अग्नि आलोक
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प्रतिफल

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…………… (कहानी कोरोना की)……………

गिरीश पटेल

यमराज, फ़ाइलें एक किनारे सरकाकर, ऑंखें बन्द कर, पीठ टिकाकर, आराम की मुद्रा
में अधलेटे से थे कि उनके पर्सनल सेक्रेटरी, प्रचंड ने उनकी तन्द्रा भंग की – “सर मैं एक बहुत
ही गोपनीय और महत्वपूर्ण सूचना लाया हूँ, आप सुनेंगे तो दंग रह जाएँगे” यमराज तन कर
सीधे बैठ गए । “हॉं बताओ क्या है वह सूचना”? “सर ज्यूपिटर ग्रह के वैज्ञानिकों ने एक अनूठा
यान बनाया है, जिसमें किसी ईंधन की कोई आवश्यकता नहीं होती, यह यान मन की शक्ति से
चलता है और इसमें किसी पायलट की ज़रूरत भी नहीं होती, केवल मन की धारणा से ही यह
अपने गन्तव्य की ओर चल पड़ता है और मन के वेग की तरह यह द्रुतगामी भी है और बिना
थके, जब तक आप सोचते रहेंगे, यह चलता ही रहेगा । इतना ही नहीं इसके अन्दर लिविंगरूम,
रेस्टरूम, डाइनिंग, बेडरूम के साथ ही स्वीमिंगपूल की भी व्यवस्था है । यह वातानुकूलित तो है
ही साथ ही इसमें ऐसी व्यवस्था भी है कि मन में जिस सुगंध के बारे में सोचेंगे वही सुगंध
सारे यान में व्याप्त हो जाएगी । मन चाहा सुस्वादु भोजन भी इसमें हर समय उपलब्ध रहेगा ।
क्या-क्या विशेषताएँ गिनाऊँ इसकी, यह अनोखा है । यह केवल एक ही बनाया जा रहा है जो
निश्चितरूप से काफी क़ीमती भी होगा । इस यान के निर्माण को बिल्कुल गोपनीय रख्खा गया
है, पूरे ब्रह्माण्ड में इसके बारे में कोई नहीं जानता पर चूँकि मेरा भाई भी इस प्रोजेक्ट पर एक
वैंज्ञानिक के रूप में कार्य कर रहा है इसी कारण से मुझे इसकी जानकारी मिली है । यह यान
शीघ्र ही बन कर तैयार हो जाएगा तब इसकी जानकारी सब को मिल जाएगी, ऐसी स्थिति में
इस विमान को प्राप्त करना असंभव हो जाएगा । इसे प्राप्त करने के लिए आप अभी से प्रयास
प्रारंभ कर दीजिए । जितनी भी क़ीमत इसकी रखी गई है, उसका इंतेजाम आप अभी से कर
लीजिए । कुबेर जी से आपकी अच्छी मित्रता है, उनसे आप दीर्घकालीन लोन ले लीजिए । पर
इतने से ही काम नहीं चलेगा, आपको दबाव भी बनाना होगा, इसके लिए आप अपने बड़े भाई
शनि देव व पिता सूर्य देव को राज़ी कर लीजिए । उनके दबाव के आगे उस विमान कम्पनी को
झुकना ही पड़ेगा” । यमराज को बात जंच गई और उन्होंने वही किया जो उनके पर्सनल सेक्रेटरी
प्रचंड ने कहा और अन्तत: वह विमान हासिल कर ही लिया, जब तक इस विमान का चर्चा पूरे
ब्रह्माण्ड में हो पाता, यह यमराज का हो चुका था । इस विमान के कारण यमराज, पूरे
ब्रह्माण्ड में चर्चा का विषय बन गए ।

यान हासिल कर यमराज बेसब्र हो गए और उन्होंने अपने पर्सनल सेक्रेटरी सहित
अपने प्रमुख स्टाफ़ को साथ लिया और जाते जाते चित्रगुप्त से बोले “मैं अपनी विशेष यात्रा पर
जा रहा हूँ और शीघ्र ही वापस लौटूँगा” । चित्रगुप्त ने हिचकिचाते हुए पूछा “सर ! शीघ्र यानि
कितने दिन में” यमराज ने अपनी लाल-लाल ऑंखों से चित्रगुप्त को घूरा, चित्रगुप्त ने अपनी
ऑंखें ही नहीं गर्दन भी सकपकाते हुए झुका ली ।
यमराज, अपने अनूठे यान पर अपने विशेष स्टाफ़ सहित यात्रा पर निकल पड़े । इस
यान की यात्रा में आनन्दविभोर हो वे इतने लीन हो गए कि कुछ पलों के लिए सब कुछ भूल
गए, कमोबेश यही स्थिति उनके सहयात्री स्टाफ़ की भी थी । एक ग्रह से दूसरे, दूसरे से तीसरे
की यात्रा जारी रही । दिन पर दिन, सप्ताह पर सप्ताह और महीनों पर महीने बीतते रहे पर
उनकी यात्रा समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही थी । इधर यमराज को वापस आता न
देखकर उनके स्टाफ़ ने, जिनमें अधिकतर यमदूत थे, छुट्टी की अर्ज़ी लगा दी । चित्रगुप्त ने
उनसे पूछा कि इतने सारे लोगों को इतनी लंबी छुट्टियॉं क्यों चाहिए ? सभी का एक ही जवाब
था कि बॉस तो अभी हैं नहीं और पता नहीं कब आते हैं, तब तक कोई काम भी नहीं है और
हमारी इकठ्ठी हुई ई० एल० का उपयोग भी हो जाय तो क्या बुरा है । चित्रगुप्त के पास कोई
चारा नहीं था लिहाज़ा उन्होंने छुट्टियॉं सेंक्शन कर दी, इस तरह नब्बे प्रतिशत यमदूत छुट्टी
पर चले गए । यमराज के जाने के तीसरे दिन से ही चित्रगुप्त लगातार उनसे सम्पर्क करने की
कोशिश कर रहे थे पर नाकामयाब रहे, हर बार यही संदेश मिलता कि जिससे आप सम्पर्क
करना चाहते हैं वह नेटवर्क कवरेज एरिया से बाहर है । ऐसी स्थिति में आकाशवाणी करना भी
उचित नहीं था क्योंकि आकाशवाणी के द्वारा कोई भी संदेश सार्वजनिक हो जाता, जो कि उचित
नहीं था । ऊपर से फ़ाइलों पर फ़ाइलें आती जा रही थी  उनकी मेज़ फ़ाइलों से भर गई तो
उन्होंने फ़र्श पर रखना शुरू कर दिया । कुछ ही दिनों में उनका कमरा फ़ाइलों से भर गया तब
उन्होंने दूसरे कक्ष में फ़ाइलें रखना शुरू कर दिया । ज्यों ज्यों फ़ाइलों का ढेर बढ़ता जा रहा था
त्यों त्यों उनके माथे पर चिंता की लकीर गहराती जा रही थी । इस बीच ऊपर से मैसेज भी आ
गया कि फ़ाइलें क्यों पेंडिंग हो रही हैं, इनका शीघ्र निराकरण किया जाय । चित्रगुप्त को समझ
में नहीं आ रहा था कि वे कैसे इस समस्या से पार पा सकते हैं । विमान से विभिन्न ग्रहों की
यात्रा  से यमराज का मन ही नहीं भर रहा था, पर्सनल सेक्रेटरी प्रचंड ने जब यह देखा कि यात्रा
पर निकले कई महीने हो गए हैं और शीघ्र वापस नहीं लौटे तो यमलोक की सारी व्यवस्था
अस्तव्यस्त हो जाएगी तो उन्होंने यमराज को यह समझाते हुए, वापस चलने का आग्रह किया ।
यमराज ने विषय की गंभीरता को समझा और वापस जाने के लिए तैयार हो गए । यान ने

जैसे ही यमलोक की कक्षा में प्रवेश किया वैसे ही विमान में इनबिल्ट फ़ोन सिस्टम के सिग्नल
चालू हो गए इस फ़ोन में वीडियोकॉल का ही सिस्टम था पर इसका वीडियो मूव होता रहता था,
बात करने वाले के साथ ही पूरे यान के अन्दर का नजारा भी साफ़ दिखाई देता था । यमराज
ने जैसे ही बटन पुश किया, चित्र गुप्त सामने थे । चित्रगुप्त ने देखा कि यमराज का मुखमंडल
तेजोमय आभा से दीप्त हो रहा था पर उनकी दाढ़ी बहुत बढ़ कर झूल रही थी यमराज ने यह
कहते हुए कि वे शीघ्र ही पहुँच रहे है, सम्बंध विच्छेद कर दिया । यमराज का संदेश मिलते ही
एक और संदेश आया वह था वीरभद्र (शिव के विशेष गण) का “यमराज को प्रभु महाकाल ने
शीघ्र उपस्थित होने के लिए कहा है” । यह समाचार कि यमराज शीघ्र ही यमलोक पधार रहे हैं,
जंगल की आग की तरह पूरे लोक में फैल गया । सेवक और दूसरा उपस्थित स्टाफ़ हरकत में
आ गया और उनके स्वागत की तैयारियॉं होने लगी । यमराज ने जैसे ही अपने महल कालीत्री
में प्रवेश किया वैसे ही उनकी और उनके सहयात्री स्टाफ़ का आरती उतार कर स्वागत किया
गया । चित्रगुप्त ने हाथ जोड़कर अभिवादन करते हुए वीरभद्र के मैसेज़ का ज़िक्र किया कि प्रभु
ने उन्हें शीघ्र उपस्थित होने का निर्देश दिया है । यह सुनते ही यमराज पसीना-पसीना हो गए ।
चित्रगुप्त ने कहा “सर मैंने आपके राजसी स्नान की व्यवस्था करवा दी है, साथ ही आपकी दाढ़ी
साफ़ करने के लिए भी सेवक को तैनात कर दिया है, मैंने यान में ही आपसे वार्तालाप के समय
आपकी बढ़ी हुई दाढ़ी को देख लिया था” । “नहीं” यमराज ने रोषपूर्ण शब्दों में जवाब दिया “यह
दाढ़ी अभी ज्यों की त्यों रहेगी” । यह कहते हुए वे स्नान के लिए चले गए । स्नान शीघ्रता से
पूर्ण कर, तैयार हो कर वे अपने पुराने ‘भैंसा’ नामक चार्टर्ड प्लेन से प्रभु से मिलने के लिए
निकल पड़े ।
कैलाश पहुँच कर अपने यान ‘भैंसा’ से नीचे उतर भारी क़दमों से वे चल पड़े वहॉं,
जहॉं प्रभु विराजमान थे । नंदी को प्रणाम कर उन्होंने प्रभु से मिलने की इच्छा प्रकट की । नंदी
ने किंचित स्मित के साथ उन्हें आगे की राह का संकेत दिया । थोड़ी दूर चलने पर उन्हें प्रभु
एक शिला पर ध्यान की मुद्रा में स्थित दिखाई दिए, उनसे हट कर थोड़ी दूर मॉं पार्वती एक
आसन पर विराजमान थी । यमराज को देखते ही मॉं मुस्कुराई, उनकी मुस्कुराहट देख कर
यमराज को ऐसा अनुभव हुआ जैसे सारी सृष्टि मुस्कुरा रही हो । यमराज साष्टांग दण्डवत की
मुद्रा में लोट गए । “अरे अरे उठो वत्स, हमारे यहॉं क़ालीन तो है नहीं, आपके बहुमूल्य वस्त्र
गन्दे हो जाएँगे” । मॉं के ये वचन उनके कानों में वीणा की तरह झंकृत हो गए । वे उठे और
हाथ जोड़ कर खड़े हो गए, मॉं ने उन्हें आसन ग्रहण करने के लिए कहा भी पर वे यूँ ही खड़े
रहकर बड़ी बेसब्री से प्रभु के ध्यान पूर्ण होने की प्रतीक्षा में कनखियों से बार-बार उस ओर देख

रहे थे । मॉं ने उनके मन के विचारों को भॉंप कर, बिना पूछे ही उन्हें उत्तर दिया “प्रभु का
ध्यान पूर्ण होने ही वाला है, बस जैसे ही नन्दी रम्भाएंगे वैसे ही प्रभु के नेत्र खुलेंगे, आपको
ज़्यादा देर तक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी” । मॉं का वाक्य अभी पूरा हुआ ही था कि नन्दी की
आवाज़ सुनाई पड़ी और प्रभु ने नेत्र खोल दिए । बिना कुछ कहे प्रभु ने यमराज की ऑंखों में
झाँका इससे वे अंदर तक सिहर गए, प्रभु की ऑंखों का तेज़ उनसे सहन नहीं हो पा रहा था, वे
दृष्टि चुराने लगे पर प्रभु का मौन उनकी सहनशक्ति की परीक्षा ले रहा था । कुछ क्षणों के
मौन के पश्चात प्रभु ने धीर-गंभीर वाणी में कहा “आपके पास जितनी फ़ाइलें भेजी गई हैं वे
सब की सब पेंडिंग क्यों है?” यमराज सिर झुका कर मौन रहे । प्रभु ने अपने वाक्य का विस्तार
किया “मैंने ध्यानस्थ स्थिति में देखा कि आप एक अतिविशिष्ट विमान की अनवरत यात्रा में
लीन थे, क्या आपका यह ऑफिसयल-टूर था?” यमराज बड़ी विकट स्थिति में फँस चुके थे, कुछ
भी उत्तर देते न बना । प्रभु ने उनकी बढ़ी हुई दाढ़ी को घूरते हुए कहा “दाढ़ी बढ़ा लेने से किसी
समस्या का हल नहीं निकल सकता, इससे मुख पर निरीहता के भाव अवश्य प्रकट होते हैं
जिससे कुछ सहानुभूति तो प्राप्त हो सकती है पर समस्या का हल कदापि नहीं” । यमराज मन
ही मन पछताने लगे कि काश उन्होंने  चित्रगुप्त की बात मानकर दाढ़ी साफ़ करवा ली होती,
यह सब सुनने से तो बच जाता । प्रभु ने यमराज के ‘मन की बात’ को भॉंप कर कहा “अब
पछताने से क्या होगा, मुझे आपकी दाढ़ी से कुछ भी लेना-देना नहीं है, जितनी फ़ाइलें आपके
पास आईं हैं शीघ्र उनका निराकरण कर रिपोर्ट भेजिए” । इन फ़ाइलों के सम्बन्ध में आप भैरव
(प्रमुख शिव गण) से सहायता प्राप्त कर सकते हैं व रिपोर्टिंग भी उन्हें कर सकते हैं । यमराज
ने सहमति से सिर हिलाया । प्रभु अपने स्वर को मृदुल करते हुए बोले “क्या बात है आपने तो
बिलकुल मौन व्रत धारण कर लिया है, यदि आप के मन में कोई बात हो तो पूछिए” । प्रभु के
नम्र व्यवहार से प्रभावित हो कर यमराज ने पूछ ही लिया “प्रभु अधिकांश फ़ाइलें मनुष्यों से
सम्बंधित ही हैं, पशु-पक्षियों व दूसरे जीवधारियों से सम्बंधित बहुत कम हैं न के बराबर ऐसा
क्यों?” प्रभु थोड़ा गम्भीर होते हुए बोले “मनुष्यों को मैंने अपनी तरह का बनाया, उसे बुद्धि दी
और चेतना भी, यह सोच कर कि वह अपने साथ ही अन्य जीवों का ख़याल रखेगा और उनकी
सहायता भी करेगा तथा प्रकृति का संरक्षण करके संतुलन क़ायम रखेगा पर इसका व्यवहार तो
समझ से परे है, यह तो निहायत स्वार्थी हो गया, जैसे-जैसे दिन व्यतीत होते गए यह स्वार्थी
और लालची होता गया, इसके लोभ का कोई अंत ही नहीं रहा, मैंने इनके लिए अगणित भोजन
की वस्तुएँ प्रदान की पर इसका मन ही नहीं भरा और वह अन्य जीवों को मारकर खाने लगा
जबकि मैंने उसके शरीर की संरचना एक शाकाहारी के रूप में की थी, इसके लोभ का कोई अंत
ही नहीं है, इसने पूरी प्रकृति को अस्तव्यस्त और विनष्ट करना शुरू कर दिया । जंगल काट

डालना, नदियों को खोद कर रेत निकालना उन्हें प्रदूषित करना उन पर बॉंध बनाना उनके तटों
को बर्बाद करना, भूमि का अंधाधुंध खनन कर पेट्रोलियम, गैस, धातुएँ, कोयला, हीरा निकालना ।
भूमि को बंजर बनाना और कंक्रीट के जंगल खड़े करना । जीवधारियों का अपने मनोरंजन के
लिए शिकार करना और खाना । बड़े-बड़े कल कारख़ानों के माध्यम  से वातावरण को प्रदूषित
करना और ओज़ोन परत को नष्ट करना । कृत्रिम तरंगों के माध्यम से प्राकृतिक तरंगों में
व्यवधान उत्पन्न कर पक्षियों को क्षति पहुँचाना आदि । इतना ही नहीं मैंने दिन और रात
बनाए, दिन कार्य करने के लिए और रात्रि विश्राम करने के लिए ताकि दिन भर के थके हारे
जीव रात के अँधेरे और नीरवता में आराम कर सकें पर इसने इतना कृत्रिम प्रकाश उत्पन्न कर
दिया कि रात भी दिन के समान हो गई, यहाँ पर भी यह नहीं रुका इसने रात की नीरवता को
भी समाप्त कर दिया जिससे तमाम जीवों के आराम में भी ख़लल पैदा हो गया । अब इन्हें
अपने कर्मों का प्रतिफल तो भुगतना ही होगा । यही सब कारण हैं कि मनुष्यों की फ़ाइलें
सर्वाधिक हैं, आप इन फ़ाइलों को शीघ्रातिशीघ्र निपटाइये” । यमराज ने हाथ जोड़ कर
स्वीकारोक्ति की मुद्रा में सिर हिलाया और उनके चरणों को पकड़कर अपना शीष स्पर्श कराया
। प्रभु ने आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ उठाते हुए आँखों से उन्हें जाने का इशारा किया । यमराज
तेज़ी से अपने चार्टर्ड प्लेन भैंसा की ओर बढ़ चले ।
यमलोक पहुँच कर यमराज सीधे चित्रगुप्त के पास गए और कहा “समझ में नहीं
आता कि आपने इतनी सारी फ़ाइलें क्यों पेंडिंग कर दी, आपको इन फ़ाइलों को निपटा देना
चाहिए था” । “पर सर आप नहीं थे ऐसे में आपके आदेश के बिना मैं कैसे कार्यवाही करता ।
मैंने आपसे लगातार सम्पर्क करने की कोशिश की पर असफल रहा” । चित्रगुप्त ने अत्यंत
विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया । यमराज बोले “आपको फ़ाइलें निपटा देना था, मैं आकर साइन कर
देता । क्या आपको मुझ पर इतना भी विश्वास नहीं था” । चित्रगुप्त ने सर झुका कर उत्तर
दिया, जैसे कोई बहुत दूर से बोल रहा हो “आप पर अविश्वास मैं कैसे कर सकता हूँ, मुझे नहीं
पता था कि आप इतने लम्बे समय के लिए जाएँगे, आप से सम्पर्क भी नहीं हो पा रहा था” ।
यमराज ने परेशानी की मुद्रा में कहा “ख़ैर जो हुआ सो हुआ अब शीघ्रातिशीघ्र इन फ़ाइलों को
निपटा दो” चित्रगुप्त क्षीण स्वर में बोले “लेकिन  नब्बे प्रतिशत यमदूत तो लम्बी छुट्टी पर गए
हैं, वे काफ़ी समय से छुट्टियाँ मांग रहे थे पर मैं उन्हें टाल रहा था आपकी अनुपस्थिति में
सभी छुट्टी के लिए अड़ गए, उनकी इ० एल० भी बहुत इकट्ठी हो गई थी, लिहाज़ा उन्हें छुट्टी
देनी पड़ी” । “क्या ???????” यमराज ने माथा पकड़ लिया । नए अनूठे यान की यात्रा का सारा
आनन्द काफ़ूर हो गया उन्होंने मन ही मन प्रतिक्रिया दी “यह यात्रा तो महँगी पड़ गई” ।

उन्होंने प्रचंड को आदेश दिया कि तुरंत आपातकालीन मीटिंग बुलाई जाए उसमें मेरे विशेष
सहायक चंड, चित्रगुप्त और आप के सिवा पूरा मौजूदा स्टाफ़ रहेगा । मीटिंग में गम्भीर मंत्रणा
चली, सबसे बड़ी समस्या यह थी कि केवल दस प्रतिशत यमदूतों के बल पर इतनी सारी फ़ाइलें
कैसे निपटाई जा सकती हैं ? किसी ने सुझाव दिया कि, प्लेग, हैज़ा, चेचक, चिकनगुनिया, डेंगू
आदि महामारियों को यह काम सौंपा जाये । तुरंत दूसरे ने इस बात को काटते हुए कहा कि ये
महामारियाँ अब बूढ़ी और निस्तेज हो गई हैं, अब मनुष्यों पर इनका कोई असर नहीं होता, कुछ
और ही सोचना होगा । कोई हल न निकलता देख यमराज ने बड़े भाई शनि से सम्पर्क स्थापित
कर अपनी समस्या बताई तो शनि ने सुझाव दिया कि उनके बजाय इसके लिए राहु और केतु
के पास अच्छा हल हो सकता है । केतु से सम्पर्क करने पर उन्होंने बताया कि “एक बहुत ही
शक्तिशाली व बलिष्ठ एकदम युवा महामारी ‘कोरोना’ तैयार है पर अभी उसके बारे में कोई
जानता नहीं है, आप कहें तो मैं तत्काल उसे भेज दूँ” । यमराज की सहमति के प्राप्त होते ही
कोरोना दरबार में हाज़िर हो गया, साथ ही राहु और केतु भी थे। केतु ने बताया कि “कोरोना
बहुत बलिष्ठ है और एकदम युवा आप इन्हें काम तो सौंपिए और देखिए कि इसका असर
कितनी तेज़ी से होता है” । यमराज ने राहु की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा । राहु ने सहमति
में सिर हिलाते हुए कहा कि “केतु का कहना सही है, आप चिंता न करें मैं कोरोना की पूरी
सहायता करूँगा और उसे बराबर निर्देशित करूँगा” । यमराज ने राहु को विस्तार से घटना और
कार्य की जानकारी देते हुए यह कार्य उन्हें सौंप दिया । कोरोना ने राहु से पूछा कि उसे क्या
और कैसे करना है यह तरीक़े से समझा दिया जाए । राहु ने कोरोना से कहा “तुम्हारा कार्यक्षेत्र
पूरा पृथ्वीलोक है पर तुम्हें सबसे पहले चीन जाना है क्योंकि यहाँ के लोगों ने प्रकृति को सब
से ज़्यादा हानि पहुँचाई है इसलिए शुरूवात यहीं से करो फिर इसके बाद पूरे विश्व में फैल
जाओ । तुम परेशान तो किसी को भी उसके कर्मों के हिसाब से कर सकते हो पर मारना केवल
उन्हें ही है जिनकी फ़ाइलें तुम्हें सौंपी जा रही है । तुम्हें कुछ पूछना है तो पूछो” । कोरोना ने
पूछा कि “क्या ऐसी जगहें भी हैं जहां आक्रमण नहीं करना ?”  “नहीं” राहु ने उत्तर देते हुए कहा
“आक्रमण तो हर जगह करना है, ख़ासकर वहां जहां भीड़ काफ़ी हो । पर कुछ स्थानों पर ख़्याल
रखना है जहां चुनाव हो रहे हों, जहां सरकार गिराई जा रही हो, जहां धार्मिक आयोजन हो रहे हों
वहां आक्रमण थोड़ा हल्का रखना है, जब वहां कार्य सम्पन्न हो जाए तब लोगों को पूर्ण गिरफ़्त
में लेना है, और कुछ पूछना हो तो पूछो” । कोरोना ने कहा कि उसे और कुछ नहीं पूछना है ।
और वह अपने काम पर लग गया ।

राहु के निर्देशानुसार कोरोना ने पहले चीन पर धावा बोला और कोरोना से ग्रसित
लोग मरने लगे चीन सकते में आ गया । पहले तो सारी दुनिया ने यह समझा कि यह आफ़त
केवल चीन पर आई है इसलिए इससे चीन ही निपटेगा पर दुनिया की यह सोच कुछ ही महीनों
में ग़लत साबित हो गई और कोरोना ने धीरे धीरे सारी दुनिया को गिरफ़्त में ले लिया । यह
बात खुलकर सामने आ गई कि कोरोनाग्रस्त व्यक्ति के स्पर्श से या उसके सम्पर्क में आने से
दूसरा व्यक्ति भी कोरोनाग्रस्त हो जाएगा, इसके पहले कि लोग सम्हल पाते या कोई ठोस
योजना बना पाते वे तेज़ी से इसकी चपेट में आने लगे । डॉक्टरों और मेडिकल विभाग ने जी
जान से जुटकर इससे लोहा लेने की कोशिश की और कुछ हद तक सफल भी हुए पर लोगों में
दहशत और घबराहट का माहौल तारी हो गया । मेडिकल विभाग व सुरक्षा एजेंसियों ने जहां
एक ओर अपने प्राणों की परवाह न करते हुए भी इससे लड़ने की कोशिश की वहां दूसरी ओर
कुछ लोगों ने भयंकर लूट मचाई और दवाओं तथा उपयोगी वस्तुओं की कालाबाज़ारी करने से
भी नहीं चूके । राहु ने कोरोना से प्रगति के बारे में पूछताछ की तो कोरोना ने बताया कि
डॉक्टर नामक प्राणी मेरे कार्य में बहुत व्यवधान उत्पन्न कर रहे हैं इस पर राहु ने सुझाया कि
पहले उन्हीं का सफ़ाया करो और कोरोना ने वैसा ही किया । डॉक्टर व सुरक्षाकर्मियों के मरने
से त्राहि-त्राहि मच गई । कोरोना ने लगभग अपनी पूरी ऊर्जा इस कार्य में झोंक दी । पूरा विश्व
कोरोना से आक्रांत हो गया । भयावह स्थिति निर्मित हो गई पर धीरे-धीरे कोरोना की ऊर्जा चुक
गई तो कोरोना ने राहु को बताया कि वह बहुत थक चुका है और उसे फिर से ऊर्जा प्राप्त करने
के लिए आराम और तपस्या की आवश्यकता है और कोरोना गहन तपस्या में लीन हो गया ।
राहु ने प्रचंड को कोरोना की स्थिति से अवगत कराते हुए यह रिपोर्ट यमराज को
देने के लिए कहा । यमराज ने स्थिति को समझते हुए चंड को निर्देश दिया कि कोरोना की
अनुपस्थिति में उपस्थित सभी दूतों को काम पर लगे रहने का प्रबंध कर जितनी संभव हो
उतनी फ़ाइलें निपटाना जारी रखें और चंड ने आदेश का पालन किया जिससे कोरोना के बिना
भी लोग मरने लगे । कोरोना की अनुपस्थिति में कोरोनाग्रस्त लोगों की संख्या धीरे-धीरे कम
होने लगी जिससे लोगों ने समझ लिया कि अब कोरोना पर विजय प्राप्त हो गई है, इससे वे
लापरवाह होने लगे और फिर से पूर्ववत जीवन जीने लगे । कुछ महीने बीत गए और लोग मौज
मस्ती में आ गए । इधर कोरोना ने तपस्या से काफी ऊर्जा प्राप्त कर ली । राहु से मिलकर
कोरोना फिर से काम पर लग गया और वायु तत्व में समाहित हो गया ।
कोरोना के वायु तत्व में समाहित होने से अब वायु से एक-दूसरे के सम्पर्क आने से
ही लोग संक्रमित होने लगे । कोरोना फिर क़हर बरपाने लगा । अस्पताल फिर मरीज़ों से पटने

लगे । वायु तत्व की गड़बड़ी से ऑक्सीजन की कमी होने लगी और इसकी पूर्ति के अभाव में
लाशें ही लाशें दिखाई देने लगी, लाशों को दफ़नाना भी मुश्किल हो गया । शासन-प्रशासन सब
किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए तथा लोग और गहरी दहशत में आ गए । बाज़ार और सार्वजनिक स्थान
सब बंद हो गए, आवागमन के साधन तथा आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति भी प्रभावित हो गई ।
जन जीवन अस्तव्यस्त और भयाक्रान्त हो गया । पर इस बार डॉक्टर व अन्य मेडिकल स्टाफ़
ने अपने आपको बचाते हुए कार्य किया और टीकाकरण में बहुत मेहनत की । दूसरी ओर यह
सब करते-करते कोरोना फिर बुरी तरह थक गया और उसकी ऊर्जा अत्यंत क्षीण हो गई । पूर्व
की भाँति पुनः कोरोना आराम कर तपस्या में लीन हो गया । कोरोना की अनुपस्थिति से
जनजीवन फिर से सामान्य होने लगा । इधर यमराज ने चित्रगुप्त से जानकारी चाही कि
कितनी फ़ाइलें निपट चुकी हैं तो उन्हें यह पता चला कि काफ़ी फ़ाइलें निपट गई हैं फिर भी
आधे से अधिक फ़ाइलें अभी भी पेंडिंग हैं । यमराज ने चण्ड से कार्य की प्रगति के बारे में पता
किया तो पता चला कि थोड़े से यमदूतों के माध्यम से अधिकतम जितना कार्य किया जा
सकता था उतना किया गया है तथा वे अभी भी कार्य में मुस्तैदी से लगे हुए हैं । यमराज सोच
में पड़ गए कि कोरोना की अनुपस्थिति में ऐसा क्या किया जाए कि फ़ाइलें निपटती रहें और
प्रगति न रुके । कुछ सोच कर उन्होंने इंद्रदेव से सम्पर्क किया तो उनका जवाब आया कि एक
आपातकालीन बैठक बुलाई जाए जिसमें ख़ास-ख़ास देवताओं के साथ आप भी उपस्थित रहिए ।
अगले ही दिन इन्द्र देव के दरबार में देवताओं के साथ यमराज भी उपस्थित हुए, जिसमें
सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि कोरोना की अनुपस्थिति में अग्नि देव, पवन देव और
वरुण देव इस मोर्चे को सम्हालें । ज़रूरत पड़ने पर न केवल अन्य देवों को भी कार्य पर लगाया
जाएगा अपितु इंद्र देव स्वयं भी सहायता करेंगे ।
अग्नि देव कुपित हो कर अपने कार्य पर लग गए और उन्होंने अमेरिका के
कैलिफ़ोर्निया, ब्राज़ील के अमेज़न, ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स, ब्रिटेन के कोलंबिया के जंगलों
सहित साइबेरिया, ग्रीस, टर्की, लेबनान, प्ल्यूमास और ब्यूट के जंगलों पर भी भारी अग्निपात
किया जिससे ये जंगल धू-धू करके जलने लग गए जिस पर क़ाबू पाना अभी भी संभव नहीं हो
पाया है ।
इधर वरुण देव और पवन देव भी इंद्र देव की देखरेख में अपने काम पर लग गए
जिससे भारी बारिश और तूफ़ान के साथ ही नदी-नालों में बाढ़ आ गई । बारिश के पानी ने
शहरों में घुसकर विकराल नदी जैसा रूप ले लिया जिससे जनजीवन अस्तव्यस्त हो गया, कइयों
की जानें गईं और न जाने कितने लोग बेघर हो गए । चीन, भारत, जापान, टर्की, जर्मनी और

इटली सहित दुनिया के कई देश इसकी चपेट में आ गए । चीन में धूल भरी आंधी, टाइटून
इनफा और सुनामी ने भारी तबाही मचाई, अतिवृष्टि से वहॉं के ४१ शहर जलमग्न हो गए, भारी
जन-धन हानि हुई, कई नियंत्रित रोग फिर से उभरने लगे, कमोबेश यही स्थिति अन्य देशों की
भी रही । तबाही का भारी मंज़र सामने आया । भूस्खलन और भूकंप ने भी अपनी भयंकर
भूमिका अदा करने में कोई कसर बाक़ी नहीं रखी । जिन क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदा नहीं आई
थी वे भी इन समाचारों को सुनकर भयाक्रांत हो गए । 
कोरोना ने तपस्या से पर्याप्त ऊर्जा प्राप्त करली और राहु से सम्पर्क स्थापित किया
। राहु ने प्रचण्ड से पूछकर पुन: कोरोना को काम पर लगा दिया और इसकी सूचना यमराज को
दे दी । इस बार कोरोना जल तत्व में समाहित हो गया, ऐसा करने से छोटे बच्चों पर तेज़ी से
असर पड़ा और वे उल्टी और दस्त से पीड़ित होकर काल कल्वित होने लगे । अस्पतालों में इस
बार ऑक्सीजन की पर्याप्त व्यवस्था की गई थी पर उससे ज़्यादा ज़रूरत अब टॉयलेट्स की
पड़ने लगी पर अचानक इतने सारे टॉयलेट्स की व्यवस्था करना आसान नहीं था जिससे
अस्पतालों की व्यवस्था चरमरा गई ।पूरा प्रबंधन और मरीज़ सकते में आ गए,बच्चों के साथ ही
अब वयस्क भी बीमार हो कर काल के ग्रास बनने लगे । दूसरी ओर आग, बाढ़, ज्वालामुखी,
भूकंप, भूस्खलन पूर्ववत जारी थे । 
चारों तरफ़ मृत्यु का तांडव होने लगा, हाहाकार मच गया, तो क्या सब कुछ समाप्त
हो जाएगा । कहीं यह प्रलय का पूर्व संकेत तो नहीं ? बरबस याद आ रही है महाकवि जयशंकर
प्रसाद की अमर कृति कामायनी के ‘चिंता सर्ग’ में वर्णित जल प्लावन की ये पंक्तियाँ-
पंचभूत का भैरव मिश्रण
शंपाओं के शकल-निपात
उल्का लेकर अमर शक्तियाँ
खोज रहीं ज्यों खोया प्रात
उधर गरजती सिंधु लहरियाँ
कुटिल काल के जालों सी,
चली आ रहीं फेन उगलती
फन फैलाये व्यालों-सी।

प्रलय होगी या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता पर यह तो तय है कि – ‘मनुष्य
मजबूर है अपने कर्मों का प्रतिफल भोगने हेतु’ ।
अरे हॉं यह बताना तो रह ही गया कि पेंडिंग फ़ाइलों का बहुत बड़ा हिस्सा निपटा
लिया गया था और छुट्टी पर गए सारे यमदूत भी वापस लौट आए थे । चित्रगुप्त से बात कर
यमराज बहुत संतुष्ट नज़र आ रहे थे, अपने महल कालीत्री में दो घंटे बाद मिलने का आदेश
उन्होंने चित्रगुप्त को दिया । जब चित्रगुप्त नियत समय पर यमराज से मिलने पहुँचे तो देखा
कि यमराज की दाढ़ी नदारद है और उनका मुखमंडल  अपूर्व तेज से देदीप्यमान हो रहा है तथा
उनके परिधान उनके व्यक्तित्व को चार चाँद लगा रहे हैं वे अत्यंत प्रभावशाली दिखाई दे रहे थे
। यमराज ने खड़े होते हुए चित्रगुप्त से कहा “सारे यमदूत तो काम पर वापस आ ही गए हैं,
कोरोना और देवता गण भी सक्रिय हैं, ऐसी स्थिति में बची हुई फ़ाइलें अतिशीघ्र निपट जाएँगीं
ऐसा मेरा विश्वास है । मैंने सभी फ़ाइलों में हस्ताक्षर कर दिए हैं, मुझे लगता है कि अब
आपको किसी तरह की कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए, आप कृपया भैरव जी को रिपोर्ट भेज
दीजिए” । कहते हुए यमराज प्रचंड सहित अपने विशेष अनूठे यान की ओर बढ़ गए । 

  • गिरीश
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