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दादा धर्माधिकारी ने अपना अधिकांश समय दलितों और महिलाओं के उत्थान में लगाया

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दादा धर्माधिकारी के विचार समाज और देश के लिए आज भी प्रासंगिक

    -डॉ सुनीलम

        किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष पूर्व विधायक डॉ सुनीलम ने मुलतापी, बैतूल, मध्य प्रदेश, भारत के गौरव दादा धर्माधिकारी की जयंती के अवसर पर प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि आज ही के दिन 18 जून, 1899 को ताप्ती के मूल स्थान मुलतापी में दादा धर्माधिकारी का जन्म हुआ था। दादा का पूरा नाम शंकर त्रिम्बक धर्माधिकारी था, पर दुनिया उन्हें दादा धर्माधिकारी के नाम से ही जानती है।  उनकी प्रारंभिक शिक्षा नागपुर में हुई। गांधीजी के असहयोग आंदोलन में शामिल होकर उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। उन्होंने औपचारिक शिक्षा की कोई डिग्री नहीं ली थी, किन्तु स्वाध्याय से ही अपने समय के विचारको में महत्वपूर्ण स्थान बना लिया था। स्वतंत्रता आंदोलन में 1930 ,1932  और 1940 मे उन्होंने जेल की सजा काटी। दादा धर्माधिकारी ‘गांधी सेवा संघ’ के सक्रिय कार्यकर्ता थे। दादा धर्माधिकारी ने अपना अधिकांश समय दलितों और महिलाओं के उत्थान में लगाया। ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ की गिरफ्तारी से छूटने पर वे मध्य प्रदेश असेम्बली के सदस्य और संविधान परिषद के सदस्य चुने गए थे। उन्हें हिन्दी, संस्कृत, मराठी, बंगला, गुजराती और अंग्रेज़ी भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। एक लेखक के रूप में इनकी दो दर्जन से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई थीं। उन्होंने विनोबा जी के साथ सर्वोदय आंदोलन की स्थापना की तथा अहिंसक क्रांति की प्रक्रिया (हिंदी), आपल्या गणराज्याची घडण (मराठी), क्रांतिशोधक (हिंदी), गांधीजी की दृष्टी (हिंदी), गांधीजी की दृष्टी अगला कदम (हिंदी, जर्मन), तरुणाई (मराठी), दादा की बोध कथाएं (मराठीत, दादांच्या बोधकथा, भाग 1 से 3 ), दादांच्या शब्दांत दादा, (भाग 1, 2), नये युग की नारी (हिंदी), नागरिक विश्वविद्यालय – एक परिकल्पना (मराठी), प्रिय मुली (मराठी), मानवनिष्ठ भारतीयता (हिंदी, मराठी), मैत्री (मराठी), युवा और क्रांति (मराठीत, क्रांतिवादी तरुणांनो), लोकतंत्र विकास और भविष्य (मराठीत, लोकशाही विकास आणि भविष्य), समग्र सर्वोदय दर्शन (मराठीत, सर्वोदय दर्शन), स्त्री-पुरुष सहजीवन (हिंदी, मराठी), हिमालय की यात्रा (अनुवाद; मूळ गुजरातीत, लेखक दत्तात्रेय बालकृष्ण) आदि किताबें लिखी। 1 दिसम्बर 1985 को सेवाग्राम में उनका निधन हो गया।

         डॉ सुनीलम ने कहा कि दादा धर्माधिकारी के विचार समाज और देश के लिए आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि मुलतापी के जनप्रतिनिधि होते हुए उन्होंने कुछ वर्षों तक दादा धर्माधिकारी की जयंती के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित किए लेकिन यह दुखद है कि दादा धर्माधिकारी जैसे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और समाज सेवक आज याद नहीं किए जाते।

          डॉ सुनीलम ने प्रधानमंत्री, केंद्रीय शिक्षा मंत्री, मुख्यमंत्री तथा राज्य शिक्षा मंत्री से अपील की है कि वे दादा धर्माधिकारी जी के जीवन दर्शन को प्रदेश के स्कूलों, कॉलेजों के पाठ्यक्रम में जुड़वाने हेतु निर्देश दें तथा उनके जन्म दिवस और निर्वाण दिवस पर कार्यक्रम आयोजित करने की जिम्मेदारी मुलताई नगरपालिका अध्यक्ष को दी जाए ताकि भावी पीढ़ी दादा धर्माधिकारी के विचारों से लाभान्वित हो सकें। 

         डॉ सुनीलम ने कहा कि दादा धर्माधिकारी की मूर्ति मुलतापी रेल्वे स्टेशन के सामने चौराहे पर स्थापित की जानी चाहिए।

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