डॉ. विकास मानव
बहुत मूलभूत संबंध है। बीमारी का बहुत बड़ा हिस्सा मन से मिलता है। गहरे में तो बीमारी का नब्बे प्रतिशत हिस्सा मन से ही आता है। ध्यान मन को स्वस्थ करता है। इसलिए बीमारी की बहुत बुनियादी वजह गिर जाती है।
ध्यान की प्रक्रिया का शरीर पर सीधा भी प्रभाव होता है. इस प्रक्रिया का पूर्व चरण प्राणायाम है. प्राणायाम यानी श्वास साधना. दस मिनट की तीव्र श्वास भी आपकी जीवन ऊर्जा को, वाइटल एनर्जी को बढ़ाती है।
सारा जीवन श्वास का खेल है। जीवन का सारा अस्तित्व श्वास पर निर्भर है। श्वास है तो जीवन है।
हम जिस भांति श्वास लेते हैं, वह पर्याप्त नहीं है। हमारे फेफड़े में, समझें,अंदाजन कोई छह हजार छिद्र हैं। हम जो श्वास लेते हैं वह दो हजार छिद्रों से ज्यादा छिद्रों तक नहीं पहुंचती। बाकी चार हजार छिद्र, दो तिहाई फेफड़े सदा ही कार्बन डाइऑक्साइड से भरे रह जाते हैं।
वह जो चार हजार छिद्रों में भरा हुआ कार्बन डाइऑक्साइड है, वह हमारे शरीर की सैकड़ो बीमारीयों के लिए कारण बनता है। वह कार्बन डाइऑक्साइड समझें कि आपके भीतर जड़ है, जहां से सभी कुछ गलत निकल सकता है।
दस मिनट की भस्त्रिका, तीव्र श्वास, धीरे-धीरे आपके छह हजार छिद्रों को छूने लगती है, स्पर्श करने लगती है ।
आपके पूरे फेफड़े शुद्धतम प्राण से भर जाते हैं। इसका परिणाम होगा, गहरा परिणाम शरीर पर होगा।
प्राणायाम पहला चरण है. दूसरे चरण का जो ध्यान का हिस्सा है, वह कैथार्सिस का है, रेचन का है। आपको शायद पता न हो, जो लोग ध्यान से बिलकुल भी संबंधित नहीं हैं, वे लोग भी बीमारियों को अलग करने के लिए कैथार्सिस को अनिवार्य मानते हैंं।
आज अमेरिका में कोई सौ से अधिक बड़ी प्रयोगशालाएं हैं, जो सिर्फ कैथार्सिस से सैकड़ों तरह की बीमारियां ठीक करने में सफल हुई हैं।
इसालेन में, कैलिफोर्निया में बड़ी प्रयोगशाला है, जहां वे पंद्रह दिन व्यक्ति को कैथार्सिस से गुजारते हैं। उसे लड़ना है, चीखना है, चिल्लाना है, तो उस सबका उपाय जुटाते हैं। उपाय ऐसा कि जो किसी के लिए वायलेंट न हो जाए। अगर उसे मारना है तो उसके लिए तकिए दे देते हैं कि वह तकिए पर मारे, चोट करे। चिल्लाना है तो एकांत में चिल्लाए, कूदे, फांदे।
पंद्रह दिन में बड़ी से बड़ी बीमारियों पर परिणाम होता है। बड़ी से बड़ी बीमारियां गिर जाती हैं।
यह ध्यान का दूसरा चरण कैथार्सिस का स्वास्थ्य के लिए अद्भुत परिणाम लाता है।
तीसरा चरण में जब हम बिलकुल शांत हो जाते हैं, तो धीरे-धीरे अनहात भीतर पैदा होने लगता है।
इस सबंध में दो बातें समझ लेनी जरूरी हैं :
ओम शब्द को हमने सुना है, समझा है, जगह-जगह लिखा है। लेकिन हमें उसके बाबत कुछ बहुत पता नहीं है। वे लोग जो दिन भर ओम का रटन करते हैं, उन्हें भी पता नहीं है।
ओम, जब सब बंद हो जाता है, चित्त की सब क्रियाएं शांत हो जाती हैं, तब सुनी गई साउंड है। की गई नहीं, सुनी गई। आपके द्वारा की गई नहीं, आपके द्वारा सुनी गई। साउंडलेस साउंड है। ध्वनिरहित ध्वनि है।
जब सब बंद हो जाता है, तो सिर्फ अस्तित्व, जब आप ही रह गए, मन न रहा, विचार न रहे, कोई आकांक्षा, वासना न रही, सिर्फ बीइंग, सिर्फ होना मात्र रह गया, उस क्षण में जो संगीत सुनाई पड़ता है, उस संगीत को हमने अपने मुल्क ने ओम की तरह पकड़ा है, पहचाना है।
एक-एक ध्वनि का स्वास्थ्य मूल्य है, हैल्थ वैल्यू है। आप किस तरह की ध्वनियां सुन रहे हैं, यह आपके स्वास्थ्य के लिए निर्णायक होगा। बहुत देर नहीं लगेगी कि साउंड थैरेपी पैदा हो जाएगी। देर नहीं लगेगी कि धवनियों से हम मरीजों को ठीक करने की कोशिश करने लगें।
दूसरी बात यह की महाध्वनि ध्यान में ही सुनी जा सकती है। महाध्वनि ओम चौथे चरण में धीरे-धीरे प्रकट होनी शूरू होती है। आपको नहीं प्रकट करना है। आपके भीतर से प्रकट होनी शुरू होती है। जब प्रकट होती है तब आप भी चिल्लाने लगते हैं।
अब फर्क समझ लेना जरूरी है। आप ओम-ओम कहते रहें, इससे कुछ न होगा। ओम आपके भीतर से फूटे,
एक्सप्लोड हो, तब परिणाम होंगे।
अगर आप कहते रहे तो बहुत संभावना यह है कि आप इस फाल्स ओम से जो आप कह रहे हैं, इसी से तृप्त हो जाएं और एक्सप्लोजन कभी न हो पाए, विस्फोट कभी न हो।
जिस दिन ओम का विस्फोट होता है, उस दिन आपका प्राण – प्राण, रोआं, रोआं चिल्लाने लगता है, सब तरफ से वही फूटने लगता है।
यह जो परम ध्वनि है, जब सब नहीं था, जब चांद -तारे भी धुआं थे और जब सारा आकाश शून्य था, तब भी गूंज रही थी। जब महाप्रलय में सब शांत हो जाता है, तब भी जो गूंजती रहेगी। वही जब हम भी बिलकुल पूर्ण शांत और महाप्रलय में प्रविष्ट हो जाते हैं–ध्यान महाप्रलय है, उसमें मैं खो जाता है–हमारे भीतर का सब शून्य हो जाता है, तब वह ध्वनि हमें सुनाई पड़ती शुरू होती है। उस महाध्वनि के साथ ही परम स्वास्थ्य उपलब्ध होती है।