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सेना की परीक्षा में भी पेपर लीक,दर्जनों जवान सामना कर रहे हैं कोर्ट मार्शल का

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नई दिल्ली। सेना ने कॉर्प्स ऑफ इंजीनियर्स की डिप्लोमा प्रवेश परीक्षा से संबंधित पेपर के लीक होने की घटना में 11 जवानों का कोर्ट मार्शल का आदेश दिया है।ऐसा कहा जा रहा है कि लीक से जुड़े इस मामले में सेवेन समरी कोर्ट मार्शल (एससीएम) और फोर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट मार्शल (डीसीएम) को यह आदेश दिया गया है।

30 मई को पूरी हुई सुनवाई के बाद एक डिस्ट्रिक्ट कोर्ट मार्शल ने महाराष्ट्र में पुणे के पास स्थित बॉम्बे इंजीनियर्स ग्रुप एंड सेंटर खाड़की के एक हवलदार को 13 महीने की सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इसके अलावा आरोपी की रैंक भी कम कर दी जाएगी।इसी केस में एक दूसरे ट्रायल में समरी कोर्ट मार्शल ने एक जवान को 89 दिन के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है। इसके साथ ही सेवा से उसकी समाप्ति के साथ ही रैंक को भी कम कर दिया गया है। हालांकि सजा की पुष्टि होने के बाद कैद को एक महीने कम कर दिया गया है।

इस बीच डिप्लोमा एंट्रेंस इक्जाम के पेपर लीकेज मामले में दर्जनों जवान अनुशासनात्मक कार्रवाई और कोर्ट मार्शल का सामना कर रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि प्रश्न पत्रों से छेड़छाड़ करने वाले किसी भी अफसर को इन स्थितियों से नहीं गुजरना पड़ा।हवलदार जिसकी सुनवाई 30 मई को पूरी हो गयी वह सेक्शन 63 के तहत तीन आरोपों का सामना कर रहा है।

जो आरोप लगाया गया है उसके मुताबिक वह खाड़की पर 20 अगस्त,  2021 और 10 सितंबर, 2021 को अनुचित तरीके से बांबे इंजीनियर्स ग्रुप एंड सेंटर खाड़की के एक हवलदार या स्टोरकीपर को सेकेंड बैच के डिप्लोमा कोर्स के प्रश्न पत्र को देने के लिए एक दूसरे हवलदार से तीन लाख, एक नायक से ढाई लाख और एक दूसरे नायक से दो लाख बीस हजार रुपये हासिल किए थे।

आरोपियों के पक्ष में रखे गए तर्क के मुताबिक अलग-अलग लोगों से हासिल किए गए मोबाइल फोन जिसमें आरोपी भी शामिल है, को कोर्ट मार्शल या फिर कोर्ट आफ इन्क्वायरी में नहीं शामिल किया गया।

डिफेंस कौंसिल ने कहा कि जांच में शामिल अफसरों ने कोर्ट मार्शल में कहा कि उन्होंने शुरुआती जांच कर ली है और आरोपी हवलदार और दूसरे लोगों के मोबाइल फोन में बड़े स्तर पर वित्तीय लेन-देन देखी है। हालांकि इन आरोपों के समर्थन में न तो मोबाइल फोन का कुछ निकाल कर दिखाया गया और न ही काल डाटा रिकार्ड ही पेश किया गया।

बचाव पक्ष के वकील के मुताबिक सबूतों की समरी में एक स्वतंत्र सदस्य सूबेदार संजय बांद्रे की 14 सितंबर, 2022 को मौजूदगी दिखायी गयी है। जबकि वह अगस्त के अंत से सितंबर 22  के अंत तक एक महीने की छुट्टी पर थे। बचाव पक्ष के वकील ने आरोप लगाया कि सूबेदार के हस्ताक्षर को फर्जी तरीके से सबूतों की समरी पर दर्ज कर दिया गया है।

कौंसिल ने कोर्ट मार्शल में कुछ तथ्यों के धुंधलेपन की तरफ भी सवाल उठाया मसलन परीक्षा को कौन संचालित कर रहा था? कौन संस्था इसको रेगुलेट कर रही थी, कहां सभी परीक्षा केंद्रों को आवंटित किया गया था, पेपर का सोर्स क्या था, प्रश्न पत्र को बनाने के लिए कौन जिम्मेदार था, प्रश्न पत्र के वितरण का क्या परिभाषित तरीका था, सच में परीक्षा हुई थी या नहीं, परीक्षा की तिथि तय करने और उसे लागू करने के लिए कौन पदाधिकारी जिम्मेदार थे।

जबकि दूसरी तरफ सरकारी वकील केवल बैंकिंग लेन-देन पर विश्वास कर रहे थे जिसमें बड़े स्तर पर पैसे का लेन-देन किया गया था। दिए गए समय में बड़े स्तर पर पैसा जमा किया गया था जिसे आरोपी लोन के तौर पर लिया गया पैसा बताकर न्यायोचित ठहराने की कोशिश कर रहा था। हालांकि सरकारी वकील ने इस बात को साबित कर दिया कि यह डिप्लोमा प्रवेश का पेपर हासिल करने के लिए भुगतान के तौर पर इसे ट्रांसफर किया गया था।

89 दिनों के सश्रम कारावास की सजा पाए जवान ने बाद में दावा किया कि उसे समरी कोर्ट मार्शल में जबरन गुनाह कबूल करने के लिए मजबूर किया गया। और ऐसा दबाव डाल कर किया गया। उसने बताया कि पूरी कोर्ट की कार्यवाही महज 10-15 मिनट चली। इसके साथ ही उसने यह भी आरोप लगाया कि कोर्ट आफ इन्क्वायरी और प्रमाण की समरी पर उसके हस्ताक्षर को दबाव डाल कर लिया गया था। और उसे इस बात की धमकी दी गयी थी कि ऐसा न होने पर नौकरी जाने का खतरा, छुट्टी से इंकार और कैद हो सकती है।

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