*राजेंद्र शर्मा के तीन व्यंग्य*
*1. ईश्वर-अल्लाह एक नहीं हो सकते!*
आखिर ये मोदी जी के विरोधी चाहते क्या हैं? हिंदू क्या अपने धर्म की रक्षा भी नहीं करें। और वह भी हिंदुस्तान में। आखिर, पटना में अटल जी के जन्म शताब्दी वर्ष के आयोजन में जुटे लोगों ने ऐसा क्या किया क्या था, जिसका इतना शोर मचाया जा रहा है। बेचारे हिंदू धर्म की ही रक्षा तो कर रहे थे।
एक तो भोजपुरी लोक गायिका देवी को ऐसे मौके पर मंच पर चढ़ने ही नहीं देना चाहिए था। पुराने टाइप के गायक-गायिकाओं को मंच और मंच के रास्ते सिर पर चढ़ाने के जमाने कब के लद गए।
शताब्दी अटल जी की होने से क्या हुआ, अब पार्टी तो मोदी जी की है। गाना-वाना अगर कराना ही था, तो किसी हिंदू-पॉप बैंड को बुलाना चाहिए था, जय श्रीराम गाने के लिए ; जैसे मुंबई में बुलाया गया था देवेंद्र फडनवीस के तीसरी बार के शपथ ग्रहण के मौके पर। पर भक्तों को निराश करते हुए देवी को मंच पर चढ़ाया गया। और देवी जी ने आते ही रामधुन छेड़ दी। पर नकली रामधुन ; होना चाहिए था जय श्रीराम, जय जय श्रीराम और लगीं करने रघुपति राजाराम। खैर! रघुपति राघव राजाराम तक को फिर भी हिंदू धर्मरक्षकों ने टॉलरेट कर लिया। पर देवी जी तो खुद को साक्षात देवी कहलवाने पर तुली हुई थीं। राजाराम का मामला तो फिर भी सिर्फ पुराने फैशन में नाम लेने का था, वह तो अटल जी के प्रोग्राम में अल्लाह की घुसपैठ कराने पर तुल गयीं।
और फिर वही होने लगा, जो कि हमेशा घुसपैठ के मामले में होता है। अल्लाह मियां को मंच पर जरा-सी एंट्री क्या मिल गयी, लगे हमारे ईश्वर से बराबरी का दावा करने। घुसपैठिया संस्कृति गायिका देवी की जुबान पर चढ़कर बोलने लगी — ईश्वर अल्लाह तेरो ही नाम! ईश्वर है, वही अल्लाह भी है। यानी हमारे ईश्वर की अपनी कोई खासियत ही नहीं है। कोई श्रेष्ठता नहीं है। ईश्वर की जगह अल्लाह से भी काम चलाया जा सकता है। दोनों बराबर जो ठहरे, बल्कि दोनों एक ही ठहरे, जिन्हें लोग अलग-अलग नामों से पुकारते हैं! पर यह सच कत्तई नहीं है। यह तो सिर्फ सेकुलर वालों का छलावा है। वास्तव में इसके सेकुलर होने की पोल तो उसी बंद में जरा सा आगे चलकर खुल जाती है, जब सन्मति देने का जिम्मा फिर हमारे भगवान के सिर पर डाल दिया जाता है। किसी गॉड, किसी अल्लाह के सिर पर नहीं, सिर्फ हमारे भगवान जी के सिर पर यह गुरुतर बोझ रखा जाता है — सब को सन्मति दे भगवान! बेशक, इसमें भी सेकुलर वालों के दबाव में सबको घुसा दिया गया है यानी सिर्फ सन्मति देने से काम नहीं चलने वाला; सन्मति सब को देनी पड़ेगी ; लेकिन इसकी जिम्मेदारी भगवान पर है। फिर बराबरी कहां रही?
बहरहाल, ये सब गहरी फलसफे की बातें हैं और सच पूछिए, तो पटना में तो इस सब तक जाने की नौबत ही नहीं आयी। हिंदू धर्म-रक्षक पहले ही अड़ गए, एक ही जुबान से ईश्वर और अल्लाह का नाम नहीं लेने देंगे! वह तो गनीमत समझिए कि भाई लोग ऐसी गुस्ताखी करने वाली जुबान को ही काटने पर ही नहीं अड़ गए और सिर्फ गायिका का मुंह बंद कराने के गांधीवादी अहिंसक रास्ते पर ही चलते हुए नारेबाजी और हंगामा ही करते रहे। वर्ना मंच पर खूनो-खून हो जाता और हिंदुस्तान थोड़ा-सा और अफगानिस्तान तथा हिंदू धर्मरक्षक दल थोड़ा-सा और तालिबान बन जाता।
अब प्लीज इसकी घिस-घिस मत करने लगिएगा कि देवी जी तो गांधी बापू का सबसे प्रिय भजन ही गा रही थीं। गांधी जी बेशक महान थे और उनकी महानता को सभी को नमन करना चाहिए। गांधी जी महानता के लिए श्रद्धांजलि में ही तो हिंदू धर्म रक्षकों ने गांधी का अहिंसक मार्ग अपनाया है और गायिका की जीभ पर छुरा नहीं चलाया है। गांधी जी का बेचारे और कितना ख्याल करेंगे? कुछ ख्याल दूसरे भी तो करें, जिनके गांधी जी इतने सगे बनते थे। वे क्यों नहीं अपने अल्लाह को हमारे ईश्वर के बराबर में बैठाने से बाज आते।
सच पूछिए तो गांधी जी की इन्हीं हरकतों ने उन्हें मरवाया था। राष्ट्रपिता थे भारत के और हमेशा भला चाहा पाकिस्तान का। ऊपर से हमीं को अहिंसा का उपदेश। नाथूराम जी को बापू की यही बात अच्छी नहीं लगी। गांधी जी के भक्त थे, देशभक्त और हिंदू-रक्षक वगैरह तो खैर थे ही, विकट संस्कारी भी थे ; गोलियां भी मारीं तो, पहले पांव छूकर आशीर्वाद लेकर। यानी जिसे बाद में बापू की हत्या कहकर प्रचारित किया गया, यहां तक कि जिसके लिए नाथूराम जैसे कट्टर देशभक्त और उसके एक संगी को फांसी तक दे दी गयी, जिसके लिए वीर सावरकर तक पर उनके बरी होने तक मुकद्दमा चलाया गया ; वह हत्या नहीं, बापू की मुक्ति थी। नाथूराम आदि तो महज साधन थे उनकी इस मुक्ति के, जो उन्होंने खुद बापू के आशीर्वाद से उन्हें दिलायी थी। गायिका देवी के नसीब में ऐसी मुक्ति तो छोड़ो, गाने-वाने से भी मुक्ति कहां ; वह तो अभी और मंच-मंच पर गाती फिरेंगी, जब तक कि बिहार पूरी तरह हिंदू धर्म रक्षकों का गढ़ नहीं बन जाता है।
रही ‘‘रघुपति राघव राजाराम…’’ की बात तो यह कोई राष्ट्रगान तो है नहीं, जिसका बीच में रोके जाने से अपमान हो जाता हो। राष्ट्रगान छोड़ो, यह तो राष्ट्रगीत तक नहीं है यानी अपमान होने का तो कोई सवाल ही नहीं है। और राष्ट्रीय या राष्ट्र भजन का पद अगर अब तक खाली है, तो क्या इसका मतलब यह भी नहीं है कि रघुपति राजाराम… को राष्ट्र भजन बनाने लायक कभी समझा ही नहीं गया। वर्ना नेहरू जी भी तो मोदी जी की तरह तीन-तीन बार प्रधानमंत्री चुने गए थे, उन्हें इसे राष्ट्र भजन का पद देने से किसने रोका था? और जिसे नेहरू जी ने राष्ट्र भजन का दर्जा नहीं दिया, उसे मोदी जी के राज में यह दर्जा दिया जाए, यह मोदी जी नहीं करने वाले। मोदी जी, नेहरू जी की गलतियां दुरुस्त करने के मिशन पर हैं, न कि उनकी हिंदू-विरोधी गलतियों को आगे बढ़ाने के मिशन पर। राष्ट्र का दर्जा अगर देना ही होगा, तो जय श्रीराम को देंगे, न कि ईश्वर, अल्ला तेरोई नाम को। ईश्वर और अल्लाह, मोदी जी के रहते कभी बराबर नहीं हो सकते। ईश्वर और अल्लाह, मोदी जी के रहते भजन की एक पंक्ति में कभी नहीं आ सकते। ईश्वर और अल्लाह के नाम, कभी कम-से-कम किसी सरकारी कार्यक्रम में कलाकार की जुबान पर एक साथ नहीं आ सकते। वर्ना पीछे-पीछे ईडी पहुँच जाएगी।
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*2. जा तू जा 2024!*
जा 2024 तू जा। बहुत हुआ, अब तो निकल ले। हम पर मेहरबानी कर। हमारी जान बख्श और 2025 को आने दे। 2025 कैसा होगा, इसकी फिक्र तू छोड़, तू तो बस विदाई ले। तू तो बस जा।
ओ चुनाव में पब्लिक को बड़ी-बड़ी उम्मीदें दिखाने वाले साल ; ओ मोदी जी को भी 400 पार के सपने दिखाने वाले साल ; ओ भगवाइयों को 400 सौ पार से संंविधान बदलने के हौसले बंधाने वाले साल ; ओ आखिर में नतीजों से सब को हैरान करने वाले साल, तू जा। ओ मोदी जी से खुद ही खुद को सीधे ईश्वर का भेजा, नॉन बायलॉजिकल ईश्वरीय दूत घोषित कराने वाले और विरोधियों पर मंगलसूत्र से लेकर भेंसें तक, छीनकर ले जाने और मुसलमानों में बंटवा देने के इल्जाम लगवा देने वाले साल, तू चलता बन। ओ मोदी जी से पहले वाली आत्मनिर्भरता छीनकर, दांए कंधे के नीचे नायडू की और बांए कंधे के नीचे नीतीश की बैसाखी पकड़ा देने वाले साल ; ओ भूले हुए एनडीए की मोदी जी को फिर से याद दिलाने देने वाले और एनडीए की दूसरी पार्टियों के शीर्ष नेताओं के लिए फिर से भोज-वोज शुरू कराने वाले साल, तू अब निकल ले।
ओ बेरोजगारी के रोने तेज से तेज कराने वाले साल, तू जा। ओ महंगाई के नये-नये रिकार्ड बनाने वाले साल तू जा। ओ किसानों की आत्महत्याओं के कंपटीशन में, मजदूरों-खेत मजदूरों की आत्महत्याओं को भी ला खड़ा करने वाले साल, तू अब तो जा। औरतों पर अत्याचारों के नये-नये रिकार्ड बनवाने वाले साल, तू अब जा। दलितों को घोड़ी चढ़ने से लेकर बारात में बैंड बजवाने तक से रोके जाने की परंपरा कायम रखे जाने के साल, तू जा। औरतों और दलितों की बगल में, दूसरे दर्जे के नागरिकों के रूप में मुसलमानों की हैसियत पुख्ता कराने वाले साल, तू जा। लिंचिंग के एक के बाद एक तमाशे दिखाने वाले साल, तू जा। एन्काउंटर के एक से बढ़कर एक कारनामे दिखाने वाले साल, तू जा। कमजोरों के घरों, दूकानों, दिलों, सब पर बुलडोजर चलवाए जाने वाले साल, तू अब जा। योगी का बुलडोजर बाबा का खिताब पक्का कराने वाले साल, अब तू जा। अयोध्या में दीवाली पर 30 लाख से ज्यादा दिए एक साथ जलवाने और दियों का बचा हुआ तेल गरीबों के बच्चों से घर पर खाने में इस्तेमाल के लिए इकठ्ठा कराने का डबल विश्व रिकार्ड एक बार फिर से बनवाने वाले साल, तू तो जा।
ओ जाते-जाते जाकिर हुसैन, श्याम बेनेगल जैसी बड़ी हस्तियों को हमसे चुरा ले जाने वाले साल, तू जा। ओ मनमोहन सिंह की विदाई से मोदी जी के लिए नया संकट खड़ा कर देने वाले साल, तू बस जा। संकट ये है कि जो बेचारे मोदी जी अपना सारा ध्यान अब तक नेहरू जी को कंपटीशन में पछाड़ने पर ही लगाए हुए थे, अब उनका एक और कंपटीटर मर कर पैदा हो गया है — मनमोहन सिंह। बेचारे, अब नेहरू को हराएं या मनमोहन सिंह को। मनमोहन सिंह को हराना वैसे तो आसान लगता है, वह सिर्फ दो बार प्रधानमंत्री चुने गए थे, जबकि मोदी जी की तीसरी पारी चल रही है। पर मनमोहन सिंह की शिष्टता, विनम्रता, मृदुता, जनतांत्रिकता, धर्मनिरपेक्षता वगैरह-वगैरह को कैसे हराएं? मोदी जी को मनमोहन सिंह से जीत कर भी हरवा देने वाले साल, तू अब जा।
ओ गोदी मीडिया के साथ-साथ देश को गोदी पूूंजीवाद के युग में पहुंचाने वाले साल, तू जा। ओ अडानी पर बार-बार संकट के बादल ले आने और मोदी जी से उसकी हिफाजत कराने वाले साल, तू जा। इसकी फिक्र मत कर कि आगे-आगे अडानी का क्या होगा? जब तक मोदी जी कायम हैं, कुछ भी नहीं होगा ; न 2025 में, न 2026 में आदि, आदि। अडानी की चिंता छोड़, तू तो बस अब जा। बाकी सब जस का तस रहा, तब भी कम से कम कलैंडर तो नया होगा। सो जा 2024 और 2025 को आने दे।
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*3. सदा अटल*
अब कोई कुछ भी कहे‚ अपने भगवा भाई कमिटमेंट के एकदम पक्के होते हैं। एक बार कमिटमेंट कर दिया‚ फिर अपने आप की भी नहीं सुनते हैं। पटना में अटल जी के शताब्दी वर्ष वाले सदा अटल में यही तो हुआ। अटल होने का कमिटमेंट कर के आए थे‚ सो भाई लोग आखिर तक अटल रहे। रघुपति राघव राजाराम गाए जाने से भड़क गए‚ तो फिर भड़के ही रहे। भोजपुरी लोक गायिका देवी ने लाख समझाया, पर नहीं टले। राम के नाम का वास्ता दिया‚ पर नहीं टले।
‘ईश्वर‚ अल्लाह तेरा ही नाम’ जुबान पर लाने के लिए माफी तक मांगी‚ पर हंगामे पर अटल रहे। जय श्रीराम के जैकारों तक से नहीं टले। बापू का प्रिय भजन छेड़ने वाली और ईश्वर–अल्लाह का नाम एक साथ लेने वाली गायिका को‚ मंच से उतरवा कर ही माने।
ऐसी अटलता कोई पटना के ही भगवाइयों की बपौती नहीं है। मोदी राज में भगवाई हर जगह यूं ही अटल हैं। अब खुद मोदी जी ने ईसाई बिशपों के साथ क्रिसमस मनाया कि नहींॽ मोदी जी ने इस मौके पर शांति और प्रेम और भाईचारे का सुंदर सा उपदेश सुनाया कि नहीं‚ वह भी मुई अंगरेजी में। पर मजाल है, जो इससे भगवाइयों की अटलता में जरा सी भी कमी आई हो। उन्होंने तो यही माना कि उपदेश दूसरों के लिए था। केरल में भाइयों ने एक स्कूल में जाकर क्रिसमस की तैयारियों का यज्ञ–ध्वंस कर दिया। इसकी भी परवाह नहीं कि वहां मोदी जी का डबल इंजन राज नहीं है। हवालात की हवा खानी पड़ गई‚ पर प्रेम के त्योहार में‚ नफरत घोलने पर अटल रहे। और जब सिंगल इंजनिया केरल वाले प्रण से नहीं टले‚ तो गुजरात वाले‚ राजस्थान वाले‚ मध्य प्रदेश वाले कैसे टल जाते‚ वहां तो डबल इंजनिया सरकारें हैं। और यूपी‚ वहां तो डबल इंजनिया के ऊपर से योगी चढ़ा का मामला है। लखनऊ में भाई लोग एक चर्च के बाहर जा जमा हुए और जय श्रीराम के जैकारों और हरे रामा हरे कृष्णा के नारों से‚ यीशु का जन्म दिन मना डाला! पर इसमें प्राब्लम क्या हैॽ
भगवाई आखिरकार‚ नाच–गाकर बर्थ डे मनाने पर ही तो अटल हैं। राम नवमी पर मस्जिद के सामने नाच–गाने पर और क्रिसमस पर गिरजे पर नाचने–गाने पर। बस उन्हें कोई गुस्सा न दिलाए। वरना भागवत जी तो क्या खुद श्रीराम की भी नहीं सुनेंगे! वही तो – सदा अटल!
*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*
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