प्रभुनाथ शुक्ल
मानव जितना सभ्य हुआ उससे कई गुना स्वार्थी बन गया। वह सहयोगी और सहचर जंगली जानवरों पर जरूरत से अधिक क्रूर हो चला। उसे तनिक भी ख्याल नहीं आया कि जिस प्राकृतिक वातावरण में वह रहता है उसमें साथ रहने वाले पशु-पक्षी और जंगली जानवर भी हमारे मित्र हैं। वह हमारी सभ्यता और संस्कृति से जुड़े हैं। हम विकास की आड़ में जंगलों को काटना शुरू कर दिया। परिणाम जंगल खत्म होते गए। जंगली जानवरों और इंसानों में संघर्ष शुरू हो गया। जिसमें दोनों की बहुत बड़ी क्षति हुई। हमने प्रकृति के साथ साहचर्य बना कर जीने के बजाय प्राकृतिक संपदाओं का विनाश मानव जीवन का उद्देश्य बना लिया। जिसका दुष्परिणाम आज हम भुगत रहे हैं। जिसकी वजह से जंगली जानवर शेर, बाघ, चीता और हाथी मानव बस्तियों तक पहुंच रहे हैं।
मीडिया में आए दिन मानव बस्तियों में जंगली जानवरों कि हिंसा सुर्खियों में रहती हैं। जंगलों के आसपास मानव बस्तियों में पहुंच नाराज गजराज उत्पात मचा रहे हैं। खेतों कि फसलों को रौंद रहे हैं बस्तियों एवं पेड़ों को उखाड़ रहे हैं। गुस्से में इंसानों को अपने पैरों तले रौंदते हैं। लेकिन इस नाराजगी का कारण हमने कभी पता लगाने की कोशिश नहीं की। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की तरफ से बने कानून सफेद हाथी साबित हो रहे हैं। प्रतिबंधित जंगली जानवरों का बेतहाशा शिकार किया जा रहा है। प्राकृतिक व्यवस्था में छेड़छाड़ का खामियाजा इंसान खुद भुगत रहा है। जंगली जानवरों के साथ इंसानी निर्ममता थम नहीं रही है। नतीजा जंगल में बसने वाले जानवर भी इंसानी बस्तियों में पहुंचकर अपना हिंसक स्वरूप दिखा रहा है। साल 2020 में केरल की घटना ने सबको हिला कर रख दिया था। जहां बारूद भरा अनानस खाने से गर्भवती हथिनी की मौत हो गई थी। यह घटना पूरी सोशलमीडिया पर छायी हुई थी बाद में केंद्र सरकार ने जांच का आदेश दिया था।
जंगल नष्ट होने से उसमें रहने वाले जंगली जानवर आख़िर कहाँ जाएं। मज़बूरी में भोजन की तलाश में वह मानव बस्तियों में पहुंचकर क्षति पहुंचा रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2022 में 70 से अधिक लोग गजराज की नाराजगी के शिकार बन चुके हैं। 16 राज्यों में हाथियों के हमले तेजी से बढ़े हैं। साल 2020-21 में हाथियों के उत्पात में देश भर में 461 लोग मारे गए थे। 2021-22 में यह संख्या 532 पर पहुंच गई जबकि 2019 में 585 लोग मारे गए। हाथियों ने सबसे अधिक झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के लोगों को शिकार बनाया। इसके बाद छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु जैसे राज्य हैं।
राज्य सरकारों की तरफ से केंद्र को जब इस तरह की रिपोर्ट मिलती है तो प्रभावित इलाकों में हाथियों के उत्पात को कम करने के लिए कई तरह के उपाय किए जाते हैं। धन-जन कि क्षति के लिए आर्थिक सहायता भी उपलब्ध कराई जाती है। जनसत्ता में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में अब तक सबसे अधिक 133 लोगों की मौत हाथियों के हमलों में हुई। इस प्रकार अरुणाचल में एक, आसाम में 63, छत्तीसगढ़ में 64, कर्नाटक में 17, केरल में 25 मेघालय में दो, उड़ीसा में 112, तमिलनाडु में 37, त्रिपुरा में दो जबकि बंगाल में 77 लोगों की मौत हुई। केरल राज्य में हाथियों के हमले से बचने के लिए बालयमचल और तालीपरंबा रेंज में 10 से लेकर 38 किलोमीटर तक दीवार खड़ी की गई है। जिसकी वजह से हाथी संरक्षित क्षेत्र से बाहर न निकल पाएं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार गजराज यानी हाथी भगवान गणपति के स्वरूप हैं। पारंपरिक उत्सव और विवाह में गजराज की पूजा सबसे पहले होती है। क्योंकि मंगलमूर्ति भगवान गणपति प्रथम पूज्य देव माने जाते हैं। लेकिन इंसान की बदली हुई प्रवृति के कारण मंगलमूर्ति गजराज कुपित हो चले हैं। साल 2017 में देशभर में हाथियों की जनगणना कराई गई। इसके पूर्व वर्ष 2012 में गणना हुई थी जिसमें हाथियों की संख्या 30 हजार बताई गई। आपको जानकर आश्चर्य होगा भारत में 60 फीसदी एशियाई प्रजाति की हाथी पायी जाती है। हाथियों की संख्या में 10 फ़ीसदी से अधिक की गिरावट दर्ज हुई। एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 और 2019 के बीच 500 से अधिक हाथियों की अकाल मौत हुई थी। हाथियों के मरने के कारणों ने इंसानी और जंगली जानवरों के बीच संघर्ष प्रमुख रहा है। इसके अलावा रेल ट्रैक पर आने, शिकारियों की तरफ से शिकार और बिजली की चपेट में आने से भी मौत हुई। साल 2010 में हाथी को राष्ट्रीय विरासत पशु घोषित किया गया। अब समय के साथ हमें अपनी सोच बदलनी होगी और जंगली जानवरों के साथ मित्रवत व्यवहार करना होगा। सरकार की भी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि जंगलों के आसपास जहाँ मानव बस्तियां हैं उनकी सुरक्षा के लिए व्यापक प्रबंध किए जाएं जिसकी वजह से जंगली जानवर और इंसानों के बीच संघर्ष को टाला जाए। वक्त रहते इस पर नहीं चेता गया तो आने वाले वक्त में हाथी भी विलुप्त प्राणी बन जाएगा।