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41 घरों में 17 दिन बाद छंटा दिवाली पर छाया अंधेरा… जिस मलबे को काटने में मशीनें फेल हो गईं आखिर वो मिशन कैसे कामयाब हुआ

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देहरादून/उत्तरकाशी: दीपावली की अमावस्या से उत्तरकाशी के सिलक्यारा में निर्माणाधीन टनल में फंसे 41 मजदूर को कार्तिक पूर्णिमा के बाद ही उससे रिहाई नसीब हुई। जैसे-जैसे श्रमिकों को मलबे से पार लाया गया, वैसे-वैसे टनल के बाहर और देश-दुनिया में लोगों की धड़कनें बढ़ती गईं। इन 41 श्रमिकों में अंधेरी सुरंग से रिहाई की खुशी साफ झलक रही थी। इस खुशी ने इन 17 दिनों की टेंशन को भी दूर कर दिया। मजदूरों के निकलने की खुशखबरी जैसे ही बाहर टकटकी लगाए बैठे अपनों तक पहुंची तो खुशी के मारे आंखें छलक आईं और एकदूसरे को गले लगकर खुशी के मारे रो पड़े। अपने जिगर के टुकड़ों के सकुशल बाहर आने की सूचना जब उनके घरों तक पहुंची तो परिजनों ने मिठाई बांटी और जमकर पटाखे फोड़े।

अभी मजदूरों के निकलने का सिलसिला शुरू ही हुआ था कि सभी श्रमिकों के घरों में दीपावली मनाई जाने लगी। सही मायनों में इन मजदूरों और उनके परिजनों की दीपावली आज हुई है जो 17 दिन में जिंदगी की जंग जीत कर बाहर आए हैं। अंधेरी सुरंग में 17 दिन काटने वाले इन श्रमिकों की सलामती के लिए देश और दुनिया में पूजा-पाठ और दुआओं का दौर चल रहा था। आखिरकार देर रात सफलता मिली तो उसकी खुशी मुख्यमंत्री धामी के साथ ही केंद्रीय राज्य मंत्री और कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के चेहरे पर भी साफ दिखाई दी। वीके सिंह और धामी के नेतृत्व में, पीएमओ के अधिकारियों की मेहनत और रेस्क्यू कार्य में जुटे जवानों की मशक्कत के साथ ही रैट माइनर्स की टीम ने आखिरकार एक बड़ी चुनौती पर सफलता पाई।

जिस मलबे को काटने में अमेरिका की ऑगर मशीन भी दम तोड़ गई। वहीं इस चूहा तकनीक ने कुछ ही घंटे में मलबा खोदकर मजदूरों को बाहर निकालने में सफलता पाई। झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश से लोग अपने भाई, बेटे, पिता के सुरंग में फंसने की खबर सुनकर दौड़े आए। वहीं उत्तराखंड के एक युवा श्रमिक के टनल में फंसने से उनकी माता ने तो अन्न-जल ही त्याग दिया था। यहां तक कि उन्होंने सरकार से गुहार लगाई थी कि उनका घरबार ले लो, लेकिन उनके बेटे को बाहर ले आओ। एक मां की इस करूण गुहार ने सीएम पुष्कर सिंह धामी को भी पिघला दिया। वह टनकपुर में परिवार से मिलने पहुंचे। उन्हें धैर्य बंधाया कि उनका बेटा जल्द ही घर वापस आ जाएगा।

यहां तक कि टनल के बाहर इंतजार में बैठे श्रमिकों के परिजनों और साथियों की भी सीएम और पीएमओ के अधिकारी लगातार हौसला अफजाई करते रहे। इस मोर्चे पर रेस्क्यू अभियान से जुडे हुए व्यक्ति ने एक सैनिक बनकर लड़ाई लड़ी। वहीं क्षेत्र के भूमियाल देवता बाबा बौखनाग की कृपा भी बनी रही। टनल में हुए हादसे के बाद जब स्थानीय लोगों ने विरोध जताया था कि टनल बनाने वाली कंपनी प्रबंधन ने यहां से बाबा बाखैनाग का मंदिर हटा दिया था, यह हादसा बाबा का प्रकोप है।

इसके बाद तकनीक का सहारा ले रही कंपनी ने आस्था को मान देते हुए टनल के बाहर बाबा बौखनाग का मंदिर स्थापित किया। बाबा की कृपा कहें या संयोग कि इस मंदिर की स्थापना के बाद कार्य बिना बाधा के आगे बढ़ा। दो दिन पहले फिर बाधा आई तो कंपनी प्रबंधन के अधिकारी बाबा बौखनाग के स्थान पर पहुंचे और मजदूरों को सुरक्षित निकालने के लिए अर्जी लगाई। तब बाबा बौखनाग के पश्वा ने कहा था कि सभी मजदूर तीन दिन के भीतर टनल से बाहर आ जाएंगे। आज उनकी भविष्यवाणी सही साबित हुई।

27 नवंबर को बाबा बौखनाग के मंदिर के पीछे टनल की दीवार पर अचानक पानी रिसने लगा और वहां भगवान शिव की आकृति बन गई। इसके बाद लोगों में भगवान के प्रति और विश्वास बढ़ गया कि स्वयं भगवान ही इन 41 जिंदगियों केा बचाने के लिए इस रूप में आए हैं। इन सत्रह दिनों में टनल की ओर जैसे ही कोई हलचल होती तो मीडिया कर्मियों से लेकर मजदूरों के परिजन और तमाम साथी टनल की ओर दौड़ पड़ते कि शायद कोई खुशखबरी आई है। लेकिन जब पता चला कि फिर कोई अड़चन आई तो लोगों के चेहरों पर उदासी छा जाती। इस रेस्क्यू कार्य टीम ने कई उतार-चढ़ाव देखे। कई चुनौतियों से जूझे।

अपनों की चिंता में घुल रही एक मां, पत्नी, बेटी और बहन की आंखों से खुशियों के आंसू छलक उठे। टनल के आसपास नेटवर्क की समस्या होने के चलते अपनों की कुशलता का समाचार घर तक पहुंचाने के लिए लोग दूर तक भागते नजर आए। इनकी खुशी देख कर लगा रहा है कि कई दिनों के बाद चैन से खाना खा सकेंगे और सुकून की नींद भी सो सकेंगे।

क्या है रैट माइनिंग

रैट माइनर्स एक विशेषज्ञों की टीम है जो खोदाई में एक्सपर्ट होती है। मैन्युअल खोदाई शुरू होने के बाद एक मीटर प्रतिघंटा तक यह टीम खोदाई कर सकती है। उत्तरकाशी में टीम के दो सदस्य पाइप में घुसे। इनके पास छोटे फावड़े, छोटी ट्रॉली, ऑक्सीजन मास्क और हवा को सर्कुलेट करने के लिए एक ब्लोअर था। एक सदस्य ने खोदाई की और दूसरे ने ट्रॉली में मलबा भरकर बाहर भेजा। एक बार में ट्रॉली में छह से सात किलो मलबा ही बाहर आ सकता था, इसलिए इसमें समय लगने का अंदेशा था। हालांकि इस टीम ने सेना के मद्रास शैपर्स यूनिट की मदद से काम को बेहद फुर्ती से पूरा कर दिया।

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