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हर साल 11 मिलियन की काल बनती है सेप्सिस; जानिए लक्षण, कारण निदान 

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      डॉ. प्रिया 

अनियमित खानपान और एंटीबायोटिक का अंधाधुंध इस्तेमाल शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमज़ोर बना देता है, जिसके चलते शरीर में सेप्सिस जैसी समस्याओं का जोखिम बढ़ने लगता है। 

    यह समस्या इतनी खतरनाक है कि इससे शरीर में टिशू डैमेज और ऑर्गन फेलियर तक हो सकता है। कई प्रकार के संक्रमण इस समस्या को ट्रिगर करते हैं और स्वास्थ्य के प्रति बरती गई लापरवाही इस समस्या के जोखिम को बढ़ा देती है।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजे़शन के अनुसार हर साल 49 मीलियन लोग सेप्सिस के शिकार होते हैं और 11 मीलियन लोग इस बीमारी के कारण अपनी जान गवां देते हैं। 

     सेप्सिस के 20 मिलियन मामले 5 साल से कम उम्र के बच्चों में देखे जाते हैं। सही देखभाल न मिलने पर प्रेगनेंसी के दौरान और एबॉर्शन के बाद भी इस समस्या का जोखिम बढ़ जाता है।

*सेप्सिस किसे कहते हैं?*

     सेप्सिस एक ऐसी जानलेवा बीमारी है, जिसमे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली संक्रमण का सामना न कर पाने के कारण ऑर्गन डिस्फंक्शन का शिकार हो जाती है। इसके चलते शरीर में इंफेक्शन का खतरा बना रहता है, जो ब्लड, फेफड़ों और यूरिक एसिड में पाया जाता है। इसमें जब किसी मरीज़ का ब्लड प्रेशर लो होने लगे, तो ये सेप्सिस के बढ़ने का मुख्य संकेत होता है। 

    इस स्थिति को शॉक भी कहा जाता है। इससे पेरालीसिस और और मृत्यु का खतरा बना रहता है।

*सेप्सिस के संकेत :*

~लो ब्लड प्रेशर सेप्सिस की समस्या का मुख्य संकेत है। इसे शॉक भी कहा जाता है।

~स्किन पर छोटे और लाल दाने नज़र आने लगते है। इससे संक्रमण त्वचा पर बढ़ने लगता है।

~इसके चलते शरीर का तापमान बढ़ जाता है। तेज़ बुखार का सामना करना पड़ता है या शरीर ठंडा हो जाता है।

हृदय गति तेज़ हो जाती है। धड़कन तेज़ होने से बेचैनी का सामना करना पड़ता है। 

~इसके अलावा सांस लेने में तकलीफ होने लगती है।

~सेप्सिस के चलते ब्लड शुगर लेवल तेज़ी से बढ़ने लगता है। इससे व्यक्ति भ्रम की स्थिति में नज़र आता है।

~कपकपी महसूस होना और चक्कर आने लगते है।

~ इसके अलावा सिरदर्द का सामना करना पड़ता है।

 *कारणों की पड़ताल :*

1. कमज़ोर रोग प्रतिरोधक क्षमता :

   चाहे यूरिन इंफेक्शन हो, निमोनिया हो या कोई घाव, शरीर में कमज़ोर इम्यून सिस्टम सेप्सिस की समस्या को बढ़ा देता है। इसके चलते शरीर में संक्रमण का प्रभाव बढ़ने लगता है और ऑर्गन डिसफंक्शनिंग का कारण बनने लगता है।

*2. इनवेस्टीगेशन समय पर न होना :*

    किसी भी बीमारी का इलाज और जांच समय पर न होने से समस्या शरीर में तेज़ी से बढ़ने लगती है। इसके चलते शारीरिक अंगों में ऐंठन और ब्लड में इंफेक्शन का खतरा बना रहता है। इसके अलावा अंग विफलता और ऊतक क्षति यानि टिशू डैमेज का सामना करना पड़ता है।

*3. ब्लड पॉइज़निंग :*

ब्लड पॉइज़निंग सेप्सिस का कारण बनने लगती है। ब्लड में बैक्टीरिया का प्रभाव बढ़ना बैक्टीरिमिया या सेप्टीसीमिया कहलाता है। ये समस्या बैक्टीरियल, फंगल और वायरल हो सकती है। इससे लंग्स, पेट और यूरीनरी ट्रेक प्रभावित होता है।

*4. निर्जलीकरण का बढ़ना :*

पानी की कमी के चलते शरीर में विषैले पदार्थों का स्तर बढ़ जाता है। शरीर में पानी की उच्च मात्रा से किडनी फेलियर के खतरे से बचा जा सकता है। इसके अलावा रेस्पीरेटरी इंफेक्शन भी कम होने लगता है। शरीर में पानी की कम मात्रा कमज़ोरी और थकान को बढ़ा देती है।

*सेप्सिस दूर करने के उपाय :*

1. समय पर जांच करवाएं :

बीमारी के गंभीर रूप धारण करने से पहले उसकी जांच होना आवश्यक है। डॉ अवि कुमार के अनुसार समय पर किसी समस्या की इनवेस्टीगेशन न होने उसके क्रॉनिक होने के जोखिम को बढ़ा सकती है। ऐसे में डॉक्टर के निर्देशानुसार एक्स रे, सीटी स्कैन और यूरिन टेस्ट अवश्य करवाएं

*2. हाथों की हाइजीन का ख्याल रखें :*

स्वच्छता को बनाए रखने के लिए हाथों को साफ सुथरा रखें और हैंड सेनिटाइज़र का इस्तेमाल करें। इसके अलावा संक्रमित लोगों के संपर्क में आने से बचें। इससे बैक्टीरियल इंफेक्शन से बचने में मदद मिलती है।

*3. पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं :*

शरीर को डिऑक्स करने के लिए भरपूर मात्रा में पानी पींए। इसके अलावा हेल्दी पेय पदार्थों को भी आहार में शामिल करें। इससे शरीर में एनर्जी का स्तर बढ़ना है और ऑक्सीजन का प्रवाह उचित बना रहता है।

   *4. हमारी सेवा लें :*

हमारी सेवा आपको निःशुल्क सुलभ होगी. केवल होम सर्विस स-शुल्क है. ट्रीटमेंट का पैटर्न क्या होगा, यह हमारा टॉपिक है. आपको एक सप्ताह मे ठीक कर दिया जाएगा.

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