अग्नि आलोक
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चौराहा

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सुधा सिंह

जब दो आदमी
सुबह मिलते हैं
और
हाथ जोड़ते हैं
और
कहते है राम राम।
वो दूसरे में
संभावना देखते हैं।

हाथ जोड़ते हैं
सामने खड़े आदमी के
लिए नही
भीतर छुपे राम के लिए।
अपरिचित को भी राम !

अपरिचित को
good morning
कोई करता नहीं।

एक मौका मिला।
एक
चेतना पास आई।
उसको क्यूं ना
ईश्वर बना लिया जाए?
एक अवसर मिला।
सामने
छिपा हुआ राम आया।
क्यूं ना उसे
याद कर लिया जाए।
खुद भी
और
उसे भी
याद दिला दी।

सांझ थका मांदा आदमी
लौटा है दिन भर के
उपद्रव से तब फिर राम।
गहन निद्रा में जाने से
पहले
चेतना का गेर बदलता है।
राम गहरे में उतर जाता है।

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