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आठवें राष्ट्रपति आर वेंकटरमन… देश को बनाया मिसाइल पावर

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 राष्ट्रपति का चुनाव हर 5 साल में होता है। कई बार ये चुनाव बड़ी आसानी से होते रहे हैं। तो कई बार ऐसे फेच फंसते हैं कि सत्ता पक्ष से विपक्ष हर जोर आजमाइश करते दिखते हैं। अगर बात करे देश के आठवें राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमन के चयन की तो यहां भी काफी गहमागहमी हुई थी। 1987 की गर्मियां कांग्रेस पार्टी के लिए, खासतौर पर राजीव गांधी के लिए खुशनुमा तो नहीं ही थी। तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और राजीव के बीच तनातनी का दौर था और उस वक्त राजीव की कुर्सी भी खतरे में दिख रही थी।

हिल गई थी कांग्रेस
ऐसा लग रहा था कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के बीच ही जोर आजमाइश हो जाएगी। दरअसल, उस वक्त कांग्रेस के पास दो तिहाई मत थे और ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस बड़ी आसानी से आर वेंकटरमन को राष्ट्रपति बनवा लेगी। लेकिन तभी मामले में ट्विस्ट आ गया। विपक्ष तमाम कोशिशों के बावजूद अपने राष्ट्रपति कैंडिडेट चुनने में असफल रहा था। ऐसे में विपक्ष के नेता कांग्रेस में सेंध लगाने की कोशिश में जुट गए। उन्होंने इसके लिए राष्ट्रपति का कार्यकाल खत्म कर रहे ज्ञानी जैल सिंह को चुना।

इंदिरा और राजीव गांधी के साथ आर वेंकटरमन

इंदिरा और राजीव गांधी के साथ आर वेंकटरमन
तो हो जाता कांग्रेस में विद्रोह
कांग्रेस के भी कुछ असंतुष्टों ने इस माहौल को भांप लिया। लोकसभा के करीब 40 सांसद और राज्यों के करीब दर्जन भर नेता राजधानी में जुट गए। इसके कुछ दिन बाद ही राष्ट्रपति से बड़े नेताओं के मिलने का सिलसिला शुरू हो गया। वे सभी ज्ञानी जैल सिंह को इन चुनावों में खड़े होने के लिए आग्रह कर रहे थे। हरियाणा के दिग्गज नेता लोकदल (बी) के नेता देवी लाल ने जैल सिंह का समर्थन कर दिया।

जैल सिंह ने हामी नहीं भरी
लेकिन जैल सिंह ने तमाम नेताओं को यह कहते हुए कि इन प्रस्तावों को विचार करने के लिए उन्हें कुछ समय चाहिए। ऐसा कहकर जैल सिंह कलकत्ता चले गए। हालांकि, जैल सिंह ने मन ही मन फैसला कर लिया था और उन्होंने दोबारा राष्ट्रपति चुनाव में खड़ा होने का फैसला नहीं किया। ऐसे में कांग्रेस में एक और बागवत होते-होते रह गई।

आराम से जीत गए वेंकटरमन
जैल सिंह के इनकार के बाद वेंटरमन (1987-92) का राष्ट्रपति चुना जाना महज औपचारिकता रह गई थी। दरअसल, वामपंथी दलों ने वेंकटरमन के सामने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज रहे वीआर कृष्ण अय्यर को अपना उम्मीदवार बनया था। अय्यर तो वेंकटरमन को टक्कर भी नहीं दे सके। अय्यर को जहां महज 2 लाख 81 हजार 550 वोट मिले वहीं, वेंकटरमन को 7 लाख 40 हजार 148 वोट मिले। 25 जुलाई 1987 को वेंटकरमन देश के आठवें राष्ट्रपति बने थे। उनका कार्यकाल 25 जुलाई 1992 तक रहा।

ज्ञानी जैल सिंह के साथ आर वेंकटरमन

ज्ञानी जैल सिंह के साथ आर वेंकटरमन
जैल सिंह के कार्यकाल (1982-87) के दौरान उपराष्ट्रपति रहे वेंकटरमन देश के जाने-माने वकील रहे थे। 4 दिसंबर 1910 को तमिलनाडु के तंजौर जिला के पट्टुकोट्य में जन्मे वेंकटरण शुरू से ही कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहे थे। आर वेंकटरमन न केवल देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचे बल्कि आजादी की लड़ाई में भी हिस्सा लिया था। वे 1942 भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के आह्वान पर शामिल हुए थे। इस दौरान इन्हें दो साल तक जेल में भी बिताना पड़ा था। उन्होंने देश की शीर्ष अदालत में वकालत भी किया।

राजकपूर के लिए तोड़ दिया प्रोटोकॉल
वेंकटरमन को लेकर एक किस्सा बड़ा मशहूर है। दरअसल, बॉलीवुड के शोमैन कहे जाने वाले राजकपूर को 1988 में देश के सबसे बड़े फिल्म पुरस्कार दादा साहब फाल्के दिया जाना था। उस दौरान राजकपूर की तबीयत ठीक नहीं थी। लेकिन बावजूद इसके वह पुरस्कार लेने दिल्ली आए थे। जब राजकपूर पुरस्कार लेने पहुंचे तो वह ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ चेयर पर बैठे थे। जब उनका नाम पुरस्कार के लिए घोषित हुआ तो वह कुर्सी से उठने की कोशिश करने लगे लेकिन वह उठ नहीं पा रहे थे। इस बात को वेंकटरमन समझ गए और खुद चलकर उन्हें पुरस्कार देने पहुंच गए।

राष्ट्रपति भवन में आर वेंकटरमन

राष्ट्रपति भवन में आर वेंकटरमन
बेदाग इमेज के लिए मशहूर
वेंकटरमन अपने बेदाग इमेज के लिए मशहूर रहे। चाहे उपराष्ट्रपति का कार्यकाल रहा हो या फिर राष्ट्रपति का उन्होंने संविधान के अनुसार चीजों का संचालन किया। उन्होंने तमाम चुनौतियों का सामना किया। अपने अनुभवों को लेकर उन्होंने किताब भी लिखी है, जिसमें उनके जीवनकाल की घटनाओं का वर्णन है।


4 पीएम के साथ कामर वेंकटरमन ने तो अपने कार्यकाल के दौरान तीन प्रधानमंत्रियों को शपथ दिलवाई। उन्होंने 1988 में वीपी सिंह को पीएम पद की शपथ दिलवाई। लेकिन 1989 में वीपी सिंह की सरकार गिर गई। इसके बाद वेंकटरमन ने चंद्रशेखर को पीएम पद की शपथ दिलवाई। इसके बाद देश में मध्यावधि चुनाव हो गए। इसके बाद पीवी नरसिम्हा राव को पीएम बनाया गया। एक वक्त ऐसा लगा था कि वेंकटरमन को दूसरा कार्यकाल भी मिल सकता है लेकिन उनके डेप्युटी रहे शंकर दयाल शर्मा को देश नौंवा राष्ट्रपति चुना गया।

देश में मिसाइल कार्यक्रम के बुनियाद के जनक थे वेंकटरमन
जब भी देश में मिसाइल मैन का नाम आता है तो सबकी जुंबा पर डॉ अब्दुल कलाम का नाम आता है। ये सही भी है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि आर वेंकटरमन वह शख्स रहे जिन्होंने देश में मिसाइल कार्यक्रम की बुनियाद रखी। साल 1979 में डीआरडीओ के चेयरमैन राजा रमन्ना ने देश में एक ऐसी एकीकृत मिसाइल विकास कार्यक्रम (आईजीएमडीपी) पर काम करने का सुझाव दिया जिसमें मिसाइल का निर्माण देश में किया जा सके। इसके बाद साल 1982 में इस परियोजना को पंख लगे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं और रक्षा मंत्री थे आर.वेंकटरमन ने ऐसे कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के पक्ष में थे।

कलाम का कर दिया था ट्रांसफर
साल 1982 में केंद्र सरकार ने एक मिसाइल स्टडी टीम का गठन किया। उस टीम की कमान एपीजे अब्दुल कलाम को सौंपी गई। उनको रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला का निदेशक नियुक्त किया गया। डॉ. कलाम डीआरडीओ में आने से पहले अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर काम कर रहे थे। उनको डिफेंस प्रोग्राम में ट्रांसफर आर वेंकटरमन ने ही किया था। कलाम की टीम ने 1982 में आयोजित एक उच्च स्तरीय मीटिंग में मिसाइल सिस्टम को विकसित करने का का पूरा लेआउट रखा। इस बैठक में इंदिरा गांधी, रक्षा मंत्री वेंकटरमन, तीनों सेनाओं के अध्यक्ष, पीएमओ के प्रधान सचिव, एक कैबिनेट सचिव, डीआरडीओ के अध्यक्ष वी.एस.अरुणाचलम और अब्दुल कलाम मौजूद थे। कलाम ने तो पहले पांच मिसाइलों को अलग-अलग चरणों में विकसित करने का सुझाव रखा था लेकिन वेंकटरमन ने कहा कि इन सभी मिसाइल प्रोग्राम पर एक साथ ही काम करने पर जोर दिया। इंदिरा गांधी ने प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। आज देश मिसाइल निर्माण के क्षेत्र में दुनिया के कुछ गिने-चुने देशों की श्रेणी में आता है। 27 जनवरी, 2009 को वेंकटरमन का 98 साल की उम्र में निधन हो गया

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