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जंजीरों से बंधे सपने हमारे / आसमान से धरती कितनी दूर है? / हम हैं बीच के बंदर / एक नाजुक कली

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जंजीरों से बंधे सपने हमारे

पूजा बिष्ट
कपकोट, उत्तराखंड

जंजीरों से बंधे सपने हमारे,
खुले आसमान के नीचे सोच में डूबे हैं,
क्यों हम पर बनते नियम इतने सारे?
ये सोच कर हम रोते सारे,
कुछ सीखने के लिए हमे रोकते हैं,
पर खुद से कुछ न करते हैं,
हर बात पर टोकना और रोकना,
अपने सपनों को है पूरा कर लेना,
वह दुनिया का नियम समझाने लगा,
हमें भी उद्देश्य समझ में आने लगा,
वो हमें समझा रहा, जिसे खुद न आ रहा है,
दुनिया के रीति रिवाजों से हमें परे जाना है,
हमारे बारे में कहां किसी ने कुछ सोचा है?
सपने साकार न कर पाएंगे मन में ये बैठाया है,
दुनिया वालो ने हमें ये कहीं न कहीं पाया है।।

आसमान से धरती कितनी दूर है?

तानिया आर्य
चौरसों, उत्तराखंड

आसमान धरती कितनी दूर है?
पर वह दोनों कितने समान हैं,
एक पर लोग हैं रहते तो,
दूसरे पर चांद सितारे हैं,
अपने कामों को बखूबी निभाया,
दोनों अलग अलग हैं मगर,
साथ-साथ होने का एहसास दिलाया,
बैठा इंसान धरती पर आसमान को निहारे,
आसमान के उजाले धरती की दिशा में फैले,
मनुष्य धरती से इसका बड़ा ही आनंद उठाएं,
बारिश आसमान को छोड़ धरती को चूमे,
चिड़िया धरती छोड़ आकाश में उड़ जाए,
दोनों का संग जैसे दूर होकर भी,
अपने होने का एहसास दिलाए॥

हम हैं बीच के बंदर

भावना गढ़िया
कक्षा-12
कपकोट, बागेश्वर
उत्तराखंड

हम स्कूल के न तो टॉपर हैं,
और न ही कोई बैकबेंचर,
हां, अब समझ आया है,
हम हैं स्कूल में बीच के बंदर,
पढ़ाई तो कर लेते हैं,
जैसे तैसे पास भी हो लेते हैं,
डर बोर्ड एग्जाम का नहीं,
हमें तो घर वालों का होता है,
बोलेंगे तुमसे अच्छा तो उनका बेटा है,
क्लास में हमेशा टॉप आता है,
क्या करें किसी की तारीफ पसंद नहीं,
सोच रहे हैं कोई बिजनेस करें,
जब करेंगे तो तुम्हे भी बुलाएंगे,
इतना मत सोचो, कविता ही भिजवाएंगे,
अभी चलती हूँ, घर वालों के ताने सुनती हूँ।।

एक नाजुक कली

कविता
लमचूला, उत्तराखंड

आशाओं में बढ़ रही वो नाजुक कली,
क्यों है वह किसी से डरी हुई?
सपने सजा कर आई है वो,
आखिर क्यों है परायों से घिरी हुई?
इस संसार में क्यों है वह खिली हुई?
क्यों रहती वह हर वक्त मुरझाई?
आस लगा कर अभी भी बैठी है वो,
मगर आंखों से आंसू बहाती है वो,
आज भी है वो एक नाजुक सी कली,
अपनो के इंतज़ार में बैठी है वो भली,
इस दुनिया में कौन है अपना और पराया,
इस भेद को नहीं जानती वो नाजुक कली।।

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