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श्राप विद्या को विकसित करना होगा

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सुसंस्कृति परिहार

हमारी संस्कृति प्राचीन संस्कृतियों में से एक है।खासकर वैदिक संस्कृति का असर आज तक कहीं कहीं नज़र आता है उसमें आई कमज़ोरी को दूर करने भारत सरकार प्रतिबद्ध नज़र आती है।यही वजह है वह  विद्या के बड़े केंन्द्रों यानि विश्वविद्यालयों में जादू टोना,तंत्र मंत्र एवं भगवतगीता , उपनिषदों के माध्यम से  भारत की प्राच्य संस्कृति की पुनर्स्थापना की कोशिश में लगी है।हमारे चार वेद जिनमें संस्कृति के विभिन्न आयामों का निचोड़ है सामने लाने की ज़रूरत है।यकीन मानिए जिस दिन इसको हमारे वेदाचार्यों ने सही व्याख्यित कर लिया तो भारत विश्व गुरु बन कर ही एक बार फिर स्थापित होगा इसमें शक की गुंजाइश नहीं।हमारी प्राचीन संस्कृति में एक महत्वपूर्ण अध्याय जो आज भी उपेक्षित है उस ओर ध्यान देने की ज़रुरत महसूस की जा रही है।वह है श्रापित करना या शाप देना।यह एक ऐसा मंत्र होता था जिसके माध्यम से शत्रुओं का संहार बहुत आसान था।ये शाप की परम्परा बाइबिल में भी मिलती है।हो सकता है ये गुरु ज्ञान हमारी प्राच्य संस्कृति से वहां पहुंचा हो। कैथोलिक एनसाइक्लोपीडिया लेख कोसिन के अनुसार–बाईबिल में भगवान को सर्प,पृथ्वी और केन को कोसते हुए दिखाया गया है।ये एक प्रसंग हैं ऐसे शाप वाले और भी प्रसंग बाइबिल में मिलते हैं।आइए जानते लें शाप होता क्या है ? शाप से अभिप्राय क्रोधपूर्वक किसी के अनिष्ट का उद्घोष करना है। विशेषकर ऋषिमुनि, तपस्वी आदि के अनिष्ट शब्दों को शाप कहते हैं। किसी महान् नैतिक अपराध के हो जाने पर शाप दिया जाता था। इसके अनेक उदाहरण भारतीय प्राचीन साहित्य में उपलब्ध हैं।
हिंदू धर्म ग्रंथों में ऋषियों द्वारा श्राप देने के अनेक प्रसंग मिलते हैं। ऋषियों के श्राप से तो पराक्रमी राजा भी घबराते थे। श्राप के कारण भगवान को भी दु:ख भोगने पड़े और मनुष्य रूप में जन्म लेना पड़ा। यहां तक की दूसरों के बुरे कर्मों का हिसाब रखने वाले यमराज भी श्राप से नहीं बच पाए। भगवान श्रीकृष्ण के परिवार का अंत भी गांधारी के श्राप के कारण हुआ था। रामायणमहाभारतशिवपुराणश्रीमद्भागवत आदि कई ग्रंथों में श्राप देने के अनेक प्रसंग मिलते हैं।गौतम ने पतिव्रत भंग के कारण अपनी पत्नी अहल्या को शाप दिया था कि वह शिला हो जाये।दुर्वासा ऋषि अपने क्रोधी स्वभाव के कारण शाप देने के लिए प्रसिद्ध थे।आज भी जब आम इंसान भी किसी वजह से कुपित होता है तो शाप देने से नहीं चूकता।ये परम्परा का निर्वाह हो तो रहा है लेकिन वह फलीभूत नहीं होती।सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह हों या साध्वी उमा भारती जी या नेताओं के राजगुरु इनकी शाप भी व्यर्थ ही जा रहीं हैं ।इससे साधु , संतों , तपस्वियों , महात्माओं का मान निरंतर घट रहा है।अब तो पिछले दो दशकों से इन महामनाओं को राजनीति का आसरा लेना पड़ रहा है वो राजनीति जो छल फरेब, हत्याओं,धोखाधड़ी यानि साम ,दाम ,दंड,भेद से चलती है।शाप की व्यर्थता की बदौलत ही आज बाबाओं की हालत गुंडों जैसी हो गई है। गोरखनाथ पीठ के स्वयंभू योगी जी को वरना बुलडोजर चलवाने की ज़रुरत नहीं पड़ती। फिलहाल बुलडोजर शाप के विकल्प के रुप में लोकप्रिय हो रहा है। अल्पसंख्यक समुदाय,दलित, शोषितों पर जब शाप और तंत्र मंत्र का कोई असर नहीं चला तब बुलडोजर बाबा कामयाब हुए। मध्यप्रदेश के मामा ने भी बुलडोजर के सहारे का इस्तेमाल शुरु कर दिया है। बुलडोजर बाबाओं का सहारा भी बनने वाला है शुरुआत बाघेश्वर धाम के हनुमान भक्त एक युवा बाबा जी ने कर दी है ।वे शाप तो नहीं दे रहे लेकिन हज़ारों की भीड़ में ये कटु शब्द इतनी जोर की ताली बजाकर कह रहे हैं जितनी ताली थाली की कुल आवाज़ कोरोना काल में पी एम के आव्हान पर भी नहीं हुई होगी।ये बाबा गरज कर कह रहा है-“जो भारतीय संतों आदि पर पत्थर फेंकेगा उस पर बुलडोजर चलाया जायेगा।सब एक हो जाओ पत्थरबाजों के ख़िलाफ़ बोलो सब एक हो (लोग सहमति देते हैं) बाबा कहता है हमारे पास पैसा नहीं है लेकिन बुलडोजर खरीदना पड़ेगा ।अकेली मध्यप्रदेश सरकार कितने बुलडोजर खरीदेगी”यकीन मानिए भक्त गण इन्हें बराबर चंदा देंगे । सरकार भी देगी चुनाव तो बुलडोजर ही जितायेगा।उधर अपने नए एप्पीसोड में पुष्पा जिज्जी जब पापाजी के रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले रुपयों से कार खरीदने की बात करती हैं तो उन्हें निष्ठा बुलडोजर के फायदे बताती हैं।बेशक आज के  हालात में बुलडोजर का जलवा है।हो सकता इस बार चुनाव बुलडोजर यहां भी जिता दे।किंतु मूल मुद्दे की बात यही है कि श्राप देने की शाप भी खोलनी होगी।चाहें तो एक विश्वविद्यालय में सिर्फ श्राप पर ही काम हो ।गुम होती इस महत्वपूर्ण विधा पर ध्यान देना ज़रूरी है।क्योंकि जितने सरल और आसान तरीके से श्राप का मंत्र काम करता है।वह बुलडोजर में कहां?बिना हंगामे के मामले सुलटते रहें।आजकल  सोशल मीडिया बाल की खाल निकाल रख देता है। फिर दुनिया के देश सवाल मचा देते हैं।श्राप का अध्यापन जब भी शुरु हो मुझे तरजीह दी जाए क्योंकि ये मेरा सुझाव है। मुझे भी अपने शत्रुओं को शाप देने की इच्छा है बहुत सहा है अब नहीं सहेंगे। आमने-सामने नहीं गुप चुप लड़ेंगे और जीतेंगे।
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