गाड मिल गया !
(कविता )
_
सुबह के अखबार की सुर्खियों में
यह हेडलाइन देख उछल पड़ा की
God मिल गया है
टीवी खोला तो वहां भी
खुदा की खोज की खबरें
सुर्खियों में थीं
मन बहुत खुश हुआ
जान में जान आई
की खुदा मिल गया है
अब टनटा खतम हुआ
झगड़े दूर हुये
युगों की टेंशन मिट गई
और धर्मों की जरूरत समाप्त हो गई !
अब जातियों की नफ़रतें न होंगी
मुल्कों की सरहदें न होंगी
नफरतों में वादियाँ न होंगी
दहशत में घाटियां न होंगी !
ऊंची अजानें न होंगीं
दबी जबानें न होंगी
घृणा की टहनियां
काट दी जाएंगी
धर्मस्थलों की दौलत
बांट दी जाएगी !
God मिल गया है
सुबह की इस “बड़ी खबर” पर
दोपहर तक
पूरी दुनिया मे
बहसें शुरू हो चुकी थीं !
चर्च वालों का दावा था कि
जो मिला है
वो उनका यहोवा है !
मस्जिद वाले
इसे कुरान में
फिट करने की जद्दोजहद में जुटे थे
और जो मिला
उसे अल्लाह साबित करने पर डटे थे !
वेद वाले कह रहे थे यह
वेदों का करिश्मा है
जो मिला है वो
उनका परमात्मा है !
शाम होते होते
टीवी पर होने वाली बहसें
सड़कों तक आ गईं
सभी धर्मों के ठेकेदार
आमने सामने थे !
मुर्दा जिस्मों में सुगबुगाहट होने लगी
राजनीति में गरमाहट होने लगी
नेताओं ने
इस मौके का भरपूर फायदा उठाया !
और अंधेरा होने से पहले
दुकानें जलनी शुरू हो गईं
बस्तियां उजड़ने लगीं !
रगों में साफ खून की जगह
नफरते बहने लगीं और
नालों में गंदे पानी जगह
साफ खून बहने लगा !
रात होने तक
सड़कों पर लाशें ही लाशे थीं !
अगली सुबह तक
बस्तियां जल चुकी थीं !
कस्तियाँ लूटी जा चुकी थीं !
घाटियाँ घायल थीं
और वादियां रो रहीं थीं !
कीमती सामान
लूटा जा चुका था
बची खुची जो चीज थी
वो रद्दी थी
घरों का सामान सड़कों पर था
और लाशें ट्रकों पर लदी थीं !
शहर तबाह और कस्बा
कूड़ाघर बन चुका था
हॉस्पिटल का इमरजेंसी वार्ड
मुर्दाघर बन चुका था !
टीवी की बहसें
लगातार जारी थीं
इधर देश जल रहा था !
और उधर
नए राष्ट्रवादी चैनल पर
पुराना धर्मवादी पैनल बैठा
अल्लाह के रहमान होने पर और
भगवान के “दयावान ” होने पर
लाइव डीबेट कर रहा था !
तभी बाहर के
टीवी चैनलों पर घोषणा हुई
की अभी अभी
वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि
कल जो गॉड मिला था
दरअसल वो
हिग्ज बोजोन नामक
एक “पार्टिकल ” था
जिसे कुछ लोगों ने
गॉड पार्टिकल का नाम दे दिया था…!
इस पार्टिकल का
किसी भी धर्म के
गॉड यहोवा अल्लाह भगवान से
कोई मतलब नहीं…!
इस बड़ी खबर के आने तक
लाइव डीबेट की टीआरपी
नीचे गिर चुकी थी…!
लेकिन तब तक
मुल्क के लाखों लोग
लड़ -लड़ कर
ऊपर उठ चुके थे…!
साभार -सुप्रसिद्ध लेखक व दार्शनिक शकील प्रेम जी , संपर्क - 79 82610842
-निर्मल कुमार शर्मा 'गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षण तथा देश-विदेश के सुप्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में वैज्ञानिक,सामाजिक, राजनैतिक, पर्यावरण आदि विषयों पर स्वतंत्र,निष्पक्ष,बेखौफ, आमजनहितैषी,न्यायोचित व समसामयिक लेखन,संपर्क-9910629632, ईमेल - nirmalkumarsharma3@gmail.com