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*बड़ी मात्रा में रोजाना स्लो पॉइजन का सेवन*

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(विश्व स्वास्थ्य दिवस विशेष 7 अप्रैल 2025)

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

आज के आधुनिक युग में मनुष्य ने जितनी तरक्की की है, उतना ही स्वास्थ्य से खिलवाड़ भी हुआ है और वक्त के साथ यह लगातार बढ़ रहा है, जिसका कारण मनुष्य स्वयं हैं। हृदय रोग, मस्तिष्क आघात, कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां तेजी से बढ़ रही है, साथ ही मधुमेह, रक्तचाप, मोटापा, कमजोरी, आहार में पोषक तत्वों की कमी की समस्या तो चरम पर है, इस वजह से असमय मौत का आंकड़ा दिन-ब-दिन बढ़ रहा है, कुछ पल पहले एकदम स्वस्थ नजर आनेवाला व्यक्ति, बड़ों से लेकर छोटे-छोटे बच्चे भी खेलते या व्यायाम करते हुए या बैठे-बैठे भी गश खाकर गिरते है और पता चलता है कि मौत हो गयी। एक दशक पहले जो जानलेवा बीमारियां हमें केवल कभी-कभार ही सुनने मिलती थी, अब वो बीमारियां रिश्ते-नातेदारों, आस-पड़ोसियों और हमारे घर-परिवार के लोगों तक पहुंच चुकी हैं। मनुष्य का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बेहद कमजोर हुआ है, मौसम के करवट लेते ही बीमारियां तुरंत जकड़ लेती हैं। हमारे देश में औसत आयु दर पाश्चात्य देशों की तुलना में लगातार गिर रही हैं। विश्व प्रसन्नता रिपोर्ट 2024 में 143 देशों में से भारत को 126वां स्थान दिया गया। भारत खुशी के मामले में पाकिस्तान, लीबिया, इराक, फिलिस्तीन और नाइजर जैसे देशों से भी पीछे हैं। कभी इस समस्या पर गंभीरता से विचार किया है कि बीमारियां तेजी से क्यों बढ़ रही है? क्या वजह हो सकती है? स्वस्थ जीवन जीने के लिए क्या हमें रोज शुद्ध ऑक्सीजन, स्वच्छ पानी और पोषक आहार पर्याप्त मात्रा में मिल रहा है?

प्रदूषण और अस्वच्छता हमारी सांसे छीन रही हैं। वायु गुणवत्ता सूचकांक 2024 आंकड़ों के अनुसार, विश्व के उच्चतम पांच सबसे ज्यादा प्रदूषित देशों में भारत देश हैं। भारत का लगभग 70 प्रतिशत जल प्रदूषित है, तथा देश की लगभग आधी नदियाँ पीने या सिंचाई के लिए असुरक्षित है, इस कारण 2024 के वैश्विक जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों में से भारत 120वें स्थान पर हैं। 2023 में बीएमजे में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में हर साल 2.18 मिलियन मौतें बाहरी वायु प्रदूषण के कारण होती हैं। लैंसेट 2019 में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में 500,000 से अधिक मौतें जल प्रदूषण के कारण हुईं। बड़े पैमाने पर देश में हजारों करोड़ रुपयों का नकली दवाइयों का कारोबार चलता है, बड़े-बड़े सरकारी अस्पतालों में तक नकली दवाइयाँ मरीजों को बांटी जाती हैं। एशिया के बड़े अस्पतालों में शामिल महाराष्ट्र राज्य के नागपुर में स्थित सरकारी मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में यह घटना हाल ही में उजागर हुयी।

अन्न उगाने से लेकर हमारे थाली में परोसने तक उसे अनेक हानिकारक रासायनिक प्रक्रियाओं से गुजारा जाता हैं। देश में अशुद्ध खान-पान और अस्वच्छता की समस्या बहुत ही ज्यादा है, लोग स्वार्थ और लालच में इतने अंधे हो चुके है, कि अपने एक रुपये के फायदे के लिए भी लोगों को जहर खिलाने तैयार हैं। हाल ही में महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर से खबर आई कि शवों पर इस्तेमाल की गई बर्फ का उपयोग बाजार में मिलने वाले शीत पेय में किया जा रहा था। आश्चर्यजनक है, कि देश में उत्पादन से ज्यादा दूध और दुग्धजन्य खाद्यपदार्थ बेचे जाते है, देश के 68.7 प्रतिशत दूध और दूध उत्पादों में प्रदूषक पाए गए है। तेल, घी, शक़्कर, नमकीन, मैदेयुक्त खाद्यपदार्थों की मांग अत्याधिक होती है, जबकि यह सेहत पर बेहद बुरा असर करते हैं। शहद, मसाला, चाय पत्ती, तेल, दूध, मिठाइयां, घी, केसर जैसे खाद्यपदार्थों में मिलावट बहुत ज्यादा हैं। बाहरी खाद्य पदार्थों के रंग बहुत ज्यादा तेज और आकर्षित नजर आते है, अधिकांश खाद्य पदार्थों को रंगने के लिए प्राकृतिक रंगों के स्थान पर हानिकारक कृत्रिम रंगों का उपयोग किया जाता है, खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल होने वाला बाहरी बर्फ, पानी, चटनियां, सॉसेज, खाद्यतेल गुणवत्ता की कसौटी पर अधिकतम खरी नहीं उतरतीं। देश के अधिकतर स्ट्रीट फूड विक्रेताओं को खाद्य सामग्रियों में बिना दस्तानों के सीधे हाथ लगाने की बहुत बुरी आदत नजर आती है, इसका खामियाजा ग्राहकों के स्वास्थ्य को भुगतना पड़ता हैं। जो पशुओं के लिए भी ठीक नहीं, वह खाद्य अर्थात घातक कचरा मनुष्य स्वाद लेकर खा रहा हैं।

देश में ज्यादातर खाद्य पदार्थों को पैक करने और लपेटने में अखबारों का इस्तेमाल किया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। एफएसएसएआई के अनुसार, खाद्य पैकेजिंग सामग्री के रूप में शोषक कागज के बजाय समाचार पत्रों के व्यापक उपयोग के कारण भारतीयों में धीरे-धीरे विषाक्तता फैल रही हैं। मैदा रासायनिक रूप से प्रक्षालित (जहरीला) होता है, इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स उच्च होता है जिससे टाइप 2 डायबिटीज हो सकता है, इसमें फाइबर की कमी के कारण यह पाचन तंत्र में बाधा डालता है। खाद्य तेल का व्यापक स्तर पर पुनर्चक्रण कर जंक फूड तैयार किया जाता है, तेल को बार-बार गर्म करने से लिपिड का ऑक्सीडेटिव विघटन होता हैं। दोबारा गर्म किए गए तेल से बने भोजन का लंबे समय तक सेवन करने से व्यक्ति के एंटीऑक्सीडेंट रक्षा नेटवर्क पर गंभीर असर पड़ सकता है, जिससे उच्च रक्तचाप, मधुमेह और संवहनी सूजन जैसी विकृतियां पैदा हो सकती है, आगे चलकर यह जानलेवा बीमारियों का कारण बनते हैं। जंक फूड या बाहरी फूड से उच्च कोलेस्ट्रॉल, हृदय रोग, मधुमेह, गुर्दे की क्षति, मोटापा, यकृत रोग, कैंसर, दंत क्षति, अवसाद, पेट संबंधी विकार, त्वचा संबंधी रोग जैसी समस्याओं की संभावना बढ़ती हैं। पैक्ड फूड, पेय के कारण हम माइक्रोप्लास्टिक का सेवन कर रहे हैं। भारत में 56 प्रतिशत बीमारियाँ अस्वास्थ्यकर आहार से संबंधित हैं। आयुर्वेद कहता है कि, यदि आहार सही नहीं है तो स्वास्थ्य सुधारने के लिए दवा भी काम नहीं करती।

स्ट्रीट फूड शेफ या खाद्यपदार्थ विक्रेता सरकारी निर्देशों का कड़ाई से पालन करें। अपने हाथ स्वच्छ धोएं, स्वच्छ बर्तन व उपकरण का प्रयोग करें, दुकान पर स्वच्छता बनाए रखें, कच्चे और पके भोजन को अलग रखें, खाद्यपदार्थ तैयार करने के लिए पीने के पानी का उपयोग करें। धुले हुए साफ कपड़े पहनें, खाद्यपदार्थ बनाते और परोसते समय दस्ताने और एप्रन पहनें। काम करते समय अपना चेहरा, बाल ढकें और अपने चेहरे, सिर, बालों को या शरीर में अन्य कही भी छूने या खरोंचने से बचें। नाखून कटे हुए और साफ रखें। खाद्य पदार्थों को सुरक्षित तापमान पर रखें, बेहतर व अच्छे गुणवत्ता के कच्चे माल का चयन करें, स्थानीय सरकारी नियमों के अनुसार कचरे का योग्य निपटान करें। तलने के लिए एक ही तेल का पुनर्चक्रण न करें, खाद्यपदार्थों को ढककर रखें, बांसी खाद्यपदार्थों की बिक्री न करें। इन नियमों का पालन सख्ती से होना चाहिए। भले ही स्वच्छता और गुणवत्ता के लिए थोड़ा पैसा ज्यादा खर्चना पड़े, लेकिन सेहत से खिलवाड़ न हों।

हमें मरने के लिए कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है, हमारा आसपास का वातावरण और हमारी जीवनशैली ही है जो हमें असामयिक मृत्यु की ओर तेजी से ले जाती है। देश में बहुत से वायरल फूड वीडियो, खबरों से भी खाद्य पदार्थों में गंदगी, घटिया गुणवत्ता वाली खाद्य सामग्री, घातक रासायनिक प्रक्रिया, विषैले रंग और मिलावटखोरी की जानकारी मिलती हैं। बंद कमरों में तैयार होने वाले बहुत से खाद्य पदार्थों की गुणवत्त्ता पर संदेह निर्माण होता है, फिर भी सड़कों पर, रेल्वे, बस अड्डों और सार्वजानिक स्थानों पर वह खाद्यपदार्थ धड़ल्ले से बिकते हैं। देश में बड़ी मात्रा में मिलावटखोरी के साथ ही नकली कंपनी के खाद्य व पेय पदार्थ भी खूब बिकते हैं। अपनी और अपनों की सेहत की जिम्मेदारी हमारी स्वयं की है, जबान के स्वाद के लालच में अपने अमूल्य स्वास्थ्य को दांव पर न लगायें। घर के खाने को प्राथमिकता दें, रोजाना व्यायाम, पर्याप्त नींद, स्वच्छता और पौष्टिक आहार का ध्यान रखें। गर्म पेय-खाद्य हेतु प्लास्टिक और मुद्रित रद्दी पेपर का प्रयोग बिलकुल न हों। बासी खाना, तली, मसालेदार, मीठी, मैदायुक्त, कृत्रिम रंगयुक्त, पैक्ड फूड, रासायनिक प्रक्रिया से गुजरने वाले खाद्यपदार्थों से दूरी बनायें। सफर में या बाहर जाते वक्त जरूरत हो तो घर से ही पीने का पानी और भोजन साथ लेकर चलें। स्वास्थ्य ही संपत्ति है, सेहत संभाले, निरोगी जीवन जियें।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

मोबाईल आणि व्हॉट्सॲप क्र. 082374 17041

prit00786@gmail.com

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