अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

फिलिस्तीनी कवि महमूद दरवेश की पांच कविताएं

Share

1. आदमी के लिए

उन्होंने उसका मुंह कपड़ा ठूंसकर बंद कर दिया
उसके हाथ चट्टान से बांध दिये
और कहा – ‘हत्यारा’
उन्होंने उसका खाना, उसके कपड़े और झंड़े छीन लिये
उसे मुज़रिम की काल कोठरी में डाल दिया
और कहा – ‘चोर’
उन्होंने हर एक बंदरगाह से उसे खदेड़ दिया
उसकी जवान महबूबा छीन ली
फिर कहा – ‘रिफ्यूजी’

हवालात हमेशा नहीं बने रहेंगें
न ही जंजीरों की कड़ियां

नीरो मर गया, रोम है
वह अपनी उदास आंखों से लड़ रही है
और गेहूं की पकी बालियों से गिरे दानों से
पूरी घाटी भर जायेगी.

2. पासपोर्ट

वे मुझे पहचान न पाये
पासपोर्ट के काले धब्बों ने
मेरी तस्वीर की रंगत को उड़ा दिया था
उन्होंने मेरे जख्मों को उन सैलानियों के सामने नुमाइश की
जिन्हें तस्वीरें जमा करने का शौक था

उन्होंने भी मुझे नहीं पहचाना
मेरे हाथों से धूप को सरकने न दें
चूँकि इन किरणों में दरख्त मुझे पहचानते हैं
बारिश के सभी गीत मुझे पहचानते हैं

मुझे मटमैले चांद की तरह मत छोड़ो.
मेरे हाथ के पीछे-पीछे सभी परिंदे
सुदूर स्थित हवाई अड्डे की बाड़ तक आते हैं
आते हैं गेहूं के सारे खेत
सभी कैदखाने
सभी सफ़ेद कब्रें
सभी सरहदें
सभी हिलते रुमाल
सभी काली आंखें
सभी आंखें मेरे साथ थीं
लेकिन उन्होंने पासपोर्ट से उन्हें निकाल दिया
नाम और पहचान से मुझे उस मुल्क में महरूम कर दिया
जिसकी देखभाल मैंने दोनों हाथों से की थी

आज उस धीरज भरे आदमी की आवाज़ आसमान में गूंजती रही
सुनो पैगम्बर हुज़ूर !
दुबारा मेरी जांच मत करो
पेड़ों से उनके नाम मत पूछो
घाटियों से उनकी मां के बारे में मत पूछो

मेरे चेहरे से निकल रही है तलवार की चमक
मेरी गदोलियों से फूट रहा है नदियों का सोता
लोगों के दिलों में है मेरी राष्ट्रीयता
मेरा पासपोर्ट तुम ले जाओ.

3. भजन – 1

जब मेरी कविताएं मिट्टी से बनी थी
मैं अनाज का दोस्त था

जब मेरी कविताएं शहद हो गयीं
मक्खियां मेरे होठों पर बैठने लगीं

4. भजन – 2

मुझे लगता है कि मैं सूख गया हूं
जैसे किताबों से बाहर उगते हैं दरख्त
हवा एक महज़ गुजरती हुई शै है
मुझे लड़ना होगा या नहीं
सवाल यह नहीं है
जरूरी है कि गला ताकतवर हो
काम करूंगा या ना करूं
जरूरी है सप्ताह में आठ दिन आराम
फिलिस्तीनी समय
मेरा मुल्क शोकगीतों और कत्ले आम में बदल रहा है
मुझे बताओ किस चीज़ से मारा गया था
क्या यह चाक़ू था या झूठ
मेरे मुल्क शोकगीतों और कत्लेआम में बदल रहा है
एक हवाई अड्डे से दूसरे हवाई अड्डे तक
मैं तुम्हें छिपाकर क्यों ले जाऊं
अफ़ीम की तरह
अदृश्य स्याही की तरह
रेडियो ट्रांसमीटर की तरह

मैं तुम्हारा शक्लो सूरत बनाना चाहता हूं
मगर तुम फाइलों में छितरे हो और चौंकाते हो
मैं तुम्हारा नाक़ नक्श बनाना चाहता हूं
मगर तुम बम के टुकड़ों और परिंदों के परों पर उड़ते हो
मैं तुम्हारा शक्लो सूरत बनाना चाहता हूं
लेकिन ऊपरवाला मेरा हाथ छीन लेता है
मैं तुम्हारा नाक़-नक्श बनाना चाहता हूं
मगर तुम चाक़ू और हवा के बीच फंसे हुए हो
तुममें अपना शक्लो-सूरत खोजने के लिए
अमूर्त होने का कसूरवार बनने के लिए
नकली दस्तावेज़ और फोटो बनाने के लिए
मैं तुम्हारा चेहरा बनाना चाहता हूं
मगर तुम चाक़ू और हवा के बीच फंसे हुए हो

मेरे मुल्क शोकगीतों और कत्लेआम में बदल रहा है
मेरा रोमांच छीनकर और मुझे पत्थर की तरह छोड़कर
तुम कैसे हो सकते हो मेरा सपना
शायद तुम सपने से भी ज्यादा मीठे हो
शायद उससे भी कुछ ज्यादा मीठे

अरब की तारीख़ में एक भी ऐसा शख्स नहीं है
जिससे मैंने तुम्हारी चोर खिड़की से घुस आने के लिए
मदद न मांगी हो
सभी कूट नाम
वातानुकूलित भर्ती दफ्तरों में रखे जाते हैं
क्या आपको मेरा नाम मंजूर है
मेरा सिर्फ एक ही कूट नाम है
महमूद दरवेश
पुलिस और फिलिस्तीनी पादरी की सज़ा से
मेरे असली नाम की चमड़ी
पीट-पीट कर उधेड़ दी गयी है
मेरा मुल्क शोकगीतों और कत्लेआम में बदल रहा है

मुझे बताओ किस चीज़ से मारा गया
क्या यह चाक़ू था या झूठ ?

5. ज़मीन की कविता

एक पिछड़े गांव में एक सुस्त शाम को
अधखुली आंखों में
उतर आते हैं तीस बरस
और पांच जंग
मैं हलफ़ लेकर कहता हूं कि मेरे अनाज की बाली
आनेवाला समय रखेगा
गायक आग
और कुछ अजनबियों के बारे में गुनगुनाएगा
और शाम फ़कत एक दूसरी शाम जैसी ही होगी
और गायक गुनगुनाएगा

उन्होंने उससे से पूछा
क्यों गाते हो तुम
वह देता है जवाब
मैं इसलिए गाता हूं

उन्होंने उसकी छाती की तलाशी ली
पर वहां मिला फ़कत उसका दिल
उन्होंने उसके दिल की तलाशी ली
लेकिन वहां मिले सिर्फ़ उसके लोग
उन्होंने उसकी आवाज़ की तलाशी ली
लेकिन वहां मिला केवल उसका दुःख
उन्होंने उसके दुःख की तलाशी ली
लेकिन वहां मिला उसका कैदखाना
उन्होंने उसके कैदखाने की तलाशी ली
लेकिन वहां वे सिर्फ़ खुद थे
जंजीरों में बंधे हुए.

  • अनुवाद : विनोद दास
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें