ऋतु तिवारी via Nidhi Nitya
ये टेकचंद हैं, साल 1961 में जिस भारतीय टीम ने हालैंड को हराकर हॉकी मैच में इतिहास रचा था, टेकचंद उस टीम के अहम खिलाड़ी थे।
आज इनकी स्थिति बेहद दयनीय है। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का शिष्य और मोहरसिंह जैसे खिलाडियों का गुरू आज एक टूटी-फूटी झोपड़ी में रहने को अभिशप्त है।
जनप्रतिनिधि से लेकर सरकार तक, जिन्हें इनकी कद्र करनी चाहिए, कहीं दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं।
हॉकी देश का राष्ट्रीय खेल भी है। शायद इसीलिए सरकार 600 रूपये प्रतिमाह पेंशन देकर इनके ऊपर अहसान कर रही है।
मध्यप्रदेश के सागर में रहने वाले टेकचंद के पत्नी व बच्चे नहीं हैं, इसलिए भोजन के लिए अपने भाइयों के परिवार पर आश्रित इस अभागे को कभी-कभी भूखे भी सोना पड़ जाता है।
ये उसी देश में रहते हैं, जहां एक बार विधायक-सांसद बन जाने के बाद कई पुश्तों के लिए खजाना और जीवन भर के लिए पेंशन-भत्ता खैरात में मिलता है।
गौरतलब है कि पिछले पखवाड़े ही पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने ऐसे ही एक पूर्व ओलंपिक हॉकी खिलाड़ी परमजीत सिंह को जो सरकारी सहायता के अभाव में हमाली करने को मजबूर थे को पंजाब सरकार के खेल विभाग में स्थायी नौकरी उपलब्ध कराई है.
प्रश्न यह है कि क्या टेकचंद की बदहाली मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का ध्यान आकर्षित कर पायेगी ?