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चुनाव 2024 : जनता को सांप्रदायिकता की आग में  झोंककर वोट की रोटी सेंकने का मौसम

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दिव्या गुप्ता

      रामनवमी के मौके पर देशभर के कई राज्यों में सांप्रदायिक तनाव की ख़बरें सामने आयीं जिसमें गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और बिहार शामिल हैं। इनमें से ज़्यादातर जगहों पर संघ के ही अनुषंगी संगठनों द्वारा रामनवमी पर रैली का आयोजन किया जा रहा था।

        कई जगहों पर जान बूझकर मस्जिदों व संवेदनशील जगहों से जुलूस निकालने पर ज़ोर दिया गया। ऐसे धार्मिक जुलूसों को साम्प्रदायिक रंग देने के लिए जुलूस के वक्त अल्पसंख्यक समुदाय विशेष के संबंध में आपत्तिजनक नारे लगाए जाते हैं। ऐसे भड़काऊ गाने और नारों के साथ जुलूस निकालने का एक विशेष मकसद होता है।

        सोची समझी राजनीति के तहत ऐसे तमाम त्यौहार या धार्मिक दिन के मौके को एक साम्प्रदायिक रंग देने का काम किया जा रहा है। सड़कों पर त्रिशूल व तलवारें लहराने और डीजे लेकर आपत्तिजनक गाने और नारों के ज़रिए हिन्दू-मुस्लिम के बीच तनाव पैदा करने की कोशिश की जाती है। बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद से लेकर के तमाम संघ के संगठन इस काम को बड़े ही सुनियोजित ढंग से अंजाम देने का काम कर रहे हैं।

      इस बार भी ठीक लोकसभा चुनावों से पहले रामनवमी जुलूस के मौके पर बजरंग दल व संघ के अन्य संगठनों द्वारा ऐसे संवेदनशील जगहों से जुलूस आपत्तिजनक नारों और गानों के साथ निकाले गये। इसकी एक दूसरी प्रतिक्रिया मुस्लिम बहुल इलाके में जुलूस पर पथराव के रूप में सामने आती है।

        दोनों ही तरफ की कट्टरपंथी ताकतें ऐसे मौकों पर तनाव को बढ़ाने का काम करती हैं । ऐसे में हमें समझने की ज़रूरत है कि आख़िर क्यों चुनावों से ठीक पहले ऐसा माहौल बनाया जाता है और ऐसा करने से किसको फ़ायदा हो रहा है? 

        देश में दो समुदायों के बीच दंगे-फ़साद और तनाव की स्थिति  तभी ही क्यों हो रही हैं जब देश आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक संकट से जूझ रहा है। जब  बेरोज़गारी और महँगाई अपने चरम पर है, जब अदानी का घोटाला पकड़ा गया है, जब मोदी सरकार हर क्षेत्र में फे़ल दिख रही है?

यह मोदी सरकार और संघ परिवार की साज़िश है जिसके तहत जनता को धर्म, जाति के नाम पर बाँटा जा रहा है ताकि लोग असली मुद्दों पर संघर्ष न करें, एकजुट न हो सकें। उनके सामने एक क्षद्म दुश्मन खड़ा किया जा रहा है ताकि जनता अपने असली दुश्मन को न पहचाने। और इन सबको और हवा देने का काम गोदी मीडिया कर रही है।

      मीडिया स्वयं सबसे ख़तरनाक दंगाई बन चुकी है जो झूठ और अफ़वाहों की ऐसी बारिश कर रही है कि हमें असली सवाल पर सोचने का वक्‍़त ही नहीं मिल सके। पूरी घटना को ऐसे पेश किया जाता है जिससे कि ऐसा प्रतीत हो कि दोनों संप्रदाय के आम लोग ऐसे धार्मिक उन्मादों को बढ़ावा दे रहे हैं, जबकि ऐसे उन्माद को खड़ा करने का काम संघ के फ़ासीवादी संगठनों और उसकी पूरक मुस्लिम कट्टरपंथी ताकतों द्वारा किया जाता है।

       मुफ़लिसी, डर और असुरक्षा-अनिश्चितता से हम इस क़दर थके, हताश और नाराज़ होते हैं कि साम्‍प्रदायिक ताक़तों द्वारा खड़ी की गयी एक नकली दुश्‍मन की छवि के प्रति हमारी अन्‍धी प्रतिक्रिया हमें एक-दूसरे का दुश्‍मन बना देती है।

       हमारे हाथों में पूंजीपतियों की सेवा में लगी यह मोदी सरकार और संघ परिवार ही त्रिशूलें और तलवारें पकड़ा देते है और हमें दंगों में झोंक देते है। 

ऐसे में एक बड़ा सवाल यह बनता है कि इन दंगों में कभी कोई ओवैसी, अमृतपाल, अमित शाह, योगी जैसे लोग क्यों नहीं मरते?

      ये हुक्‍मरान ख़ुद कभी धर्म के नाम पर एक-दूसरे का सिर क्यों नहीं फोड़ते और न ही अपने बच्‍चों के हाथ में दंगों के हथियार पकड़वाते हैं। दंगों में हमेशा आम ग़रीब मज़दूरों, मेहनतक़श लोगों, निम्‍नमध्‍यवर्ग के कामकाज़ी लोगों के घर क्‍यों जलते हैं? उनकी जानें ही क्‍यों जाती हैं?

      ज़रा सोचिये, “धर्मध्‍वजारक्षा” के लिए सड़कों पर त्रिशूल-तलवार लहराने और अपने ही भाइयों-बहनों का क़त्‍ल करने का काम कभी संघ परिवार व भाजपा तथा एमिम के नेताओं की औलादों को क्‍यों नहीं सौंपा जाता? यह काम हमेशा हम आम मेहनतक़श लोगों के बच्‍चों को क्‍यों सौंपा जाता है कि वे किसी अमूर्त “धर्मध्‍वजारक्षा” के नाम पर सड़कों पर भटकें?

असल में यह भाजपा और संघ की चालें हैं ताकि इन्हीं फर्जी मुद्दों पर लोग आपस में लड़ जाएं, एक दूसरे के साथ मार काट करें और सत्ता में बैठे हुक्मरानों पर सवाल न उठ सके कि आख़िर क्यों दवाई, सिलेंडर, पेट्रोल के दाम बढ़ते जा रहे हैं, आख़िर क्यों जनता पर करों का बोझ लादा जा रहा है.

     आख़िर क्यों अदानी घोटाले में कोई जांँच नहीं हो रही, आख़िर क्यों गरीबों – मजदूरों के अधिकार छीने जा रहे हैं? 

        इनका असली मक़सद है 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले जनता को बांँटों और फिर राज करो ! हमें इनकी साजिशों को नाकाम करना होगा। हमें इन फ़ासीवादी कट्टरपंथी ताकतों की असलियत को समझना होगा। आज इनकी असलियत का पर्दाफाश करते हुए हमें अपने असली मुद्दों पर एकजुट होना होगा।

       हमें समझना होगा कि धर्म में हम भले ही अलग रहे लेकिन राजनीति पर एक हो सकते हैं और इसके लिए धर्म को राजनीति और सामाजिक जीवन से बिल्कुल अलग कर देना होगा तभी ही हम इन फ़ासीवादी सरकार की साजिशों को नाकाम कर सकते हैं।

      इसके लिए यह मांँग उठाना ज़रूरी है कि सरकार तत्‍काल सच्‍चे सेक्‍युलर राज्‍य को सुनिश्चित करने हेतु एक विशेष कानून बनाये और संवैधानिक संशोधन करके धर्म को राजनीति व सामाजिक जीवन से पूर्णत: अलग करे।

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