अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

डॉ. मानवश्री की कहानी उन्हीं की जुबानी 

Share

       नेहा, नई दिल्ली 

जो लोग मेडिसिन- मेडिटेशन, विज्ञान- तंत्र, अर्थ- अध्यात्म, समाज- सियासत, अखंडप्रेम- समाधिपरक संभोग जैसे अनगिनत टॉपिक्स पर मानवश्री के शोधपरक लेख पढ़ते हैं,  स्वाभाविक उत्सुकता-वश उनके बारे में जानना चाहते हैं. 

    उनको जान पाना तो उनका सानिध्य पाने और उनको जीने पर ही संभव है. यह मुश्किल भी नहीं है क्योंकि वे किसी भी रूप में किसी से कुछ लेते नहीं हैं. वे खुद को खास और किसी को आम भी नहीं समझते हैं. लघुता – दीर्घता से परे, हम सबके आराध्य मानवश्री समता-पोषक हैं. वे आपको मित्रवत ही लेते हैं.

   नारी जाति उनके लिए भोगने की नहीं, पूजने की सब्जेक्ट है. हाँ नारी अलबत्ता उनको भोग सकती है : जितनी भी उसकी क्षमता हो. उसकी ‘आवश्यकता’-पूर्ति के लिए वे प्रतिबद्ध हैं. अभी तीन दिन पहले उन्होंने मेरी प्रेयर पर मुझे एक्सेप्ट किया है. जो मिला उनसे, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है. मैं उनसे उनकी जीवन-कहानी पूछी तो बोले, ”जन्म-मृत्यु से पृथक एक आगंतुक भर हूँ इस पृथ्वी पर, एक समय विशेष के लिए”.

   यहाँ उनका संक्षिप्त जीवनवृत्त उनके ही शब्दों में मैं आपको दे रही हूँ.

———————————–

       _मेरा जन्म 15.08.85 को वाराणसी संभाग के यादव परिवार में हुआ. जीवन- जगत के रहस्यों के प्रति रुझान मुझे पास्ट लाइफ से मिली थी. जिज्ञासाएं अनंत थी. समाधान की खोज स्वाभाविक थी._

     शिक्षार्जन के साथ तमाम संतों-फकीरों, औघड़ों-तांत्रिकों और स्व-घोषित भगवानों तक भटकने लगा. किसी से कुछ नहीं मिला. फिर खुद ही साधनाएं करने लगा और ज़िद में बहुत सी सिद्धियां प्राप्त किया. जिनको इनके बारे में जानना है, मेरे लिटरेचर पढ़ें या मिलकर साक्षात देखें, अनुभव करें.

        पहले आर्य समाज से संपर्क हुआ था. तो बताया कि गया 25 साल तक की उम्र ब्रह्मचर्य की होती है. इस समय तक स्त्री को छूना, उससे बात करना तो दूर उसको सुनना, उसके बारे में सोचना भी पाप होता है. मैं ब्रह्मश्चर्य साधना में इन्वाॉल्व हो गया.

       गावों में तब बचपन में ही विवाह कर देने का रिवाज था. मेरे लिए लाये जाने ने वाले सारे रिश्तों को मैं मना करता गया.

     बाद में बेलुढ़ मठ (विवेकानंद के गुरू का सेंटर) हावड़ा से कनेक्ट हुआ.

  अब 25 साल का हो गया था. लेकिन आने वाले रिश्तों को अब भी मना करता रहा. इसलिए कि विवेकानंद बनना था. वे अविवाहित थे.

     औरों की तरह लड़कियो के पीछे जीभ लपलपाते हुए पड़े रहना और गर्लफ्रेंड बनाना तो दूर, शादी तक से भागना. ऐसे में लोगों को लगा ये तो  नपुंसक है. परिवार- रिस्तेदारी के लोग नाराज होकर, मुझ से कटने लगे.

         इस बीच यूनिवर्सिटी में अध्ययन के दौरान एक ईसाई सहपाठी से मैत्री हुई और फिर प्रेम में बदल गई. प्यार का ऐसा तूफान आया जीवन में कि पिछले सारे आदर्श हवा में उड़ गए. सारे कंठी माला टूट गए. मैंने डिक्लेयर कर दिया कि शादी इससे ही करूंगा.

     यहीं से ज़माना दुश्मन बन गया. घर वालों के हाथ से दान- दहेज गया. दूसरी तरफ लड़की विजातीय ही नहीँ विधर्मी भी. हालात इतने बिगड़े कि मुझे चल-अचल सम्पत्ति से लीगली बेदखल कर दिया गया.

    शहर आकर एक अख़बार में साहित्य सम्पादक का दायित्व स्वीकारा. सिटी में सिफ्ट हुआ और सब ठीक से चलने लगा.

   प्रेमिका ने बॉडी रिलेशन की डिमांड की. “शादी से पहले पाप” कहकर मैं मना कर दिया. अब तक के साधनाओं वाले जीवन का असर था. आज के स्टेज पर होता तो मना नहीं करता.

       अगले दिन पता चला की वो प्रेमिका तो पिछले कुछ माह से मेरे एक इंडस्ट्रिलिस्ट मित्र के साथ एक होटल में खुद को शेयर करती है.

   अब सच तो पता करना था ही. कोशिश किया तो दोनों को रंगे हाथ पकड़ा.

     उसके रोने-गिड़गिड़ाने और अब ऐसा नहीँ करने की बात कहकर बारबार शॉरी बोलने पर मैंने माफ कर दिया उसे. सोचा इतनी सिद्द्त से इसे प्यार किया हूँ, एक मौका तो देना ही चाहिए.

      लेकिन उसी दिन की रात वो अपने प्रेमी से मुझ पे प्राणघातक हमला करवा दी. टेरिस पर सोया था. वो सफल नहीँ हुआ, मैं किसी तरह कुदकर भाग निकला.

     जान तो बची, मगर सब कुछ ख़त्म हो गया. घर से भी गया और घाट से भी. गंगा तट पर पंहुचा और सोचने लगा की अब ऎसी जान किस काम की. पागलखाने में भर्ती होना या पागल बनकर सड़क पर भटकना मंज़ूर नही था. शरीर से मुक्त होना ठीक लगा.

      गंगा में विसर्जित होने लगा कि, किसी ने धक्का देकर पीछे फेक दिया. आवाज आई कि : तू सक्षम है. और भी अधिक सक्षम बन. कम से कम उनके लिए जी, जो तेरे जैसी दशा में लाये जाते हैं.

    तमाम कोशिश के बाद भी कहीं कोई नहीं दिखा. देवात्मा थी या प्रेतात्मा : पता नहीँ चला. लेकिन उसकी ये बात मेरे मस्तिष्क में बैठ गई.

    बेलुढ़ मठ के कानपुर सेंटर आया. सब कुछ जानने के बाद ये लोग मुझे अमेरिका भेज दिये. वहाँ से मनोचिकित्सा और मेडिटेशन में डॉक्टरेट किया.

     इण्डिया वापस लौटकर 2000/- फीस पर मात्र 50 पेसेंट देखकर डेली एक लाख कमाने लगा.

  करता क्या इतने पैसे? 

_बसा सकता था घर. अब भी बसा सकता हूँ. मुझ से ऐसा चाहने वालियों की लाइन कभी ख़त्म नहीं होती. मगर प्यार बिना ये बसावट नर्क होगी. आज प्यार के मायने ही अलग हैं.  स्वार्थ, शोषण और व्यापार ही अब प्यार है._ मेरे स्तर का प्यार करने वाली कोई कभी मिली तो बसा लूंगा घर. ऐसे रहने की कोई कसम नहीं ले रखी है.

         तो सब पैसे डोनेट करने लगा. बाद में पता चला कि जिन असहाय लोगों के लिए मैं डोनेट करता हूँ — उनको कोई लाभ इसका नहीँ मिलता. दान लेने वाले लोग खा जाते हैं.  मुझे लगा मैं खुद ही फ्री हो जाऊं – हर जरुरतमंद को सीधे मुझ से लाभ मिले.  निशुल्क सेवा देने का मिशन यहाँ से शुरू हुआ.

        अब देश – विदेश में मेरे कैम्प भी लगते हैं. मन और मन से उपजे तन के रोगों का निवारण करने के साथ ध्यान का प्रशिक्षण भी जरूरतमंदो को देता हूँ. इसके आलावा 17 से 70 साल तक के नामर्दों का इलाज़ करके, उनको एक घंटे सेक्स करने की केपेसिटी भी देता हूँ.

      यह रियलिटी ओपेन होने के बाद फीमेल्स को लगता है कि अगर खुद यह इंसान ही मुझे मिल हो जाये तो ख़ुशी-तृप्ति का कितना बेहतर स्टेज देगा.

    इसलिए हर क़ीमत चुकाने की तैयारी के साथ गर्ल्स की लाइन लगी रहती है : वन नाईट के लिए, मेरे जैसी एक संतान के लिए, एक बार या बारबार की फीलिंग्स के लिए.

    मग़र मै योगी_ध्यानी डॉक्टर हूँ. अपनी ऊर्जा ऐसे बर्बाद नहीं क़र सकता. दुराचारी बनने का अर्थ है : जिस विद्या/साधना/क्षमता के बल पर मैं समाधान देता हूँ — वह सब स्वाहा.

     लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि मैं सब को निराश करता हूँ. उन्हें जो चाहिए, मिलता है. उनको सुपर ऑर्गज्मिक स्टेज देता हूँ : बस पेनिस यूज़ नहीं करता. उनको आम खाकर- चूसकर तृप्त होने से मतलब होता है, गुठली से किसी को मतलब क्यों होगा.

    मेरे पास इसके लिए मेडिटेशन थेरेपी, टच/मसाज थेरेपी, प्राणिक हीलिंग, ऊर्जाट्रांसफर थेरेपी, योनिपूजा थेरेपी/योनि मसाज थेरेपी की टेकनिक है. अब तक तो मैं नहीं हारा हूँ. पूरी तरह संतुष्ट होकर देश-विदेश की हर गर्ल्स/फीमेल्स ने यही कहा है की, “मुझे तृप्ति मेरी कल्पना से भी अधिक मिली है. अब बस.”

      _बिना वास्तविक प्यार के, योनि-पेनिस वाला सेक्स जानवर करते हैं. यह पाप हो या न हो लेकिन ज़हर जरूर सावित होता है; खासकर फीमेल के लिए. अवसाद, आत्मग्लानि, अपराधबोध, होर्मोन्स का असंतुलन, आर-एच फैक्टर में व्यवधान, मन और फिर तन के रोग._

    हमारी सारी सेवाएं निःशुल्क हैं. सिर्फ़ होमसर्विस स-शुल्क है. होम सर्विस का पैसा भी मैं नहीं लेता.  अनाथ बच्चों को बचपन – शिक्षण का अनुभव देने वाला “ज्योति अकादमी” ट्रस्ट मुझे मैनेज करता है. पार्टी होम सर्विस का चार्ज सीधे ट्रस्ट के अकाउंट में भेजती है. मेरे लिए वह सिर्फ़ यात्रा-टिकिट, अपने यहाँ आवास और भोजन का इंतजाम करती है.

      (डॉ. विकास मानव, डायरेक्टर : चेतना-स्टेमिना विकास मिशन)

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें