अग्नि आलोक
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रोकना होगा इस आदमी को !

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-श्रवण गर्ग

समझाया जाना चाहिए इसे
पागल हो गया है यह आदमी
बाँटने बैठ गया है सुर्ख़ गुलाब
खून से सने मैदानों में !
खोलने लगा है
दुकानें मोहब्बत की
नफ़रत के बाज़ारों में
देखा है पहले कहीं-कभी !
पागलपन इस तरह का ?

हो गया है ज़रूरी अब
बचाना तानाशाही को
इस आदमी की गिरफ़्त से
कर देगा तबाह यह
एक साथ सारी चीज़ें —
बारूदों के गोदाम, खूनी तलवारें
आस्तीनों में छुपे साँप !
रोकना चाहिए इस आदमी को
और आगे बढ़ने से !

क्या करेंगी अदालतें ?
ये ही बचा लेगा जब
आईन और आईना मुल्क का !
ज़मीर अवाम का !

हो गया है ज़रूरी अब
बांध देना इसे मज़बूती से
बाँट देगा वरना दोनों हाथ भी
लगाने पौधे इंसाफ़ के ,
बोने बीज जम्हूरियत के !

कौन लगेगा क़तारों में
घर ढोने के लिए
मुफ़्त का अहसान !
हिल जाएँगी यूँ तो
सल्तनतें सारी, हर जगह
टिकी हुई हैं जो
सूई की नोकों पर !

हो गया है यह आदमी
बहुत ख़तरनाक
सिखा रहा है जनता को
निकलना सूई के छेद से !
रोकना ज़रूरी है इसे
रोक नहीं पाएगी
अदालत दुनिया की कोई !

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