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*अधर्म का नाश हो*जातिवाद का विनाश हो*(खंड-1)-(अध्याय-33)

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संजय कनौजिया की कलम

45 से 50% (प्रतिशत) के लगभग, भाजपा के वोट का जिक्र 2019 के उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव का अपने पिछले लेख, खंड-1 के अध्याय-32 में, मैंने किया था..लेकिन देश के हर राज्य की कुल आबादी अनुसार भाजपा के वोट प्रतिशत का कुल आंकड़ा 40 से 45% (प्रतिशत) के आसपास ही है..जिसमे 30% (प्रतिशत) वोट भाजपा का हर जाति-धर्म-भाषा का ठोस जुड़ा हुआ है..पिछले 2019 के लोकसभा चुनाव में अचानक हुए सपा-बसपा गठबंधन, दो नेताओं का गठबंधन सिर्फ इसलिए असफल हुआ कि मायावती अपनी राजनीति को चमकाने के लिए मनुवादियों से कहीं अधिक समाजवादियों को और पिछड़ी जातियों को कोसती रही..जिसके कारण पिछड़ी और दलित जातियों के कार्येकर्ताओं और आम मतदाताओं में ही जातिवादी वैमनष्य पैदा हो गया..उस वैमनष्य की काली छाया आज भी बरकरार है, यही जमीनी हक़ीक़त है..सबसे पहले इसी जातिवादी अलगाव को दूर करने की जरुरत है, भाईचारा बढ़ाने की जरुरत है..2024 के चुनाव में अभी समय है, अतः विपक्ष के एकजुट राजनीतिक आंदोलन एवं समान विचारधारा के सभी सक्रिय सामाजिक, विद्वान तथा कार्येकर्ताओं द्वारा एक “समाज-सुधारक” के नेतृत्व में, सामाजिक अभियान चलाकर दूर किया जा सकता है, अचानक से किये किसी भी गठबंधन का जमीन पर असरदार प्रभाव नहीं पड़ता..देश के शोषित वर्ग को, मनुवाद या ब्राह्मणवाद के कुचक्र से यदि बचाना है और डॉ० अंबेडकर द्वारा रचित संविधान को बचाना है, तो फिर मायावती को भी अपनी सभी गैर जरुरी इच्छाओं की तिलांजलि देते हुए विपक्ष के साथ कदम बढ़ाने में शीघ्रता करनी होगी..अपनी स्वार्थ सिद्धि की पूर्ती हेतू जिस के कारण मायावती जानी भी जाती है..यदि ऐसा कोई गैर राजनीतिक कदम जो, “डॉ० अंबेडकर के सिद्धांत के विपरीत हुआ”, और मायावती ने उठाया तो, इतिहास मायावती को कभी माफ़ नहीं करेगा जिसमे दलित वर्ग की अन्य सभी जातियां मायावती और उनके अनुयायियों को अनंत काल तक धिक्कारती रहेंगी..यह बात दलित वर्ग की उस ख़ास जाति को भी समझ लेना चाहिए जो केवल वोट देते वक्त हाथी देखता है या हाथी के सहयोगी को..इस बार दलित की उस ख़ास जाति को भी अपने उन सच्चे सहयोगीयों की पहचान करनी होगी कि जो “डॉ० अंबेडकर और डॉ० लोहिया” की अधूरी परियोजनाओं को पूरा करना चाहते हैं, उनके साथ खड़ा हुआ जाए या अपने नेता के उस गैर-जरुरी फैसले का समर्थन पर चलना चाहते है, जिस मनुवाद के विरोध में और दलित अधिकारों के हनन में मान्यवर कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी का निर्माण किया था..यह दलित वर्ग की उस ख़ास जाति के लोगों के राजनीतिक विवेक की परीक्षा की घड़ी भी है..!
विपक्ष में अब तक केवल एक ही पार्टी रही है, जिसे अपने पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में..चुनाव आयोग के छल से कुछ जीते हुए प्रत्याशियों को हारा हुआ घोषित करने के बाद विपक्ष में बैठना पड़ा..जनता के बीच सक्रिय होकर संघर्षरत है और वह पार्टी है राष्ट्रीय जनता दल..निरंतर पार्टी के युवा नेता श्री तेजश्वी यादव, बिहार की जनता से संवाद ही नहीं बनाये हुए रहे, बल्कि उनके हक़-अधिकार हेतू लड़ाई भी जारी रखे हुए रहे..पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता एवं कार्येकर्ता बिहार की जनता से लगातार जुड़े हुए है, यही कारण है कि बिहार में राष्ट्रीय जनता दल अकेली ऐसी पार्टी है जिसने अपने वोट प्रतिशत में गिरावट नहीं आने दी, बल्कि विपक्ष में रहकर भी उस प्रतिशत में इज़ाफ़ा भी किया..राजद का वोट प्रतिशत बिहार में, पिछले विधानसभा चुनाव में 25% (प्रतिशत) के लगभग रहा है, बल्कि पिछले दो सीटों में हुए परिणामो में भले ही राजद सीटें नहीं जीत पाई, लेकिन तेजश्वी की मेहनत ने वोट प्रतिशत को 30% (प्रतिशत) के आस-पास पहुंचा दिया..वर्तमान राजनैतिक स्थिति को समझते हुए..राजद-जदयू दोनों का ही प्रतिशत देखा जाए तो 50% (प्रतिशत) या इसी के आस-पास ही दिखता है..जबकि कांग्रेस-वाम व अन्य दलों के प्रतिशत को जोड़ा जाए तो महागठबंधन सुखद स्थिति में दिखाई पड़ता है..यही सुखद स्थिति भाजपा को बिहार में शून्य पर भी पहुंचा सकती है..इन्ही सब बनते समीकरणों ने भाजपा के एक सहयोगी दल लोजपा में सुगबुआहट पैदा कर दी, और उसके तीन सांसद बल्कि यह भी हो सकता है पाँचों सांसदों वाली लोजपा जल्द पाला बदल कर नितीश कुमार जी के नेतृत्व में महागठबंधन का हिस्सा भी बन सकती है..!
सामाजिक न्याय-समता-धर्मनिरपेक्ष के सैद्धांतिक विचारों से ओत-प्रोत वर्ष, 1989 में वी.पी सिंह, चंद्रशेखर, देवीलाल, बीजू पटनायक, राम कृष्ण हेगड़े जैसे कद्दावर नेता जो सत्ता के शिखर पर सामने आए थे..तो दूसरी ओर मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, रामविलास, शरद यादव, नितीश कुमार, अजित सिंह आदि और भी अन्य नेताओं ने भी जनता दल नामक राजनैतिक दरख़्त को फलदार किया था..समय के बदलते राजनैतिक घटनाक्रमों के थपेड़ों ने इनमे सभी नेताओ को अपने-अपने राज्यों तक ही सीमित कर दिया, लेकिन इन राजनैतिक दलों की विचारधारा की नीव आज भी बहुत गहरी है..तभी इस धारा ने तेजश्वी, अखिलेश, कुमार स्वामी, हेमंत सोरेन, जयंत सिंह जैसे राजनीति की लम्बी रेस के लिए युवा नेता दिए है, तो हरियाणा में अनुभवी अभय चौटाला और उड़ीसा में वरिष्ठम नेता नवीन पटनायक ने अपने पिता बीजूदा की राजनैतिक विरासत को कभी कमजोर नहीं होने दिया..सोचिये वो कितना बड़ा छाता था, जो देश कि कुल आबादी के 85% (प्रतिशत) आबादी की नुमाइंदगी कर रहा था और यही इनकी ताक़त थी..परन्तु अपने-अपने राज्यों तक में ही सीमित रहने की जिद ने इतना बिखराव पैदा कर दिया जिसका सीधा लाभ लगातार भाजपा उठाती रही, भाजपा से पूर्व कांग्रेस भी इस लाभ को अपने समय पर खूब उठाती रही..जबकि जनता दल परिवार की विचारधारा, जो समाजवादी विचारधारा है, इन विचारकों ने देश को 6 प्रधानमंत्री दिए हैं..!
2024 के लोकसभा में भाजपा को हराना असंभव नहीं, यदि सपा नेता अखिलेश अपने सभी गठबंधन के साथियों को एकजुट रखें, चाहे जो हारे हैं या जीतें है, कोई भी अलगाव पैदा किये बगैर, सभी साथियों को लेकर बिहार के नेता तेजश्वी की तर्ज़ पर…

धारावाहिक लेख जारी है
(लेखक-राजनीतिक व सामाजिक चिंतक है)

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