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देश-विदेश में सदा छाये रहे डॉ. वैदिक

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-डॉ हिदायत अहमद खान

डॉ. वेद प्रताप वैदिक को उन राष्ट्रीय अग्रदूतों की सूची में शामिल किया जाता रहा है, जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। यहां यह कहना गलत नहीं होगा कि डॉ वैदिक ने महर्षि दयानंद, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और डॉ. राममनोहर लोहिया जैसी महान हस्तियों की परंपरा को आगे बढ़ाने का काम एक योद्धा की ही तरह किया। डॉ वैदिक ने हिन्दी के लिए अपूर्व संघर्ष करते हुए पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, विश्व यायावरी, प्रभावशाली वक्तृत्व, संगठन-कौशल आदि अनेक क्षेत्रों में एक साथ मूर्धन्यता प्रदर्षित किया। एक साथ विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रमुख उपस्थिति दर्ज कराने वाले अद्वितीय व्यक्त्तिव के धनी डॉ. वेद प्रताप वैदिक का जन्म 30 दिसंबर 1944 को पौष की पूर्णिमा पर इंदौर में हुआ था। प्रारंभिक पढ़ाई से ही प्रथम श्रेणी के छात्र रहे। डॉ वैदिक रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत के भी अच्छे जानकार रहे। उन्होंने अपनी पीएच.डी. के शोधकार्य के दौरान न्यूयार्क की कोलंबिया युनिवर्सिटी, मास्को के ‘इंस्तीतूते नरोदोव आजी, लंदन के ‘स्कूल ऑफ ओरिंयटल एंड एफ्रीकन स्टडीज़’ और अफगानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में अध्ययन और शोध किया। डॉ वैदिक ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज’ से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में शोध कार्य करते हुए पीएच.डी. की उपाधि हासिल की थी। वे भारत के ऐसे पहले विद्वान थे, जिन्होंने अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति विषय का शोध-ग्रंथ हिन्दी भाषा में प्रस्तुत किया।


एक समय ऐसा भी आया जबकि डॉ वैदिक को निष्कासन का दंश भी सहना पड़ा। उनका निष्कासन राष्ट्रीय मुद्दा बना और 1965-67 में इस मुद्दे को लेकर संसद हिल गई। जानकारों की मानें तो डॉ. राममनोहर लोहिया, मधु लिमये, आचार्य कृपालानी, इंदिरा गांधी, गुरू गोलवलकर, दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्रशेखर, हिरेन मुखर्जी, हेम बरूआ, भागवत झा आजाद, प्रकाशवीर शास्त्री, किशन पटनायक, डॉ. जाकिर हुसैन, रामधारी सिंह दिनकर, डॉ. धर्मवीर भारती, डॉ. हरिवंशराय बच्चन, प्रो. सिद्धेश्वर प्रसाद जैसे लोगों ने वैदिकजी का डटकर समर्थन किया था। सभी दलों के समर्थन से डॉ वैदिक को विजय प्राप्त हुई और इस प्रकार एक नया इतिहास रचा। यही नहीं डॉ वैदिक ने पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार अंतर्राष्ट्रीय मंच पर खोले।


गौरतलब है कि डॉ वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा महज 13 वर्ष की आयु में की थी। हिंदी सत्याग्रही के तौर पर वे 1957 में पटियाला जेल भेजे गए थे। बाद में छात्र नेता और भाषाई आंदोलनकारी के तौर पर कई जेल यात्राएं उन्हें करनी पड़ीं । भारत में चलने वाले अनेक प्रचंड जन-आंदोलनों के डॉ वैदिक सूत्रधार बने! अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन किया! राष्ट्रीय राजनीति और भारतीय विदेश नीति के क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभाई। कई भारतीय और विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार बने। लगभग 80 देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कीं। इसके साथ ही डॉ वैदिक ने सन् 1999 में संयुक्तराष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इसी वर्ष विस्कोन्सिन युनिवर्सिटी द्वारा आयोजित दक्षिण एशियाई विश्व-सम्मेलन का उद्घाटन भी किया। यह किसी अचम्भे से कम नहीं कि पिछले 60 वर्षों में डॉ वैदिक के हजारों लेख और भाषण देश-विदेश के समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित हुए। वे लगभग 10 वर्षों तक पीटीआई भाषा (हिन्दी समाचार समिति) के संस्थापक-संपादक और उसके पहले नवभारत टाइम्स के संपादक (विचारक) रहे। देश की पहली डिजिटल न्यूज एजेन्सी ईएमएस के लिए 25 वर्षों तक नियमित लेखन करते रहे। जो 700 से ज्यादा समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर डॉ. वैदिक के लेख नियमित एवं साप्ताहिक प्रकाशित होते रहे। ईएमएस समूह के अपने समाचार पत्रों में भी डॉ वैदिक के लेखों को सदा ही प्रमुखता से स्थान मिला।


भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए। अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया। डॉ वैदिक ने आकाशवाणी और विभिन्न टीवी चैनलों पर 1962 से अगणित कार्यक्रम दिए। डॉ. वैदिक ने ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ: क्यों और कैसे?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’, ‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’, ‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका: इंडियाज आॅप्शन्स’, ‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो?’, ‘वर्तमान भारत’, ‘अफगानिस्तान: कल, आज और कल’, ‘महाशक्ति भारत’, ‘भाजपा, हिंदुत्व और मुसलमान’, ‘कुछ मित्र और कुछ महापुरुष,’ ‘मेरे सपनों का हिंदी विश्वविद्यालय’ ‘हिंदी कैसे बने विश्वभाषा’ ‘स्वभाषा लाओ:अंग्रेजी हटाओ’, आदि स्तरीय पुस्तकों का सृजन किया। कुछ साल पहले ही ईएमएस समूह द्वारा डॉ वैदिक की पुस्तक भाजपा, हिंदुत्व और मुसलमान पर राजधानी भोपाल में एक स्तरीय विचार-विमर्श कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिसमें स्वयं डॉ वैदिक उपस्थित हुए थे और समारोह के दौरान पूछे गए सवालों का उन्होंने बहुत ही शालीनता से जवाब भी दिए थे। तब रवींद्र भावन हॉल में उपस्थित तमाम लोग उनके कायल हो गए।


अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित डॉ वैदिक आज भले हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके बताए रास्ते पर चलते हुए हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं। ऐसे बहुमुखी प्रतिभा के धनि डॉ वैदिक को विश्व हिन्दी सम्मान (2003), महात्मा गांधी सम्मान (2008), दिनकर शिखर सम्मान, पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण-पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार, हिन्दी अकादमी सम्मान, लोहिया सम्मान, काबुल विश्वविद्यालय पुरस्कार, मीडिया इंडिया सम्मान, लाला लाजपतराय सम्मान आदि से समय-समय पर नवाजा गया। डॉ वैदिक की अंतिम समय तक अनेक न्यासों, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय, अध्यक्ष, भारतीय भाषा सम्मेलन एव भारतीय विदेश नीति परिषद में सतत भागीदारी रही।

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