डॉ. पंकज कुमार झा
4 दिसंबर 2022 को 250 वार्डों के लिए होने जा रहे राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के एमसीडी चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा प्रचार अभियान तेज किया चुका है। भाजपा खुद को दिल्लीवासियों का सेवक दल करार देते हुए आगे भी सेवा का अवसर मांग रही है, वहीं आम आदमी पार्टी विधान सभा चुनाव के बाद एमसीडी में भी दिल्लीवासियों का विश्वास हासिल करने में लगी हुई है। दोनों प्रमुख पार्टियों की राजनीतिक खींचतान में कांग्रेस पार्टी भी शीला दीक्षित के दिनों की दिल्ली को फिर से स्थापित करने का वायदा दिल्ली के वोटरों से करती हुई दिखाई दे रही है। चुनावी पंडितों की माने तो इस बार के चुनाव में पिछले पंद्रह साल से दिल्ली एमसीडी में सत्ता की बागडौर संभाल रही भाजपा और विपक्षी आम आदमी पार्टी के बीच जबरदस्त मुकाबला है। वहीं लगभग डेढ़ दशकों से दिल्ली की सत्ता से बाहर कांग्रस पार्टी भी पूरे दमखम से चुनाव को त्रिकोणीय बनाने के प्रयास में जुटी हुई है। इसी क्रम में भाजपा और आम आदमी पार्टी जहाँ एमसीडी चुनाव के मद्देनज़र अपना लोकप्रिय थीम सांग रिलिज कर चुकी है वहीं तीनों प्रमुख दलों ने अपना चुनावी घोषणा पत्र भी जारी किया है। दिलचस्प बात यह है कि तीनों प्रमुख राजनीतिक दलों ने एमसीडी चुनाव में पर्यावरणीय मुद्दों को विशेष तरज़ीह दिया है। सत्ताधारी भाजपा ने अपने घोषणा पत्र को वचन-पत्र करार देते हुए इसमें बारह बिंदुओं को रेखांकित किया है जिसमें दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण और दिल्ली को एक संपोषित राज्य बनाना, कूड़ा से बिजली पैदा करना और दिल्ली की झुग्गी झोपड़ी, अनिधिकृत कॉलोनियों में पानी जैसे आधारभूत जरुरतों की चीज़ों को उपलब्ध करना प्रमुख रुप से शामिल है। दिल्ली की गद्दी में विराजमान और एमसीडी में चुनावी फतह पाने के लिए आतुर आम आदमी पार्टी ने भी दिल्ली को सर्वोत्तम ग्लोबल सिटी बनाने के वायदे के साथ दस गारंटी प्रस्तुत किया है जिसमें दिल्ली की स्वच्छता, कूड़े के पहाड को हटाना, पार्कों की साफ-सफाई आदि पर्यावरणीय मुद्दों को विशेष तरज़ीह दिया गया है। दिल्ली एमसीडी में में लंबे समय तक काबिज़ रही कांग्रेस पार्टी ने भी मेरी दिल्ली चमकती दिल्ली के नारों के साथ एमसीडी चुनाव में अपनी ग्यारह प्राथमिकताओं को रेखांकित किया जिसमें वायु गुवत्ता और यमुना का प्रदूषण प्रमुख मुद्दा है।
प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा एमसीडी चुनाव में उठाये जा रहे पर्यावरणीय मुद्दों के संदर्भ में क्या ऐसा कहा जा सकता है कि दिल्ली सहित शहरी गवर्नेंस का प्रारुप बुर्जुवा पर्यावरणविद् (Bourgeois environmentalist) के प्रतिमान से क्या सचमुच आगे निकलते हुए आम फहम, गरीब गुरबों के पर्यावरणीय मुद्दों की तरफ उन्मुख हो रहा है?
क्या है बुर्जुवा पर्यावरणविद् (बुर्जुवा एनवायरमेंटलिस्ट) की अवधारणा?
प्रख्यात पर्यावरणविद् अमिता वाभिष्कर ने इस शब्दावली का प्रयोग शहरी व्यवस्था के संदर्भ में कुलीन अमीर वर्ग के अनावश्यक हस्तक्षेप और मानसिकता को प्रस्तुत करते हुए किया था। अमिता वाभिष्कर कहती हैं कि प्रकृति मूल रुप से जंगल के रुप में हैं, परंतु बुर्जुवा और अमीर दौलतिया वर्ग प्राकृतिक जंगल के संरक्षण को पर्यावरण का संरक्षण नहीं मानते, बल्कि उनकी दृष्टि में पर्यावरण व प्रकृति का संरक्षण फूलों की क्यारियों, सजावटी पौधों और हरे-भरे लॉन तक ही सीमित है। अपनी बातों को एक उदाहरण से स्पष्ट करती हुई वाभिष्कर कहती हैं कि दिल्ली मॉस्टर प्लॉन के तहत हरे लॉनों की श्रेणी में जंगल को शामिल नहीं किया गया था, उनके लिए जंगल प्रकृति नहीं है बल्कि बगीचा है।
आज जबकि हमारे राजनीतिक कुलीन नेताओं के द्वारा अपने धोषणा पत्रों में दिल्ली के कूड़ा पहाड़ों, वायु प्रदूषण और यमुना नदी के प्रदूषण का बहुत मुश्तैदी से उठाया जा रहा है। ऐसे में क्या ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि दिल्ली की एमसीडी चुनाव के बहाने राजनीति का झुकाव आम फहम के पर्यावरणवादी मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमने लगा है।
तीन बड़े कूड़े पहाड़ की राजनीति
इस बार के नगर निगम चुनाव में दोनों प्रमुख दल एक दूसरे को तीन बड़े कूड़े के मुद्दे पर घेरने में लगी हुई है। एक तरफ आम आदमी पार्टी की माने तो भाजपा के शासनकाल में दिल्ली में तीन बड़े कूड़ा का पहाड़ गाजीपुर, भलस्वा और ओखला के इलाके में बनाया गया जो भाजपा शासित नगर निगम की विफलता का प्रतीक है। इसमें दिल्ली का कूड़ा ही नही बल्कि यूपी और हरियाणा का कूड़ा भी डंप किया जाता है। दिल्लीवासियों को चेताते हुए आप कहती है कि अगर गलती से भाजपा फिर से नगर नगम में विजयी होती है तो दिल्ली में 16 नये लैंडफिल साईट्स बनाये जाने की योजना है। वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी आम आदमी द्वारा लगाये गये इन आरोपों का खारिज़ करते हुए कहते हैं कि उनकी सरकार आगे कोई और नई लैंडफिल नहीं बनाने जा रही है बल्कि उसकी नीति मौजूदा कूड़े के पहाड़ को समतल करने की और उससे बिजली बनाने की है। इस प्रकार दोनों प्रमुख दलों के बीच इस चुनाव में कूड़ा पॉलिटिक्स आज शबाब पर है।
गैस चैंबर बनती जा रही है दिल्ली
कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल इस चुनाव में दिल्ली के वायु प्रदूषण को चुनावी मुद्दा बनाने जा रही है, और इसके लिए आम आदमी पार्टी को सीधा जिम्मेदार मानती है। बहरहाल वायु प्रदूषण का मुद्दा दिल्ली चुनाव को पर्यावरणीय मुद्दों के ईर्द-गिर्द घेरने का अत्यंत सफल प्रयोग है। गौरतलब है कि सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फॉरकॉस्टिंग एंड रिसर्च (SAFAR) द्वारा वायु गुणवत्ता सूचकांक (air quality index) के आँकड़ों को देखें तो दिल्ली का स्थान 249 रहा जो कि खराब माना जाता है। 2022 के नवंबर में जारी द वर्ल्ड ऑफ स्टेटिटिक्स के आँकड़े को अनुसार दिल्ली विश्व के प्रदूषित राजधानी की सूची में अव्वल नंबर पर है। यहाँ महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि दिल्ली के वायु प्रदूषण की स्थिति एमसीडी चुनाव का मुद्दा बनकर उभरा है।
युमना नदी का प्रदूषण
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल आम आदमी पार्टी पर दिल्ली की युमना नदी के प्रदूषण का दोष मढ़ रही है। भाजपा अपने चुनावी थीम सांग में भी केजरीवाल को यमुना नदी को नर्क बनाने का आरोप लगा रही है वहीं कांग्रेस पार्टी आम आदमी की सरकार के शासन में वायु के साथ-साथ यमुना नदी के प्रदूषण और आम लोगों को मिल रही प्रदूषण युक्त पानी का मुद्दा उठा रही है। गौरतलब है कि यमुना नदी अपनी कुल लंबाई का केवल दो फीसदी हिस्सा ही दिल्ली में बहती है परंतु यमुना इसी हिस्से में करीब 76 फीसदी प्रदूषित होती है। यमुना नदी में सीवेज का पानी गिरती है जिससे यमुना का शुद्ध जल नाला में तब्दील हो रही है। हालांकि पिछले तीन दशकों में दिल्ली में आई सरकारें बहुत सारे नीतियाँ नदी के प्रदूषण को रोकने के लिए बनाई है परंतु अभी भी इसमें कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है।