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विकसित भारत के लिए एजुकेशन और स्किल अहम

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स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर


प्रधानमंत्री मोदी का सपना विकसित भारत का है। उनका लक्ष्य है कि 2047 तक भारत अमीर देश बने। इसके लिए जरूरी है अच्छी शिक्षा। इसका तात्पर्य है कि भारतीय वैश्विक मानकों के अनुसार, हाई इनकम के योग्य बनने के लिए शिक्षित और कुशल बनें। हालांकि, 2023 की वार्षिक शिक्षा सर्वेक्षण रिपोर्ट (ASER) निराशाजनक है। लगभग एक चौथाई युवा (14-18 वर्ष) अपनी क्षेत्रीय भाषा में कक्षा 2 की पाठ्य सामग्री को बिना अटके धाराप्रवाह नहीं पढ़ सकते हैं। केवल 43 फीसदी आसान डिविजन के सवाल हल कर सकते हैं। ASER एक ग्रामीण सर्वेक्षण है, और उम्मीद है कि शहरी स्कूल बेहतर होंगे, लेकिन अधिकांश आबादी ग्रामीण है।

विकसित भारत के लिए शिक्षा क्रांति जरूरी

भारत में कुछ विश्व स्तरीय स्कूल और कॉलेज हैं जो वर्ल्ड क्लास ग्रेजुएट्स तैयार करते हैं। लेकिन इस आवरण के नीचे शिक्षा की हालत खराब है। 1.4 बिलियन आबादी वाले देश में, ये एक महीन परत है, जो लाखों लोगों के बराबर है, जिन्होंने भारत और विदेशों में प्रतिष्ठा हासिल की है। लेकिन राज्यों के सरकारी स्कूल ज्यादातर दयनीय हैं। पिछले दस सालों में ASER की रिपोर्ट में कोई सुधार नहीं हुआ है। इसके विपरीत, सेंटर के केंद्रीय विद्यालय अच्छे स्कूल हैं। वे सिविल सेवकों के बच्चों के लिए डिजाइन किए गए हैं, और इस एलिट क्लास के पास गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने का प्रभाव है। मैंने अपने ड्राइवर के दो बच्चों, सौरभ और लवली खत्री को मंत्री के विवेकाधीन कोटे के माध्यम से केंद्रीय विद्यालय में एडमिशन दिलाने में मदद की।

शिक्षा कैसे निभा सकता है अहम रोल

ग्रेजुएशन और कॉलेज के बाद, सौरभ को TCS ने काम पर रखा और वर्तमान में वह एक नई IT कंपनी में शिफ्ट हो रहा है। लवली एक और शीर्ष IT कंपनी कॉग्निजेंट में काम करती है। उन्होंने एक बड़ी छलांग लगाते हुए सामाजिक सीढ़ी नीचे से ऊपर की ओर बढ़ गए हैं। भारत को हाई इनकम वाला देश बनने के लिए ऐसा लाखों बार दोहराने की आवश्यकता है। लेकिन शिक्षा एक राज्य का विषय है, और राज्य सरकार के स्कूल आमतौर पर भयानक होते हैं। उनका पूरा पारिस्थितिकी तंत्र दोषपूर्ण है। एक प्रसिद्ध सर्वेक्षण के अनुसार, आधे स्कूलों में शिक्षक अनुपस्थित हैं या पढ़ाते नहीं हैं। गांव के स्कूलों में, कई बच्चे पढ़ाई के लिए नहीं बल्कि मिड डे मील के लिए विद्यालय आते हैं। विभिन्न ग्रेड के दर्जनों छात्रों वाले एक-टीचर स्कूल अच्छे रिजल्ट नहीं दे सकते।

अभी क्या है एजुकेशन सिस्टम का हाल

कई शिक्षक राजनीति से प्रेरित होते हैं और सियासी दलों से जुड़े हुए हैं। यह स्कूली अनुशासन को बर्बाद कर सकता है। राज्य सरकारें न केवल पढ़ाने के लिए बल्कि चुनाव, जनगणना और अन्य कार्यों के प्रबंधन में भी शिक्षकों का इस्तेमाल करती हैं। एक शिक्षक को मंदिर में पुजारी बनने के लिए भी कहा गया था। शिक्षक संघ शक्तिशाली हैं और किसी भी बदलाव का विरोध करते हैं। स्कूल और कॉलेज दोनों में कई शिक्षकों का कहना है कि उनका करियर उनके छात्रों के परिणामों से ज्यादा राजनीतिक संबंधों पर निर्भर करता है। जब पूरा पारिस्थितिकी तंत्र खराब हो जाता है, तो बदलाव मुश्किल होता है। ढांचे को तोड़ना भारी प्रतिरोध का सामना करता है।

आगे का रास्ता क्या है?

सबसे अच्छा तरीका यह है कि कुछ शानदार केंद्रों- उत्कृष्ट सेंटर्स- को कम डेवलप राज्यों में शुरू किया जाए। फिर फेजवाइज उनका विस्तार किया जाए। इससे धीरे-धीरे पुराने को विस्थापित करने के लिए एक नया इको सिस्टम बन सकता है। इस प्रयास में दशकों लगेंगे, इसलिए तत्काल शुरुआत की आवश्यकता है। एक व्यावहारिक समाधान है, प्रधानमंत्री मोदी, केंद्रीय विद्यालयों और राज्य के स्कूलों का ज्वाइंट वेंचर बनाकर शानदार सेंटर शुरू करना। इन्हें केंद्र और राज्यों की ओर से संयुक्त तौर पर 70:30 के अनुपात में फंड किया जा सकता है। यही नहीं इन केंद्रों को राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाया जाना चाहिए। 

इन शानदार केंद्र में कुछ शिक्षक स्थायी कर्मचारी हो सकते हैं, लेकिन अन्य में राज्य के स्कूलों से आने वाले कर्मचारी होने चाहिए। ये पांच साल तक उत्कृष्ट स्कूलों में काम करेंगे और फिर नए इको सिस्टम को फैलाने की कोशिश करने के लिए राज्य के स्कूलों में वापस आ जाएंगे। प्रोजेक्ट के विस्तार के बाद कई लोग नए शानदार केंद्रों का संचालन कर सकते हैं। इसे उस प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा जो एक पूर्ण बदलाव के लिए करना होगा। इसलिए यह राजनीतिक रूप से गैर-विघटनकारी है।

क्या उठाए जा सकते हैं कदम

कई राज्य इसका विरोध कर सकते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि केंद्र उनके क्षेत्र में अतिक्रमण कर रहा है। भले ही केंद्र की ओर से अधिकांश फंडिंग का फैसला लिया गया हो। ऐसे में हमें गैर-हस्तक्षेपकारी सुधार के लिए वैकल्पिक विचारों की भी आवश्यकता है। पीएम मोदी, सबसे सरल गैर-टकराववादी रास्ता आपके अपने हाथों में है। आरएसएस 3.4 मिलियन छात्रों के साथ 12,000 से अधिक विद्या भारती स्कूल चलाता है। ये स्कूल हिंदू परंपराओं के ज्ञान और गर्व को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। लेकिन यह मुस्लिम और ईसाई बच्चों को भी प्रवेश देते हैं। इनमें से एक ने 2016 में असम में कक्षा 10 की परीक्षा में टॉप किया था।

ऐसे बदल सकती है स्थिति

इनमें से ज्यादातर क्लास 5 तक के प्राथमिक विद्यालय हैं। निश्चित रूप से, विकसित भारत की तलाश में, आपकी सर्वोच्च प्राथमिकता विद्या भारती स्कूलों को केंद्रीय विद्यालयों के स्तर पर अपग्रेड करना होनी चाहिए। इसका मतलब है कि सभी कक्षा 5 के स्कूलों को कक्षा 12 के स्तर पर अपग्रेड करना और ऐसे ग्रेजुएट्स तैयार करना जिन्हें शीर्ष कॉलेजों में प्रवेश मिलेगा। आपको कैप्टिव स्कूलों के लिए किसी राजनीतिक हस्तक्षेप का सामना नहीं करना पड़ेगा, और न ही फंड की कोई कमी होगी।

उद्योगपति ऐसे बेहतरीन उपक्रमों को खुशी-खुशी फंड देंगे। आरएसएस कुछ इंटरमीडिएट स्कूल और नियमित कॉलेज भी चलाता है। इन्हें भी अपग्रेड करने की जरूरत है, अंततः सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली या प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता के समकक्ष बनाने का प्रयास करना चाहिए। इसमें दशकों लगेंगे। लेकिन अपने स्वयं के स्कूलों और कॉलेजों को उत्कृष्टता की ओर धकेलकर, पीएम मोदी एक नया शैक्षिक इको सिस्टम बना सकते हैं जिसका असर राज्यों पर भी पड़ेगा।

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