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अधर्म का नाश होजातिवाद का विनाश हो(खंड-1)-(अध्याय-34)

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संजय कनौजिया की कलम

2024 के लोकसभा में भाजपा को हराना असंभव नहीं, यदि सपा नेता अखिलेश अपने सभी गठबंधन के साथियों को एकजुट रखें चाहे जो हारे हैं या जीतें है, कोई भी अलगाव पैदा किये बगैर, सभी साथियों को लेकर बिहार के नेता तेजश्वी की तर्ज़ पर जनता के सुख-दुःख, मौलिक बुनयादी अधिकारों को लेकर मजदूर-किसान-छात्र-युवा-महिलाओं- शोषित-वंचित-उपेक्षित सभी वर्गों की लड़ाई लड़ते रहें बल्कि और भी कुछ छोटे दलों को साथ जोड़कर, तथा मायावती को भी सैद्धांतिक और असरदार गठबंधन बनाने के संकेत देना शुरू करें और रूठे हुए नेताओं को मानाने का कार्य करें तो 50+% (प्रतिशत) वोट के लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं
जनता दल परिवार के अन्य राज्यों में भी जो दल सत्ता में हैं या विपक्ष में उन्हें भी अपने समान विचारधारा वाले छोटे-छोटे दलों के महत्व को समझते हुए, वोट प्रतिशत को 50% तक लाने की जरुरत है..कई राज्यों के खांटी समाजवादी जो विद्वान भी है और राजनैतिक अनुभव या समझ रखते है और सामाजिक स्तर पर या छोटे-छोटे राजनैतिक दलों कि नुमाईंदगी करते है उन्हें भी अपने अपने गिले-शिकवे त्यागकर उदार बनकर देशहित में लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए, जनता दल परिवार के क्षेत्रीय दलों से बातचीत कर युवा नेताओं को आगे रखकर अपने अपने संसदीय क्षेत्र में काम करने की तथा संगठन निर्माण में सहयोग करने के लिए पहल कर एक बड़ा स्वरुप तैयार करना चाहिए..इसके आलावा जनता दल परिवार की हर राज्य की शाखाओं के नेताओं को हर दो-दो महीने बाद चाय पर एक साथ बैठकर भविष्य की रणनीति और योजनाओं पर चर्चा करते रहना ही..50% वोट के लक्ष्य के नजदीक ले जाएगा..ज्ञात रहे की लक्ष्य 50% तक ही सीमित ना रहे लक्ष्य जितना बड़ा होगा वो भाजपा में उतनी ही गिरावट लाएगा..और तब भाजपा को हराना संभव ही नहीं बल्कि वर्ष 1989 के अंकों वाली स्थिति में भी पहुँचाया जा सकता है..!
वर्तमान में बदलते राजनीतिक समीकरणों ने, भाजपा के अंदर बेचैनी बड़ा दी है..वह भी अपनी नई तैयारी में जुट गए हैं लेकिन असमंजस की स्थिति में भी है.. क्योकि मंडल की काट इन कमण्डलधारियों के पास नहीं है..अतः वह उन बिंदुओं को छू रहे हैं हैं जिनपर शायद कुछ, शहरी मतदाता तो एक बार सोच ले लेकिन ग्रामीण मतदाता पर इसका कोई असर नहीं बन पड़ेगा..15 अगस्त, 2022 के आजादी की 75वीं वर्षगाँठ पर लाल किले की प्राचीर से देश को दिए अपने रहष्यमयी काल्पनिक सम्बोधन में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, ने जिन बातों का जिक्र किया है..उस पर आश्चर्य इसलिए नहीं किया जा सकता कि देश की जनता लगातार मोदी जी, के 2014 से यही सब सुनती आ रही है..उनका सम्बोधन सदा भविष्य की योजनाओं को, 10-15 या 25 साल बाद की आधारहीन घोषणाओं तक ही सीमित रह जाता है..उन्होंने एक शब्द भी अपने सवा घंटे के सम्बोधन में, महंगाई, रोज़गार, कालेधन, भाजपा के अंदर का भ्रष्टाचार, शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय, अभिव्यक्ति के अधिकार, बढ़ते अपराध, आदि इत्यादि पर कुछ भी नहीं बोला..वह इस तरह बोल रहे थे कि लाल क़िले की प्राचीर से नहीं, बल्कि किसी चुनावी सभा के मंच से बोल रहे हों..इसबार उनके इस सम्बोधन में आने वाले राजनीतिक खतरे की बेचैनी थी..क्योकिं उनके बढ़ते सत्ता के मद में चूर राजनितिक षंड्यंत्रो को, बिहार ने अंकुश लगा डाला..!
बिहार, भारतवर्ष का वह अनोखा प्रांत है, जिसकी महकती मिटटी ने मानवता को सिर्फ देना सीखा है..भले ही आज बिहार एक पिछड़ा और हैय दृष्टि से देखा जाने वाला प्रांत हो तथा “बिहारी” कहना एक व्यंग हो, लेकिन बुद्ध की कर्म भूमि रहे बिहार में ही सबसे पहले गणराज्य के बीज बोए गए, जो बाद में आधुनिक लोकतंत्र के फल के रूप में पके..अगर भारत के सभी राज्यों की तुलना करें तो बिहार की ऐतिहासिक पृष्टभूमि और गौरवगाथा शायद सबसे समृद्ध हो..प्राचीन इतिहास के दस्तवेजों में बिहार का उल्लेख एक अहम स्थान के रूप में मिलता है..हिन्दुओं के सनातन धर्म से जुड़े कई दृष्टांत और कहानियां बिहार से सम्बृद्ध हैं..किवदंतियों के अनुसार “श्रीराम” की अर्धांग्नी “सीता” का जन्म बिहार के मिथिला में हुआ जिसे आज सीतामढ़ी कहा जाता है..बिहार वह ऐतिहासिक जगह है जहाँ “बुद्ध” को निर्वाण प्राप्त हुआ..दुनियाभर में अपनी पैठ बना चुके बौद्ध धर्म की जड़ें बिहार बौद्ध गया से जुडी हुईं हैं..यही नहीं जैन धर्म के संस्थापक “भगवान महावीर” का जन्म बिहार की राजधानी पटना के दक्षिण-पश्चिम में स्थित पावापुरी कस्बे में हुआ और उनका निर्वाण भी बिहार की धरती पर हुआ..सिखों के दशवें गुरु “गुरु गोबिंद सिंह” का जन्म भी राजधानी पटना के पूर्वी भाग में स्थित हरमिंदर में हुआ, जहाँ आज एक भव्य गुरुद्वारा है..जिसे आज पटना साहिब के रूप में जाना जाता है, जो सिखों के पांच पवित्र स्थल (तख़्त) में से एक है..प्राचीन इतिहास में बिहार तीन प्रमुख महाजनपदों अंग, मगध, और वज्जिसंघ के रूप में बंटा हुआ था..मगध और लिच्छिवि के शासनकाल की कार्येपद्दति से ही आधुनिक प्रशासनिक व्यवस्था की शुरुआत हुई..अर्थशास्त्र के रचियता “कौटिल्य” (चाणक्य) का जीवन भी बिहार की धरती पर ही व्यतीत हुआ..चाणक्य मगध के राजा चन्द्रगुप्त मौर्य के सलाहकार थे…..

धारावाहिक लेख जारी है
(लेखक-राजनीतिक व सामाजिक चिंतक है)

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