राकेश श्रीवास्तव
भारत मे लोकतंत्र पर चलते हुए हम अपने स्वातंत्रय का 75वां वर्ष मना रहे हैं।इस लंबे सफर में हमने अनेकों दौर देखे हैं।हमारे संविधान निर्माताओं ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की व्यवस्था की है जिसके अनुसार देश के प्रत्येक वयस्क को बिना किसी भेदभाव के वोट डालने का अधिकार है और प्रत्येक व्यक्ति के वोट की कीमत बराबर है।विश्व के अनेक देशों में वहां की जनता लोकतंत्र की लड़ाई हार चुकी है पर हम मजबूती से उसी मार्ग पर चल रहे हैं।हां,इस यात्रा में अनेक बार
लोकतंत्र की आंख मिचौली हुई है,कभी प्रत्यक्ष कभी परोक्ष रूप से परंतु जनता ने लोकतंत्र का गला घोटने वाली किसी भी ताकत को वक्त आने पर मुंह तोड़ जवाब दिया है।इसकी रक्षा के लिए संविधान मे अनेक प्रावधान किए गए हैं।यहां तक कि आपातकाल लगने पर इसकी शैशव मृत्यु की भविष्यवाणी करने वालों को भी घुटनों के बल आना पड़ा और समय आने पर जनता उन्हें सबक सिखाने सिखाने से नही चूकी।
हमारी लोकतंत्रिक व्यवस्था को चुनौती देते हुए अपराध और पैसे का संगम बढ़ता जा रहा है।चुनावी व्यवस्था में इसको न रोकने मे सभी दलों में जबरदस्त एकता है।राजनीति में धर्म का दखल बढ़ता जा रहा है।सत्ता प्रश्नों का स्वागत नहीं करती है और विभिन्न तरीकों से उनको दबाने का प्रयास करती है।पर यह भारत के लोगों की और संविधान की अंतर्निहित शक्ति है कि लोकतंत्र को दबाने के कुत्सित प्रयासों के विरुद्ध हमारी चेतना जागृत होने लगती है।लोकतंत्र की आंख मिचौली मे अभी पिछले कुछ समय मे हुई तीन महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख आवश्यक है।
1)सर्वप्रथम सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रमन्ना एवं अन्य न्यायाधीशों के निर्णय जिसमें विरोध के अधिकारों को पुनः सुदृढ़ किया गया है।माननीय न्यायालय ने कहा है कि सरकार के विरोध को राष्ट्र का विरोध नहीं माना जा सकता है।
पिछले कुछ समय से जिस तरह से विभिन्न उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय सरकार को स्पष्ट निर्देश दे रहे हैं वह लोकतंत्र को निसंदेह मजबूती प्रदान कर रहा है
2)दूसरा महत्वपूर्ण स्तंभ है दुनिया के आंदोलनों मे अमिट इतिहास बना चुका किसान आंदोलन।मुजफ्फरनगर पंचायत मील का पत्थर साबित होगी।लाखों लोगों की भीड़ द्वारा लोकतंत्र की हुंकार मन मस्तिष्क से विस्मृत नही हो सकती है। नौ महीने से भी ज्यादा समय से चल रहे आंदोलन ने नये प्राणों का संचार किया है।वहां सभी जात व धर्मों की दीवार गिरा करें हिंदुस्तान का किसान खड़ा है।छुटपुट हिंसा करा कर किसान आंदोलन को भी हिंसा के लिए उकसाया गया।पर यह अहिंसात्मक संघर्ष के प्रणेता महात्मा गांधी के मार्ग पर ही डटा रहा।
3)तीसरी महत्वपूर्ण घटना है छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पिता नंदकिशोर बघेल की गिरफ्तारी।आज जबकि राजनीतिक शुचिता केवल सजाने की वस्तु हो गई है उस समय किसी मुख्यमंत्री के पिता का उसके उसी के गृह राज्य मे गिरफ्तार हो जाना परी कथा जैसा लगता है।इस समय हमारे जनप्रतिनिधियों मे बाहुबल और धनबल का ही बोलबाला है।एक छोटे से भी अपराधी को बचाने के लिए नेतागण अपना पूरा दम खम लगा देते हैं। यहां तक कि बलात्कारियों के समर्थन मे भी मेरा – तेरा होने लगता है।ऐसे मे मुख्यमंत्री के पिता की उन्हीं के राज्य मे गिरफ्तारी लोकतंत्र और कानून के शासन मे मे हमारी आस्था को मजबूत करती है।
यह घटनायें भारतवर्ष के लोकतंत्र की मजबूती की कहानी की मजबूत कड़ी हैं।
अब्राहम लिंकन ने कहा था “आप कुछ लोगों को हर समय और सभी लोगों को कुछ समय के लिए बेवकूफ बना सकते हैं, लेकिन आप सभी लोगों को हर समय बेवकूफ नहीं बना सकते।”
राकेश श्रीवास्तव