अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

बहस भोले बाबा की जाति और उनके राजनीतिक संबंधों को लेकर

Share

गत 2 जून, 2024 को उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में हुए दर्दनाक हादसे में क़रीब सवा सौ लोगों की जान चली गई। चश्मदीदों के मुताबिक़ बाबा सूरजपाल उर्फ नारायण साकार विश्व हरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग के बाद अचानक भगदड़ मच गई। हादसे की वजहों को लेकर पुलिस, प्रशासन और बाबा के अनुयायियों के अपने-अपने दावे हैं। इन दावों और प्रतिदावों की जांच अलग-अलग स्तर पर हो रही है, लेकिन इस बीच एक और बहस छिड़ गई है। यह बहस है भोले बाबा की जाति और उनके राजनीतिक संबंधों को लेकर।रजपाल सिंह नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा जाति से जाटव है। उसके भक्तों में भी अधिकांश या तो जाटव हैं या फिर अति-पिछड़े और दलित। हाथरस की घटना के मृतकों में भी सबसे ज़्यादा 14 महिलाएं जाटव बिरादरी से हैं।

सैयद जै़गम मुर्तजा

सरकारी आंकड़ों के अनुसार हाथरस के फुलरई गांव में हुए हादसे में 121 लोगों को जान गंवानी पड़ी है जबकि 31 लोग घायल हुए हैं। हादसे के बाद पुलिस ने सत्संग के आयोजकों के ख़िलाफ ग़ैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया है। आयोजकों को हाल ही में लागू हुई भारतीय न्याय संहिता की धारा 105, 110, 126(2), 223, 238 के तहत आरोपी बनाया गया है। इसमें ग़ैर-इरादतन हत्या के अलावा सरकारी आदेशों की अवहेलना और सबूतों से छेड़छाड़ के आरोप जोड़े गए हैं। अलीगढ़ रेंज के पुलिस महानिरीक्षक शलभ माथुर के मुताबिक़ इस मामले में देवप्रकाश मधुकर को मुख्य आरोपी बनाया गया है। इस मामले में अभी तक 6 लोगों की गिरफ्तारी हुई है, जबकि देवप्रकाश की तलाश अभी जारी है। पुलिस उसकी गिरफ्तारी के लिए ग़ैर-ज़मानती वारंट जारी करने के अलावा एक लाख रुपये के ईनाम का ऐलान करने की बात कर रही है। लेकिन दर्ज किए गए मुक़दमे में भोले बाबा का नाम नहीं है।

अब सवाल ये है कि इतने बड़े हादसे के बावजूद बाबा सूरजपाल जाटव उर्फ भोले बाबा को पुलिस-प्रशासन ने मुक़दमे में आरोपी क्यों नहीं बनाया? इसे लेकर तमाम तरह की बातें हैं। इनमें एक दावा यह भी है कि बाबा का राजनीतिक कनेक्शन तगड़ा है। दूसरा दावा है कि उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान समेत कई राज्यों में बाबा के लाखों अनुयायी हैं। बाबा पर सीधे हाथ डालकर सरकार इतने सारे की नाराज़गी मोल लेना नहीं चाहती। लेकिन इस बीच बाबा की जाति और दलितों के बीच उनके प्रभाव को भी बाबा के बचाए जाने की वजह बताया जा रहा है। हालांकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने कहा है कि मामला उन लोगों के ख़िलाफ दर्ज किया गया है, जिन्होंने प्रशासन से इस आयोजन की अनुमति मांगी थी। “चूंकि यह आवेदन बाबा की तरफ से नहीं किया गया तो एफआईआर में उनका नाम नहीं है।”

कौन है बाबा सूरजपाल जाटव उर्फ नारायण साकार?

भोले बाबा उर्फ नारायण साकार का असली नाम सूरजपाल सिंह है। सूरजपाल का जन्म कासगंज ज़िले के पटियाली इलाक़े में एक दलित परिवार में हुआ। उनका गांव बहादुर नगर गांव हाथरस से तक़रीबन 65 किलोमीटर दूर है। परिवार में कुल तीन भाई थे। बड़े भाई की कुछ साल पहले मौत हो गई जबकि छोटा भाई राकेश पेशे से किसान है। बाबा बनने से पहले सूरजपाल सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही था। लंबे समय तक उसने लोकल इंटेलिजेंस यूनिट यानी एलआईयू में अपनी सेवाएं दीं। आगरा के आसपास लगभग 12 थानों में उसकी पोस्टिंग रही। 1990 के दशक में आगरा के ही शाहगंज थाने में उसके ख़िलाफ यौन शोषण का एक मामला दर्ज किया गया। इसके बाद सूरजपाल सिंह को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। इसी बीच बाबा की सरकारी नौकरी भी जाती रही।

हालांकि, भोले बाबा अपने भक्तों को दूसरी कहानी बताता है। बाबा कहता है कि उसने 18 साल पुलिस की नौकरी की और फिर 90 के दशक में उसने वीआरएस ले लिया। बाबा का दावा है कि “उसका भगवान के साथ साक्षात्कार हुआ जिसके बाद उसने अपना जीवन भगवान को समर्पित कर दिया। उसका शरीर परमात्मा का अंश है और मानव कल्याण उसके जीवन का ध्येय है।” इसके बाद सूरजपाल ने अपना नाम बदल कर नारायण साकार विश्व हरि कर लिया। बाबा की ईश्वर से साक्षात्कार की कहानी भक्तों के बीच ख़ासी लोकप्रिय है। लेकिन इससे ज़्यादा लोकप्रियता बाबा के चमत्कारों को हासिल है। बाबा के प्रवचन के अलावा उनके कार्यक्रमों में बीमारियां दूर करने, भूत-प्रेत भगाने, और ग़रीबी से निजात दिलाने के दावे भी किए जाते हैं।

चमत्कारी स्पर्श और बाबा के नल का पानी

स्थानीय लोग बताते हैं कि बाबा जेल से छूट कर आया तो उसने लोगों को ईश्वर के साथ अपने साक्षात्कार की कहानी सुनानी शुरू की। पटियाली के रहने वाले रवि कुमार बताते हैं कि “इस बीच बाबा ने अपने घर के बाहर लगे हैंडपंप के पानी के चमत्कारिक होने की कहानी भी शुरू की। इस दौरान उनके भक्त बढ़ने लगे और दूरदराज़ के इलाक़ों में नल के चमत्कारिक जल की कहानी फैलने लगी। दूर-दूर से लोग इस नल का पानी लेने आने लगे।” लोगों का मानना था कि इस नल का पानी उनके कष्ट हर लेता है और तमाम तरह की बीमारियों के मुक्ति दिलाता है।

बाबा की लोकप्रियता बढ़ने लगी। हालांकि इन मामलों में जैसा कि अक्सर होता है, बाबा के भक्तों में अधिकांश ग़रीब, पिछड़े और दलित ही थे। इनमें भी अधिकांश कम पढ़ी-लिखी और ग़रीबी से घिरी महिलाएं थीं। कुछ समय बाद ही बाबा की लोकप्रियता पटियाली और कासगंज की सीमाओं को लांघ कर दूसरे क्षेत्रों में फैलने लगी। अब फिरोज़ाबाद, एटा, इटावा, मैनपुरी, कानपुर, जालौन, फर्रुख़ाबाद, आगरा, हाथरस, मथुरा, पीलीभीत, बरेली औऱ मुरादाबाद जैसे शहरों में बाबा के कार्यक्रम आयोजित होने लगे। इन दिनों हर महीने के पहले मंगल को नारायण साकार हरि का विशाल सत्संग आयोजित किया जाता है।

सत्संग में मची भगदड़ के कारण अपनों के मारे जाने के बाद विलाप करतीं महिलाएं

नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा आम बाबाओं की तरह भगवा कपड़े नहीं पहनता है। हमेशा सफेद सूट में नज़र आने वाले बाबा अपने निजी सुरक्षाकर्मी लेकर चलता है। बाबा के साथ गाड़ियों का लंबा क़ाफिला चलता है। कई जगह बाबा ने आश्रम बनाए हैं। जहां-जहां आश्रम हैं, या जहां-जहां बाबा का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, वहां बाबा का हैंडपंप ज़रूर नज़र आता है। बाबा के चमत्कारिक स्पर्श और बाबा के हैंडपंप का जल लेने के लिए अनुयायियों में होड़ मची रहती है। भक्त हैंडपंप का पानी पीकर स्वयं को धन्य समझते हैं। भोले बाबा की भक्ति का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उसके चरणों के नीचे की मिट्टी उठाने की होड़ में सवा सौ लोगों ने अपनी जान गंवा दी।

भोले बाबा का आपराधिक इतिहास

सूरजपाल सिंह के ख़िलाफ सिर्फ यौन शोषण वाला मामला नहीं है, बल्कि अलग-अलग थानों में कुल पांच मुक़दमे हैं। यह मामले आगरा, इटावा, कासगंज, फर्रुखाबाद और राजस्थान के दौसा में दर्ज हैं। 2000 में आगरा में बाबा को पत्नी कटोरी देवी सहित गिरफ्तार भी किया गया था। दरअसल बाबा को अपनी कोई संतान नहीं है। उन्होंने अपनी भतीजी को गोद ले रखा था, जिसकी 16 वर्ष की आयु में कैंसर से मौत हो गई। बाबा ने दावा किया कि वह उसे पुनर्जीवित करेगा। इसके चलते उसने शव का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया। बाद में पुलिस ने दख़ल दिया और बाबा को जेल भेजकर मृतका का अंतिम संस्कार कराया।

हालांकि 2 जुलाई की घटना के मामले में अभी तक बाबा को आरोपी नहीं बनाया गया है। इस मामले में पुलिस का कहना है कि जांच जारी है। डीएम हाथरस ने शासन को जो रिपोर्ट भेजी है, उसके मुताबिक़ आयोजकों ने कार्यक्रम में जितने लोगों के इकट्ठा होने के लिए अनुमति मांगी थी, उससे कई गुना ज़्यादा कार्यक्रम स्थल पर जुटे थे। यही भीड़ दुर्घटना का मुख्य कारण बनी। लेकिन कार्यक्रम में शामिल होने आए अलीगढ़ निवासी संदीप का कहना है कि “सत्संग वाले रास्ते पर जाम लगा हुआ था जिसे प्रशासन ने जबरन हटाने का प्रयास किया। लोग भीड़ में निकलने के प्रयास में एक दूसरे के ऊपर चढ़ते चले गए और भगदड़ मच गई।”

आरोपियों के वकील ए.पी. सिंह के मुताबिक़ “इस घटना के पीछे असामाजिक तत्वों का हाथ है। यह सब एक साजिशन कराया गया है।”

आरोप-प्रत्यारोपों के बीच मामले की जांच के लिए आगरा ज़ोन के एडीजी की अध्यक्षता में एसआईटी का गठन किया गया है। घटना की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग का गठन भी किया गया है। इसमें हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज ब्रजेश श्रीवास्तव, पूर्व आईएएस हेमंत राव और पूर्व आईपीएस भावेश कुमार सिंह शामिल हैं। लेकिन इस बीच सियासी आरोप-प्रत्यारोप भी शुरू हो गए हैं। आरोप लग रहा है कि भोले बाबा को भाजपा के स्थानीय नेताओं का संरक्षण हासिल है इसलिए उनका नाम एफआईआर में नहीं है। भाजपा के लोग बाबा के साथ समाजवादी पार्टी मुखिया अखिलेश यादव की फोटो दिखाकर कह रहे हैं कि बाबा उनके संरक्षण में है। कुछ लोग बाबा की जाति को आधार बनाकर भी आरोप लगा रहे हैं।

सूरजपाल सिंह जाटव उर्फ भोले बाबा

जाति और राजनीति

सूरजपाल सिंह नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा जाति से जाटव है। उसके भक्तों में भी अधिकांश या तो जाटव हैं या फिर अति-पिछड़े और दलित। हाथरस की घटना के मृतकों में भी सबसे ज़्यादा 14 महिलाएं जाटव बिरादरी से हैं। स्थानीय लोगों का दावा है कि बाबा के कार्यक्रमों में तमाम बड़े नेता आते रहे हैं। हालांकि बाबा ख़ुद टीवी, सोशल मीडिया और दूसरे प्रचार माध्यमों से दूरी बनाकर रखे हुए है, लेकिन उनके सियासी रसूख़ से इनकार नहीं किया जा सकता। अलीगढ़ निवासी आलोक कुमार का कहना है “बसपा सरकार के दौर में बाबा का अलग ही जलवा था। तब उनके क़ाफिले में लाल-बत्ती लगी गाड़ियां आम बात थी।”

कासगंज निवासी अनिल शाक्य बताते हैं कि “बाबा के मंच पर जाने वालों में सिर्फ अखिलेश यादव नहीं हैं, बल्कि भाजपा, बसपा और दूसरी पार्टियों के नेता भी जाते रहे हैं। पीलीभीत के एक भाजपा विधायक तो उनके कार्यक्रमों का लगातार आयोजन कराते रहे हैं। बाबा ख़ुद ही दावा करते हैं कि उनके चेलों में नेताओं के अलावा कई आईएएस और आईपीएस हैं।” 

हाथरस निवासी आशीष उपाध्याय का कहना है कि “इस तरह की घटनाओं के बाद घटिया आरोप लगाने का चलन नया नहीं है। कोई इसपर बात नहीं करता कि इन घटनाओं को रोका कैसे जाए।” वहीं सहावर निवासी आलोक जाटव का आरोप है कि “बाबा को उनकी जाति की वजह से ज़्यादा घसीटा जा रहा है। यही बाबा अगर सवर्ण होता तो मीडिया में इतना तमाशा नहीं होता।”

बहरहाल, हाथरस की घटना न पहली है और न आख़िरी। देश में ग़रीबी अशिक्षा, पिछड़ापन, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी जबतक है तबतक चमत्कारों का धंधा मंदा पड़ने वाला नहीं है। ग़रीब, बदहाल, परेशान लोग, जिनकी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच नहीं है, वह इस उम्मीद के साथ अपनी परेशानियां लेकर इस तरह के सत्संगों में जाते हैं कि शायद कोई चमत्कार हो ही जाए। ऐसे में परिस्थितिवश कोई इक्का-दुक्का चमत्कार हो जाता है तो वो लाखों लोगों नें नई उम्मीद जगा देता है। अभी जो हालात हैं देश में, उसमें एक दो बाबा अगर बदनाम भी हो जाएं, दो-चार जेल भी चले जाएं, या पांच-दस दुर्घटनाओं का कारण भी बन जाएं तो भी इस धंधे में मंदी आने वाली नहीं है।

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें