प्रस्तुति : सुधा सिंह
लाश ने अपने आसपास देखा तो वह दंग हो गई। डॉक्टर मौजूद थे। दवाइयां हाजिर थीं। अस्पताल चमक रहा था। वाटर कूलर से पानी निकल रहा था। लाश ने अपनी आंखें मीचीं। ‘बिना मरे स्वर्ग नहीं मिलता’ उसे मुहावरा याद आया।
वह मरने से पहले भी इस अस्पताल में तीन-चार बार आ चुकी थी,तब तो यह अस्तपाल ऐसा नहीं था। काश मेरे जीते जी अस्पताल मुझे ऐसे ही मिलता!
मेरे मरते ही सब ठीक हो गया,लाश ने सोचा। तभी हलचल हुई। उसने देखा सुरक्षाकर्मियों से घिरे पीएम चले आ रहे हैं। लाश को समझते देर न लगी। उसे लगा, एक बार वह फिर मर गई।
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‘अंतिम इच्छा’
‘कुछ सुना!’
‘क्या!’
‘पुल टूटने का जिम्मेदार हमें ही बताया जा रहा!’
‘अब ये कोई नई बात नहीं है!’
‘पुल की मरम्मत को भूलकर हम सब की मजम्मत की जा रही है!’
‘अब यही सब होगा!’
‘बताओ पहले भी क्या कम मुसीबतें झेले हैं कि ये भी गर्दिश के दिन देखने थे!’
‘ऊपर वाले से बस मेरी यही इल्तिजा है कि गर्दिश के दिन चाहे जितने भी दिखाए,मगर गैरत बचाए रखे!’
‘अभी हम अपनी गैरत कैसे बचाएं! बोलो!’
‘आक् थू!!!’
‘अक्क थू!!!’
लोगों ने देखा कि दोनों लाशों के मुंह पर झाग जमी हुई है।
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‘ओवर क्राउड’
‘कहते हैं ओवर क्राउड था!’ फूली लाश बोली।
‘कहेंगे ही!’ अकड़ी लाश ने जवाब दिया।
‘रेवेन्यू गिनते वक्त तो नहीं बोलते कि यह सफलता हमें ओवर क्राउड होने की वजह से मिली!’
‘क्यों बोलेंगे!’
‘अभी हम ओवर क्राउड हैं, चुनाव के वक्त हम भारी मत में बदल जाते है!’
‘सो तो है!’
‘रेल हो! बस हो! सड़क हो! या फिर देश हो! सब जगह ओवर क्राउड ही तो है! इन्हें यह सब नहीं दिखता!’
‘ये अपने मतलब से ही देखते-सुनते हैं!’
‘अच्छा,इस देश में ऐसी कोई एक जगह…एक जगह बता दो,जो ओवर क्राउडेड न हो!!!’
‘एक जगह है,जहां कभी भी इनको हम ओवर क्राउडेड नहीं दीखते!’
‘कौन-सी!’ फूली लाश ने अचरज से पूछा।
‘रैली का मैदान!’
अकड़ी लाश का जवाब सुनते ही फूली लाश नॉर्मल हो गई ।
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‘जिम्मेदार लाशें’
‘तीन दिन हो गए और कोई जिम्मेदार हमें देखने तक नहीं आया!’ पहली लाश बोली।
‘चुनाव आ गए हैं न! सब उधर ही बिजी हैं!’ दूसरी लाश ने समझाया।
‘क्या बिजी हैं!अभी हादसे के असली जिम्मेदार को पकड़ा भी नहीं गया!’ पहली लाश ने शिकायत की।
‘वो पकड़ा भी नहीं जाएगा!’
‘कैसे नहीं पकड़ा जाएगा सरकार! अब हमारी सरकार है!’ पहली लाश व्यंग्य में बोली।
‘तुम भूल रही हो,हमारी सरकार है,पर हम कौन हैं!’
‘मतलब!’
‘प्रोफाइल देखकर ही यहां फाइल बनती है प्यारी!अगले का स्टेट्स देखकर स्टेटमेंट दिया जाता है राजदुलारी !’ इस बार दूसरी लाश ने व्यंग्य किया।
‘तो क्या हमारी मौत के जिम्मेदार नहीं पकड़े जाएंगे!’ पहली लाश उदास हो गई।
‘तेरे घर वालों को मुआवजा मिला न!!!!चिल कर!’
‘क्या बात कर रही है! इतने लोग अकाल मर गए ऐसे ही…’ पहली लाश अकड़ते हुए बोली।
‘इस देश में पहले जिम्मेदारी मरती है,फिर आम आदमी !’ दूसरी लाश ने ठंडी आह भरते हुए कहा।
पहली कुछ सोच में पड़ गई।
‘देख,उन्हें पकड़ कर क्या मिलेगा!’ दूसरी लाश प्यार से बोली।
‘हमें इंसाफ मिलेगा और क्या!’ पहली लाश ने दो टूक कहा।
‘मैं सरकार की बात कर रहीं हूं और तू यहां अपनी लेकर बैठी है…’
‘तुम पहले से ही मेरे थे या अभी ताजा-ताजा मर कर आए हो!’ पहली लाश नाराज हो कर बोली।
‘सरकार को इंसाफ नहीं चंदा चाहिए!’ दूसरी लाश ने शांत स्वर में कहा।
‘चंदा!’
‘डोनेशन!’
‘और नेशन!’
‘नेशन के लिए सरकार बनाना जरूरी है। और सरकार बनाने के लिए चुनाव जरूरी है। और चुनाव लडने के लिए चंदा जरूरी है। और चंदा जितना भी मिले हमेशा कम ही होता है मेरी जान!’
‘नहीं चंदा जरूरी नहीं होता!’ पहली लाश चीखी।
‘फिर!!!’
‘चुनाव जीतने के लिए फसाद जरूरी होता है!’
‘फसाद कराने के लिए भी मनी मांगता है न!’
‘ओह!’
‘अभी समझ! जब सरकार जिम्मेदार पर हाथ नहीं डालेगी तो पहले से ज्यादा चंदे पर हाथ मारेगी! मारेगी कि नहीं!’ दूसरी लाश किसी नेता की तरह बोली।
‘मारेगी!’ पहली लाश ने जनता की तरह हुकारी भरी।
‘पहले छोड़ेगा फिर निचोड़ेगा! निचोड़ेगा कि नहीं!’
‘निचोड़ेगा!’
‘चल अब तो गुस्सा थूक दे!’
‘आक्क थू!!!’
‘अरे मैंने तो बस मिसाल दी थी! तूने तो वाकई थूक दिया!’
पहली लाश कुछ न बोली।
दूसरी लाश समझ रही थी कि पहली लाश ने गुस्से के बहाने कहां और किस पर थूका है!
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‘धूल धूसरित’
पुल गिर चुका था। पुल मलबा बन नदी में समा गया था और देह मिट्टी बन तैर रही थी। मिट्टी बहुत देर से खुद के उठाए जाने का इंतजार करती रही। जब बहुत देर हो गई तो कीचड़ में सनी हुई मिट्टी ने खुद से कहा,’अभी सरकार गिरी होती तो आसमान सिर पर उठा लेते!’
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‘बचाव कार्य’
अकस्मात एक पुल गिर गया था। उस पुल के गिरने के दृश्य को टीवी पर दिखाया जा रहा था और एंकर चीख-चीख कर बता रहा था कि बचाने का कार्य पूरी तेजी से जारी है।
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‘मॉडल’
‘तत्परता देखी!’
‘हां’
‘तरलता देखी!’
‘हां’
‘सरलता देखी!’
‘हां’
‘चपलता देखी!’
‘हां’
‘व्यवस्था देखी!’
‘हां’
‘यही सब पहले दिखा देते तो मैं अभी अपने नवजात बच्चे के पास होता…मैं तो कहता हूं,इसका दशांश भी कर देते तो…’ आखिरकार अस्पताल में पड़ी हुई लाश के सब्र का बांध टूट गया। बोलते हुए उसका गला भर आया। आगे बोला न गया।
‘तो न पुल टूटता, न हम जैसे गरीब मरते!’ दूसरी लाश ने उसकी अधूरी बात को अपनी तरफ से पूरा किया।d