिली जब तक कि मर्दुक देवता उनका नेता बनकर सामने नही आया और उसने तिआमत का वध करने की प्रतिज्ञा नहीं कर ली। मर्दुक ने पहले किंगू को मारा और फिर अपने बाणों से तिआमत के टुकड़े कर डाले।

     तिआमत की आँखों से बहते हुए आँसुओं से दजला और फ़रात नदियां बह गईं और उसकी मृत देह से ज़मीन और आसमान बना। तिआमत द्वारा पैदा किए गए 11 महादानवों के मृत शरीर को मर्दुक ने अपने पाँवों में बांध कर अपने शौर्य का प्रदर्शन किया।

मर्दुक ने किंगू का बख्तरबंद ले लिया जिसके कारण उसकी हुकूमत को वैधता मिल गई और वह भाग्य विधाता बन गया।

जब मर्दुक की सृजन कला और वीरता का प्रशस्ति गान ख़त्म हो गया तब उसने बुद्धि के देवता इआ की सलाह पर  तिआमत को युद्ध के लिए भड़काने वाले  देवताओं के अवशेष से मनुष्य को सृजित करने का फ़ैसला किया। किंगु  के खून से इआ ने पहले मनुष्य लुलू को पैदा किया। यह मनुष्य मर्दुक और उसके साथी देवताओं को व्यवस्था क़ायम रखने तथा अव्यवस्था को दूर रखने में सहायता देने वाला था।

      इस तरह मरदुक ने दुनिया की ज़िम्मेदारी मनुष्यों को सौंप दिया और देवताओं को आसमान में उनके लिए तय जिम्मेदारी के साथ नियत स्थान पर तैनात कर दिया।

सुमेर और बेबीलोन की इस कहानी में प्रारम्भ में ब्रह्मांड अंडाकार और अनियंत्रित जल से भरा हुआ था जो बीचोंबीच फट कर दो गोलार्द्धों में बँट जाता है। दोनों गोलार्द्धों के बीच में चपटी गोल रोटी की तरह धरती है , ऊपरी गोलार्द्ध या गुंबद की छत पर  सूर्य , चंद्र , सितारे स्थापित हो जाते हैं और नीचे का गोलार्द्ध जिसमें खारा जल भरा है , परलोक है जहां मृत्यु के बाद का  जीवन है और जिसे मर्दुक नियंत्रित करते हैं।

     ब्रह्मांड का यह माडल प्राचीन दुनिया की सभी सभ्यताओं – मिस्र , बेबीलोन , हिब्रू , असीरिया आदि में करीब दो हजार साल तक मान्य रहा है जब तक कि  अरस्तू का नया माडल परिकल्पित नहीं हो गया।

     एनुमा एलिश की सृजन कथा तथा ओल्ड टेस्टामेंट के जेनेसिस में वर्णित ब्रह्मांड सृजन की परिकल्पना में काफ़ी हद तक समानता  मिलती है जिसके कारण उन्नीसवीं सदी में एनुमा एलिश कथा की जानकारी मिलने के बाद  यह माना जाने लगा है कि सृजन की सबसे पुरानी कहानी बाइबिल की जेनेसिस

की जगह सुमेर और बेबीलोन की उक्त एनुमा एलिश की कहानी है जिससे प्रभावित होकर हिब्रू विद्वानों और लेखकों ने बाइबिल के जेनेसिस की कहानी लिखी।

एनुमा एलिश की कहानी का प्रभाव जरथुस्त्री फ़िक्र पर भी पड़ा है। एनुमा एलिश का मर्दुक और तियामत जरथुस्त्रियो का क्रमशः अहुरमज्द और आंग्रेमन्यु है। एनुमा एलिश कथा में व्यवस्था बनाम अव्यवस्था का संघर्ष जरथुस्त्र की सोच में अच्छाई बनाम बुराई के संघर्ष में बदल जाता है।

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