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लता एक अमर वटवृक्ष

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राजकुमार जैन

(स्वतंत्र विचारक)

365 दिन बीत गए, इंदौर में जन्मी हेमा, और लता मंगेशकर के नाम से सम्पूर्ण विश्व में जानी और पहचानी गई अजीमोशान शख्शियत को हमसे बिछड़े हुए। 

उनको नम आंखों से  श्रद्धांजलि नहीं बल्कि रूंधे गले से स्वारंजली अर्पित करते हुए आज हम उनके जीवन के कुछ विशेष पहलुओं पर एक नजर डालने का प्रयास करते है उनके पिता दीनानाथ जी का मूल उपनाम हार्डिकर था, वे गोवा के मंगेशी गांव के रहने वाले थे, अतः उन्होंने अपना उपनाम मंगेशकर रख लिया था, पारिवारिक परिस्थितियो के चलते लताजी पढ़ाई तो अधिक नहीं कर सकीं थीं लेकिन दुनिया की 6 बड़ी यूनिवर्सिटीज ने उन्हें डॉक्टरेट की डिग्री प्रदान की है। वैसे तो इस महान गायिका को उनके सम्पूर्ण जीवन काल मे अनेकों पुरस्कारों और अलंकारणों से नवाजा गया था लेकिन वो एक ऐसी अजीमोशान शख्सियत थी जिनके अपने जीवन काल मे ही उनके नाम से अन्य कलाकारो को पुरस्कार दिये जाने लगे थे, वो एक जीवित किदवंती थीं।

क्या आप यकीन करेंगे कि एक समय ऐसा भी था जब शशधर मुखर्जी ने उनकी आवाज को बहुत पतली बताते हुए युवा लता से गाना गवाने से मना कर दिया था और उसी लता का इसी संसार में लोकप्रियता और सम्मान का यह आलम भी हमने देखा है कि इंग्लैंड के

लॉर्ड स्टेडियम में उनके लिए एक परमानेंट गैलरी रिजर्व रहती थी जहां बैठकर वो अपना पसंदीदा खेल क्रिकेट देख सकती थी और तो और 1974 में लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में प्रस्तुति देने वाली वो प्रथम भारतीय थीं। गायकी की अपनी इस 70 से अधिक सालों की लंबी यात्रा मे लताजी ने 36 भाषाओं में 50 हजार से ज्यादा गाने गाये थे, उनके पेशेवर गायन की शुरुआत 1943 में मराठी फिल्म गजभाऊ के ‘माता एक सपूत की दुन‍िया बदल दे तू’ गाने के साथ हुई थी। 1948 में आई फिल्म ‘मजबूर’ में गुलाम हैदर के संगीत निर्देशन में गाया गाना  ‘द‍िल मेरा तोड़ा, मुझे कहीं का ना छोड़ा’ का स्वरों की दुनिया मे लता जी को स्थापित करने मे बड़ा योगदान रहा, गुलाम हैदर वो पहले संगीत निर्देशक थे जिन्होंने उनकी आवाज पर विश्‍वास जताया था। फिर 1949 में लोगों ने सुना फिल्म महल का धूम मचाने वाला गीत  “आयेगा आने वाला… आयेगा” और इस गाने से उनकी जादूई आवाज का नशा जो लोगो के सर चढ़ा तो आज तक नही उतरा और ना ही कभी उतरेगा।

स्वर कोकिला, नाईटएंगल ऑफ इंडिया, सुर साम्राज्ञी आदि के नाम से मशहूर, भारत रत्न, पद्म भूषण, पद्म विभूषण जैसे देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से सम्मानित हम सबकी चहेती “दीदी” लता दीनानाथ मंगेशकर ने 6 फरवरी 2022 की सुबह इस दुनिया में अपने गौरवशाली 92 वर्ष बिताने के बाद दूसरी दुनिया में जाने का निर्णय लिया था, इस निर्णय को मृत्यु तो कदापि नहीं कहा जा सकता क्योंकि *मौत भी लता को नहीं मिटा सकती है, जब तक इस ब्र्म्हांड में ध्वनि का अस्तित्व है तब तक लताजी जिंदा रहेंगी,  कुरुक्षेत्र में कृष्ण ने कहा था ‘वृक्षों में मैं पीपल हूँ, पर्वतों में मैं हिमालय हूँ’ इसी तरह स्वयम भगवान श्रीकृष्ण भी यही कहते कि “इस संसार की हर ध्वनि में मैं लता हूँ”* ।

आज उनकी प्रथम पुण्यतिथि के अवसर पर भारत ही नही सम्पूर्ण विश्व उन्हें शिद्दत से याद कर रहा है। अल सुबह से ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और अन्य माध्यमों पर उन्हें स्वरांजलि (श्रद्धांजलि नहीं लिखूंगा) देने वालों का तांता बंधा हुआ है।

चकाचौंध भरी फिल्मी दुनिया की स्वर साम्राज्ञी का अपना निजी जीवन बेहद सादा सरल रहा था, अपने परिवार से मजबूती से जुड़ी होकर वो बेहद संकोची स्वभाव की महिला थी, इसी कारण उनके जीवन से जुड़े कई पहलू लोगों के बीच रहस्य की तरह ही रहे है। एक बार मंच पर गाने के लिए उन्हें ₹25 मिले थे जिसे वो अपने जीवन की पहली कमाई मानती थी, बहुत कम लोगों को पता है कि उनको YSL PARIS ROSES (वाय एस एल पेरिस रोज) नाम का परफ्यूम बेहद पसंद था, हीरों से उन्हे खासा लगाव था लंदन की बॉन्ड स्ट्रीट स्थित हैरी विंस्टन नामक दुकान हीरे

खरीदने के लिए उनकी पसंदीदा जगह थी, अपने विदेशी दौरो के दौरान कभी कभी नीले रंग का सलवार सूट पहन कर केसीनों में सारी रात स्लॉट मशीन पर खेलना उनको पसंद था, साड़ियों का उनके पास विशाल संग्रह था चंदूभाई मट्टानी द्वारा संचालित लीसिस्टर स्थित “सोना-रूपा” साड़ीयों के लिए उनकी प्रिय जगह थी। गायन, क्रिकेट और फोटोग्राफी के अलावा लता जी को खाना बनाने और अपने पारिवारिक मित्रो को स्वयम परोसने का बड़ा शौक था, सूजी का हलवा तो वो लाजवाब बनाती थीं । उनके हाथ का चिकन पसंदा को खाने का सौभाग्य जिस किसी को भी मिला था, वह उस स्वाद को कभी भूला नहीं पाया, लताजी को एक जमाने में इंदौर का गुलाब जामुन और दही बड़े बहुत भाते थे। आज के मशहूर चाईना गार्डन रेस्तरां चेन के मालिक नेल्सन वांग एक जमाने में क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया के चाइनीज रेस्तरा में खाना बनाया करते थे वहाँ उनके बनाए व्यंजन खाने वो अक्सर जाया करती थीं। 

संभवत: कई लोगों को पता नही होगा कि आनंदघन नाम के संगीतकार ने 60 के दशक में चार मराठी फ़िल्मों के लिए म्यूज़िक दिया था. ये व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि लता मंगेशकर ख़ुद थीं जो नाम बदलकर संगीत देती थीं.

अपने देश और सेना के जवानों से उनको अत्यंत लगाव था 1962 में जब भारत और चीन जंग के मैदान में एक दूसरे के आमने-सामने थे तो उन्होंने जवानों का हौसला बढ़ाने के लिए युद्धग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया था। लता दीदी 22 नवंबर, 1999 से 21 नवंबर, 2005 तक 6 साल के लिए राज्यसभा सदस्य भी रहीं,  लेकिन लताजी का मानना था कि वो संसद जैसी जगह में कुछ करने के लिए उपयुक्त नही है उनका कर्मक्षेत्र तो सदैव गायन ही रहा है और गायन उनके लिए इबादत का दर्जा रखता था, जिस तरह ईश्वर की उपासना करते समय हम नंगे पैर होते है उसी

तरह लताजी नंगे पांव ही गायन का कार्य करती थी यहां तक कि स्टूडियो में भी जब वो अपने गाने को रिकॉर्ड करती थी तब भी वह नंगे पांव ही होती थी। यह अपने कर्म के प्रति उनके समर्पण का ही प्रतिफल था कि लताजी अपने जमाने की पहली ऐसी गायिका बनीं जिन्हे उनके गाये गानो पर रॉयल्टी मिलने लगी थी। उन्हें अपने पिता से बहुत प्रेम था जिनका निधन 1942 में हो गया था, अपने पिता की स्मृति मे उन्होने पुणे में दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल एंड रिसर्च सेंटर नाम से एक सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल बनवाया है।

लता जी इतने सौम्य और शालीन स्वभाव की थीं कि उनके साथ किसी विवाद का होना भी विवादास्पद लगता है। फिर भी लता जी थीं तो एक इंसान ही और एक इंसान के साथ कुछ विवाद स्वाभाविक रूप से जुड़ जाते है, उनके नाम के साथ भी कुछ छोटे-मोटे विवाद जैसे  राजसिंह डुंगरपुर से उनका प्रेम प्रसंग, मोहम्म्द रफी से हुआ रायल्टी विवाद, राजकपूर से अनबन, दिलीप कुमार से 13 साल लंबा अबोला, बहन आशा की शादी से उपजी नाराजगी, सचिन देव बर्मन के साथ काम करने से इंकार, इंदौर ना आने की जिद, रसोईये द्वारा  दिया जाने वाला धीमा जहर, भूपेन हजारिका की पत्नी द्वारा लगाए गए आरोप आदि जुडते रहे किंतु उन्होंने कभी भी उन मुद्दों पर ध्यान नहीं

दिया। यही वजह रही कि यह विवाद उन पर कभी हावी नहीं हो पाए। कुछ समय बाद वह मुद्दे स्वत:शांत हो जाते और इस प्रकार कोई भी विवाद कभी उनको छू भी नहीं पाया।

हम सबकी प्रिय गायिका लता मंगेशकर अक्सर कहा करती थीं “मैंने हमेशा जीवन से बहुत प्यार किया है, चाहे मेरी यात्रा में कितने भी उतार-चढ़ाव क्यों ना आए हों” आज उनकी याद में गुलज़ार की कही एक बात याद आ रही है कि लता सिर्फ़ एक गायिका नहीं हैं, वो हर हिंदुस्तानी के रोज़ मर्रा के जीवन का हिस्सा बन चुकी हैं, कितना सच कहा था गुलजार ने,  किसने सोचा था कि लताजी के बगैर हमारा सुरों का सफर रेगिस्तान की तरह सूना और वीरान हो जाएगा।

उनके यूं हमें छोड़ जाने के बाद से उनका गाया यह गीत बरबस याद आया करता है “नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा, मेरी आवाज ही पहचान है …”

राजकुमार जैन (स्वतंत्र विचारक)

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