अग्नि आलोक
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*डार्क एनर्जी*

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~ कुमार चैतन्य

प्रायः हम सबों ने इसे सुन रखा होगा. इसे और डार्क मैटर को भी. डार्क मैटर और डार्क एनर्जी के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है सिवा इसके कि दोनों के नामों में ‘डार्क’ शब्द आता है.

     डार्क एनर्जी कुछ अगोचर, रहस्यमय चीज है जो माना जाता है गुरुत्वाकर्षण की विपरीत दिशा में काम कर रही है. करीब सौ वर्ष पहले खगोलविदों ने पाया था कि सभी तारे, सभी तारा समूह (आकाशगंगा, गैलेक्सी) पृथ्वी से दूर होते जा रहे हैं! जैसे पृथ्वी इस ब्रह्माण्ड का केंद्र हो! किन्तु पृथ्वी के ब्रह्माण्ड का केंद्र होने की कोई वजह नहीं है. और सभी तारों के हमसे दूर होते जाने का तत्काल कारण मिला ब्रह्माण्ड फैल रहा है!

      यह स्पष्ट होगा यदि हम एक ऐसे बलून की कल्पना करें जिस पर अनेक छोटे छोटे रंगीन वृत्त बने हुए हों. फुलाने पर बलून फैलेगा और वे सभी वृत्त एक दूसरे से दूर होते दिखेंगे. ठीक उसी तरह ब्रह्माण्ड फैल रहा है और इसके सभी पिंड एक दूसरे से दूर हो रहे हैं. 

ब्रह्माण्ड के फैलते जाने को वैज्ञानिकों ने महा-विस्फोट (बिग बैंग) से जोड़ा. खगोलविदों के अनुसार, करीब 1380 करोड़ वर्ष पहले महाविस्फोट से ब्रह्माण्ड का ‘जन्म’ हुआ. उसके पहले न समय का अस्तित्व था न दिशा का. विस्फोट के बाद आकाशीय पिंड (कैसे वे पिंड बने यह अभी नहीं) तेज गति से दूर होते गए. खगोलविदों की यह परिकल्पना करीब सौ वर्ष पुरानी है.

     किसी गतिशील वस्तु पर कोई अवरोध न लगे (जैसे पृथ्वी पर हवा एक अवरोध है, सड़क पर लुढ़कते चक्के पर सड़क की सतह से होता घर्षण एक अवरोध है) तो न्यूटन ने कहा है वह वस्तु चलती रहेगी, उसकी गति कभी नहीं घटेगी. ये पिंड भी विस्फोट के बाद चलते रहे.

     किन्तु इन की गति पर एक अवरोध है गुरुत्वाकर्षण. गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत कहता है, ये सभी पिंड एक दूसरे को अपनी तरफ खींच रहे हैं. गुरुत्वाकर्षण. के चलते इन पिंडों की गति धीमी होती जानी चाहिए. 

      ब्रह्माण्ड फैल रहा है, इस जानकारी के करीब सत्तर साल बाद 1994 के आसपास वैज्ञानिकों के दो दलों ने प्रयोग द्वारा इसे पुष्ट करना चाहा कि आकाशीय पिंडों के एक दूसरे से दूर जाने की गति धीमी हो रही है. दोनों दल स्वतंत्र रूप से काम कर रहे थे. उन्हें पाँच साल लगे पर दोनों दलों के प्रयोगों ने दिखाया कि आकाशीय पिंडों की गति धीमी होने की जगह तेज होती जा रही थी.

     उनके अलग अलग शोधपत्र प्रकाशित हुए. भौतिकी और खगोल विज्ञान में तहलका मच गया. प्रकाशन के 12 वर्ष बाद उन्हें नोबेल से सम्मानित किया गया. उनकी खोज इतनी क्रांतिकारी थी कि सभी खगोलविदों का विश्वास था उन्हें नोबेल मिलेगा. एक विख्यात वैज्ञानिक ने तो यहाँ तक कहा कि उनकी खोज नोबेल पुरस्कार से बड़ी है!

गुरुत्वाकर्षण के चलते पिंडों के भागने की रफ़्तार धीमी होनी चाहिए थी. लेकिन उनकी रफ़्तार बढ़ती जा रही है! इसका बस एक कारण हो सकता है – कोई ‘चीज’ है जो गुरुत्वाकर्षण की विपरीत दिशा में काम कर रही है. वैज्ञानिकों ने उस अनजान शै को नाम दिया डार्क एनर्जी.

     डार्क एनर्जी के बारे में हम कुछ नहीं जानते सिवा इसके कि ब्रह्माण्ड का 68% डार्क एनर्जी है!

   2011 का नोबेल किसी गुत्थी को सुलझाने के लिए नहीं दिया गया था – वह दिया गया था एक गुत्थी को पहचानने के लिए. 

   क्या होगा यदि ब्रह्माण्ड का विस्तार इसी तरह तीव्र से तीव्रतर गति से होता रहा – ब्रह्माण्ड बिखर जाएगा. और क्या होगा यदि विस्तार की गति धीमी होने लगे? ब्रह्माण्ड अंततः सिकुड़ने लगेगा. इस स्थिति में तापक्रम बढ़ता चला जाएगा और पहली स्थिति में घटता चला जाएगा.

कुछ कहते हैं विश्व अनल से जल जाएगा!

कुछ कहते हैं दुनिया हिम से जम जाएगी।

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