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आदिवासियों पर पुलिसिया हमलों के विरोध में फोरम

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बड़े पैमाने पर पुलिसिया कैम्प बनाना, जनता पर दमन करना, फर्जी एनकाउंटर में निर्दोष लोगों की हत्या करना, गरीब आदिवासियों को आदिवासियों के ही खिलाफ भड़काकर उसके हाथों में रायफल थमा कर आपस में लड़ाना और जनता की न्यायोचित आन्दोलन को कुचलना ही आज भारत सरकार की नीति बन गई है ताकि अंबानी-अदानी जैसे कॉरपोरेट घरानों की सम्पत्तियों में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोतरी होती रहे और सारा देश इन गिने चुने कॉरपोरेट घरानों का गुलाम बन जाये.

अभी ‘बस्तर फाइटर्स’ के नाम से गठित एक पुलिसिया गैंग का निर्माण किया जा रहा है, यह ठीक सलवा जुडूम और डीआरजी जैसे प्रतिक्रियावादी तत्वों की जमात की तरह है, जिसके माध्यम से भारत सरकार अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे आन्दोलनकारियों को कुचलने के लिए तैयार कर रही है क्योंकि बदनाम सलवाजुड़ुम के हत्यारों को माओवादियों के सहयोग से जनता ने नकार दिया तो वही डीआरजी भी आखिरी सांसें गिन रहा है. तो अब नये सिरे से भारत सरकार ने ‘बस्तर फाइटर’ नाम से एक नये गैंग का सुत्रपात किया है.

‘बस्तर फाइटर्स’ जैसे गैंग का गठन

दैनिक भास्कर के खबर के अनुसार अपने अधिकारों और सम्मान के लिए माओवादियों के सहयोग से लड़ रहे आदिवासी समुदाय को खत्म करने के लिए छत्तीसगढ़ के जगदलपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा, कोंडागांव समेत सात जिलों में तीन-तीन सौ की संख्या में ऐसे अपराधिक तत्वों को ‘बस्तर फाइटर’ बता कर आदिवासियों पर हमले तेज करने की कवायद नये सिरे से की जा रही है.

बस्तर फाइटर्स भर्ती प्रक्रिया की शुरुआत हो गई है. खबरों के अनुसार बस्तर जिले में बस्तर फाइटर्स की भर्ती की विशेष बात यह है कि इसमें संभाग के हर जिले में स्थानीय युवाओं को ही मौका दिया जा रहा है. ऐसे में जिन युवाओं ने नक्सलवाद का दंश झेला है और नक्सलवाद के दर्द को करीब से देखा है, वे ही युवा अब नक्सलियों के खिलाफ हथियार उठाएंगे.

अफसरों का कहना है कि चूंकि इन भर्तियों में स्थानीय युवा आ रहे हैं ऐसे में अब बस्तर में नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई ज्यादा आसान होगी. यानी बड़ी संख्या में आदिवासियों पर हमले किये जायेंगे क्योंकि ये स्थानीय ‘फाइटर’ को स्थानीय बोली-भाषा के साथ-साथ भौगोलिक परिस्थितियों की जानकारी तो है ही साथ ही साथ युवाओं को यह भी पता है कि कौन सा इलाका नक्सलियों का है और किस इलाके में कैसे काम करना है, इसका फायदा फील्ड में मिलेगा ही.

खबरों के अनुसार, बस्तर फाइटर्स भर्ती के लिए गांवों के बजाय शहरी इलाकों से ज्यादा आवेदन आए हैं, खासतौर पर जो जिले हाईवे से सटे हैं, वहां से सबसे ज्यादा आवेदन पहुंचे हैं. बस्तर फाइटर्स में भर्ती होने के लिए सबसे ज्यादा आवेदन कांकेर जिले से पहुंचे हैं. इसके अलावा दूसरे नंबर पर कोंडागांव जिला है, धुर नक्सल प्रभावित इलाकों से भी हजारों युवाओं ने आवेदन दिए हैं.

दरअसल बस्तर फाइटर में शहरों के गुमराह, बेरोजगार, जड़ से उखड़े हुए अपराधिक तत्वों की बड़ी जमात को इकट्ठा कर आदिवासियों पर हमले के लिए तैयार किया जा रहा है. ऐसी ही कोशिश सलवाजुड़ुम और डीआरजी जैसे हत्यारी गिरोह को खड़ाकर भारत सरकार ने पहल की थी, जिसे संघर्षरत आदिवासियों और देश की जनता ने खत्म कर दिया था, अब एक बार फिर वही कोशिश की जा रही है.

आदिवासियों पर ड्रोन और रसायनिक बमों से हमला

‘बस्तर फाइटर्स’ के नाम से गठित यह नया गैंग का निर्माण आदिवासियों पर हमले की जिस भयानक रणनीति के तहत किया गया है, उसमें बस्तर में आदिवासियों के खिलाफ पुलिसिया गिरोह की आक्रामकता तब और भयावह हो जाती है जब पुलिसिया गिरोह अब ड्रोन की मदद से आदिवासियों के ठिकाने पर बमबारी कर रहे हैं, रासायनिक बमों का इस्तेमाल कर रहे हैं. माओवादियों की ओर से जारी एक प्रेस रिलीज में भी इसकी पुष्टि की गई है.

भारत सरकार की ‘सुरक्षा’ एजेंसी ने भी इसकी पुष्टि की है और बताया है कि माओवादियों के ठिकानों पर पुलिसिया महकमों ने आक्रामक तरीके से हमला किया और पूरे इलाके में बमबारी की. यह भी जानकारी मिल रही है कि इस एंटी माओवादी ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए कई सुरक्षा एजेंसियां एक साथ काम कर रही थीं और सीधे केंद्रीय मंत्रालय इसकी निगरानी कर रहा था.

आदिवासियों पर पुलिसिया हमलों के विरोध में फोरम

फोरम अगेंस्ट कोर्पाेरेटिज़ेशन एंड मिलिटराइज़ेशन ने एक पर्चा जारी कर कहता है कि आज के समय में भारतीय राज्य के बढ़ते दमनकारी स्वरुप ने देश की तमाम शोषित और उत्पीडित जनता को प्रताड़ित करने का काम और तेज़ी से बढ़ा दिया है. चाहे लोगों के लोकतान्त्रिक अधिकारों का संघर्ष हो, उनके जीवन के मूलभूत संसाधनों का संघर्ष हो, उत्पीड़ित अल्पसंख्यक समुदायों का संघर्ष हो, किसानों और मज़दूरों का अपने अधिकारों के लिए संघर्ष हो, आदिवासी जनता का उनके जल-जंगल-जमीन को बचने का संघर्ष हो या उत्पीड़ित राष्ट्रीयताओं का अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष हो, राज्य और उसकी प्रणाली ने सभी जन आंदोलनों को दमन के माध्यम से ख़त्म करने की भरपूर कोशिश की है.

भीमा-कोरेगांव स्मृति दिवस के अवसर पर सीएए-एनआरसी के विरुद्ध हुए जन आंदोलन और किसानों के संघर्ष में दमनकारी सत्ता और ब्राह्मणवादी फासीवादी ताकतों ने मिल कर आंदोलनरत जनता पर पुलिसिया दमन किये और काले कानूनों का प्रयोग करके जेलों में डाला. कुछ साल पहले ही यहां की आदिवासी जनता पर सलवा जुडुम जैसे ब्राह्मणवादी गुंडा ताकतों के माध्यम से सत्ता ने हमले करवाए और दमन को बनाये रखने के लिए सामाजिक और राजनैतिक कार्यकर्ताओं, जन हितैषी पत्रकारों और वकीलों पर यूएपीए जैसे काले क़ानून के तहत फर्जी मुक़दमे दर्ज करके उनकों जेलों में रखा.

तमाम दमन और फूट की राजनीति के बावजूद राज्य को संघर्षरत जनता के हाथों हार ही चखनी पड़ी है, इसका प्रमाण सलवा जुडूम के दमन को लड़कर आज भी अपना संघर्ष जारी रखने वाली आदिवासी जनता है, इस देश के किसान हैं और वो तमाम लोग हैं जो सीएए के विरुद्ध देश भर के अनगिनत शाहीनबागों में मोर्चा ले चुके हैं. भारतीय राजसत्ता देश-विदेश के कॉरपोरेट घरानों का जेब भरने के लिए, यहां के प्राकृतिक संसाधनों, यह के खान खदानों को उनके हवाले करना चाहती है.

चाहे ओडिशा के नियमगिरि पर्वत में बॉक्साइट का खनन हो, छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य जंगल में कोयला का खनन हो, महाराष्ट्र में सूरजगढ़ की पहाडी में लोहे का खनन हो, करेला के पश्चिम घाटी में अवैध खनन हो या हिमांचल-उत्तराखंड में बड़े बांध बना कर औद्योगिक क्षेत्रों और महानगरों में बिजली पहुंचाने की परियोजना हो, इन सभी में स्थानीय जनता का विस्थापन करके कॉर्पाेरेट घराने और राजसत्ता विकास का ढोंग रचने का काम करती रही है. ऐसे तमाम परियोजनाओं का जनता द्वारा विरोध होने पर, राजसत्ता तमाम तरह के जन विरोधी नीतियों का इस्तेमाल करती है.

कुछ सालों पहले ये नीतियां सलवा जूडम और ऑपरेशन ग्रीन हंट के नाम से लायी गई, जिसमें संघर्षरत जनता पर अमानवीय दमन किये गए. आज जो छत्तीसगढ़ से लेकर झारखण्ड जैसे अन्य प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर राज्यों में पुलिस और अर्धसैनिक बालों के कैंप लगाए जा रहे हैं. वे गृह मंत्रालय द्वारा 2017 में शुरू किये गए ऑपरेशन समाधान-प्रहार के तहत अनगिनत कैंप बनाने की नीति का ही हिस्सा है, जिससे कि कॉरपोरेटीकरण और विस्थापन के विरुद्ध अपने जल-जंगल-जमीन के लिए संघर्ष करने वाली जनता पर दमन का शिकंजा कसा जा सके.

बंगाल और बिहार-झारखण्ड में राजनैतिक कार्यकर्ताओं का फर्जी मुकदमों में गिरफ़्तारी, पिछले समय में महिला दिवस पर हिड़मे मरकाम की गिरफ़्तारी या अन्य लोकतान्त्रिक पत्रकारों और वकीलों का शोषण-उत्पीडन भी इस दमनकारी व्यवस्था को बरकरार रखने के लिए, ऑपरेशन समाधान के तहत ही हो रहा है. आज के समय में भी दमन का मूलभूत कारण और तरीका वही है जो की पहले था. कॉरपोरेटीकरण के विरुद्ध जन आंदोलन को नष्ट करने के लिए कल जो जन विरोधी नीति ऑपरेशन ग्रीन हंट के नाम से जानी जाती थी, उसे आज हम ऑपरेशन समाधान-प्रहार के नाम से जानते है.

कल जो सलवा जुडूम के एसपीओ के नाम से जाने जाते थे, आज वो डिस्ट्रिक्ट रिज़र्व गॉर्ड या डीआरजी के नाम से जाने जाते हैं. दमन के तरीके में तीव्रता और आक्रामकता बढ़ी है लेकिन जैसे कि दमन का मूलभूत कारण पहले जैसा ही है, जनता का इस दमनकारी नीति के खिलाफ संघर्ष भी उतना ही व्यापक और मज़बूत होगा. इस पर्चे द्वारा यह फोरम देश के सभी राजनैतिक, सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, लोकतान्त्रिक संगठनों, बुद्धिजीवियों, लोकतान्त्रिक पत्रकारों, लोकतान्त्रिक कार्यकर्ताओं और तमाम जनता से अपील करता हैं कि ऑपरेशन समाधान-प्रहार के विरुद्ध एक व्यापक मुहीम बनाकर इस दमनकारी नीति को भी रोकें जैसा कि पिछले वर्षों में ऑपरेशन ग्रीनहंट को रोका गया.

यह फोरम सिलोर और आसपास की तमाम संघर्षरत जनता का कैंप के विरुद्ध एक साल चलने वाले ऐतिहासिक आंदोलन के बरसी में शामिल हुए हैं और उनका मानना है कि सिल्गेर इस तरह के अनगिनत कैंपों के खिलाफ हो रहे संघर्ष का प्रतीक बन चुका है और वह कैंप के विरुद्ध संघर्ष कर रही जनता की आवाज़ के रूप में सामने आया है.

फोरम अगेंस्ट कोरिटिज़ेशन एंड मिलिटराइज़ेशन, सिलोर आंदोलन में शहीदों को याद करते हुए, यहां संघर्ष कर रही जनता के साथ अपना समर्थन व्यक्त करता है और यह स्पष्ट करता है कि हम कैंपों के खिलाफ, कॉर्पाेरेट लूट और विस्थापन के खिलाफ, फर्जी एनकाउंटर, फर्जी गिरफ्तारियों और ऑपरेशन समाधान प्रहार के खिलाफ संघर्षरत जनता के साथ खड़े हैं और उनके संघर्ष को देश भर की जनता तक पहुंचाने के लिए कार्यरत हैं.

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