विधानसभा चुनाव हारे प्रत्याशियों पर भाजपा और कांग्रेस ने दांव लगाया
–-सुसंस्कृति परिहार
दमोह लोकसभा जिसमें आठ विधानसभा सभा क्षेत्र हैं जिसमें छतरपुर जिले का बड़ा मलहरा,सागर जिले के देवरी,रहली ,बंडा तथा दमोह जिले की जबेरा, दमोह, पथरिया और हटा विधानसभा शामिल हैं। पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव को देखा जाए तो सात सीटों पर भाजपा ने अच्छी खासी जीत दर्ज की है सिर्फ छतरपुर जिले की बड़ा मलहरा से ही राम सिया ही कांग्रेस से विजयी हुई हैं। उन्होंने वर्तमान लोकसभा प्रत्याशी पूर्व विधायक राहुल लोधी के भाई पूर्व मंत्री प्रद्भुम्न लोधी को मात देकरयह जय पाई। विदित हो दोनों भाईयों के कांग्रेस टिकिट पर चुनाव जीतने के बाद पद लोलुपता में भाजपा की शिवराज सरकार के आगे समर्पण कर दिया था हालांकि उसके बाद हुए उपचुनाव में दमोह के मतदाताओं ने कांग्रेस को जिताकर राहुल लोधी को अच्छी खासी पटकनी दी थी। पिछले चुनाव में बहुत हाथ पैर मारने पर भी उन्हें भाजपा ने टिकिट नहीं दी गई शिवराज ने पूर्व मंत्री जयंत मलैया में विश्वास जताया और वे चुनाव जीत भी गए।
बड़ा मलहरा छोड़कर बाकी सभी विधानसभा सभाओं में कथित तौर पर शिवराज के लाड़ली बहना के जादू का जोर रहाइस दौरान मोदी ने भी भरपूर प्रचार कर शिवराज की छवि धूमिल करने की कोशिश की और कहा जाता है कि दमोह,हटा और रहली में इतनी बड़ी जीत हासिल हुई कि विधायक भी सकते में आ गए तथा इसे ऊपर वाले की कृपा बताने लगे।कौन ऊपरवाला है ये अब सब हमारे सामने आ चुका है।बड़ी बात तो ये हुई राहुल लोधी का भाई पूर्व मंत्री प्रद्युम्न लोधी हार गया जिसे हिंडोरिया राज घराने की बड़ी हार माना गया।
आज उन्हीं का भाजपा विधायक का चुनाव हारा भाई राहुल लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार है। जिस पर मध्यप्रदेश शासन के केबिनेट मंत्री प्रह्लाद पटेल जो लोधी समाज से है का वरदहस्त प्राप्त है। विदित हो,इस बार दो विधानसभा चुनाव हारे प्रत्याशियों पर भाजपा और कांग्रेस ने दांव लगाया है। दोनों पिछड़े वर्ग लोधी समाज से आते हैं। दोनों युवा भी है। कांग्रेस ने बंडा विधानसभा से पराजित तरवरसिंंह लोधी को अपना उम्मीदवार बनाया है।
दमोह लोकसभा क्षेत्र में कुल 19.09 लाख वोटर हैं। इनमें दस लाख पुरुष और 9 लाख महिला वोटर हैं। इस सीट पर 32 थर्ड जेंडर के वोटर भी हैं। दमोह लोकसभा सीट की सियासी पृष्ठभूमि की शुरूआत 1962 के चुनावों से हुई थी, तब यह सीट पहली बार अस्तित्व में आई थी. शुरुआत में यह सीट अनुसूचित जाति के आरक्षित थी।पहले चुनाव में यहां से कांग्रेस ने जीत हासिल की थी, कांग्रेस की सहोद्राबाई राय दमोह लोकसभा सीट से पहली सांसद चुनी गई थी. 1967 के चुनाव में सीट सामान्य हो गई, लेकिन कांग्रेस ने अपनी जीत का सिलसिला बरकरार रखा, कांग्रेस के मणिभाई पटेल ने यहां से जीत हासिल की। 1971 के चुनाव में भी कांग्रेस का परचम लहराया लेकिन शुरुआती तीन चुनावों में जीत के बाद कांग्रेस की पकड़ कमजोर हुई और 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के प्रत्याशी ने यहां से जीत हासिल की. लेकिन 1980 में ही कांग्रेस ने जोरदार वापसी और 1984 के चुनाव में भी अपनी जीत बरकरार रखी. लेकिन यह जीत दमोह लोकसभा सीट पर कांग्रेस की आखिरी जीत थी. क्योंकि 1989 के बाद से सभी चुनाव बीजेपी ने यहां से जीते हैं पिछले दो बार से प्रहलाद पटेल यहां के सांसद हैं।
दमोह लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा अहम जातिगत समीकरण माना जाता है, राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इस सीट पर कास्ट कॉम्बिनेशन को ध्यान में रखकर चुनाव लड़ा जाता है, लोधी बाहुल्य सीट होने की वजह से ज्यादातर राजनीतिक दल इसी वर्ग से आने वाले प्रत्याशियों को चुनाव लड़वाते हैं, लोधी, कुर्मी वर्ग यानि ओबीसी यहां 22.4 प्रतिशत के आसपास है, इसके अलावा वैश्य, जैन यानि सवर्ण 7 प्रतिशत के आसपास माने जाते हैं, जबकि ब्राहमण-राजपूत 10 प्रतिशत हैं, वहीं आदिवासी वर्ग 9.6 प्रतिशत हैं, जबकि यादव मतदाता भी 5.7 प्रतिशत हैं. 2019 के चुनाव में वर्तमान कैबिनेट मंत्री प्रहलाद पटेल को बीजेपी ने चुनाव लड़वाया था, जो स्थानीय प्रत्याशी नहीं थे।
ये समीकरण यह स्पष्ट करते हैं कि लोधी और कुर्मी समाज का बाहुल्य ही पिछले नौ चुनावों में जिताता रहा है । कुर्मी समाज से चार बार,,रामकृष्ण कुसमरिया, प्रह्लाद पटेल आसानी से जीतते रहे हैं। चन्द्रभान सिंह और शिवराज सिंह लोधी के बाद से यह ओबीसी लोधी, कुर्मी के पाले में हैं किंतु इस बार दमोह व लोकसभा एक नया इतिहास रचने वाला है चूंकि दोनों प्रत्याशी लोधी समाज है एक दूसरे के दोस्त ही नहीं, रिश्ते दार भी हैं। इसलिए लोधी,कुर्मी समाज के वोट का विभाजन बड़े पैमाने पर होने जा रहा है। ओबीसी महासभा भाजपा के ख़िलाफ़ है।अब शिवराज के जाने के बाद माहौल भी पहले जैसा नहीं है। मोदीजी की दमोह की सभा ने यह बता दिया है कि उनका सम्मोहन भी लगभग ख़त्म हो चुका है। महिलाओं में भी शिवराज को हटाना मोदी को मंहगाई पड़ने वाला है।इस लोकसभा के क्षेत्र के भाजपा के दो दमदार पूर्व मंत्रियों का बड़ा खेमा भी मोदीजी की कार्यप्रणाली और प्रदेश में हस्तक्षेप से भीतरघात की स्थिति में नज़र आ रहा है।युवा बेरोजगारी से तो आमजन मंहगाई से त्रस्त है। गारंटी और जुमलों से हताश लोग कांग्रेस में भविष्य देख रहे हैं मतदाताओं की ख़ामोशी भी बदलाव के संकेत दे रही है। राहुल लोधी ने दमोह और उनके भाई प्रद्युम्न ने कांग्रेस के साथ जो छल किया है उसका जवाब विधानसभा चुनाव में मिल चुका है अब लोकसभा में भी इन्हें नकारने का मन जनता ने बना लिया है इसलिए बिकाऊ और टिकाऊ का द्वंद उभरा है। वहीं राजनैतिक हल्कों में यह भी चर्चा है कि प्रह्लाद पटेल ने जानबूझकर कमज़ोर प्रत्याशी को लाकर भविष्य में अपनी लोकसभा सीट सुरक्षित रखने का उपक्रम किया है।
कुल मिलाकर भाजपा के इस मजबूत गढ़ में इस बार उसके टूटने की स्थितियां प्रबल हैं। दोनों दलों का प्रचार भी काफी ठंडा है किंतु जनता के मानस में दल बदलू को सबक सिखाने की गर्मी बराबर महसूस की जा रही है।