अग्नि आलोक
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विपदा के वक्त सरकार

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-विवेक मेहता

माई-बाप मैंने बहुत खोजा
आपको
मलबे के पास
चिकित्सालय के कैंपों में
मदद मांगते डरे सहमे लोगों में
दवा की दुकानों में
मंदिरों में
लंगरों में
श्मशानों में
आप कहीं भी मिले नहीं।

मैं डरा सहमा
घबराया-भौचक्का था
मिल जाते आप तो
विश्वास बैठ जाता
मन में।

मालिक मुझे याद है
हर विपदा, दुर्घटना के बाद
विश्वास दिलाते हैं आप
विपदाओं से लेंगे ज्ञान,
संकट में देंगे साथ।

अन्नदाता, सरकार
गुस्ताखी हो माफ
हर बार हमसे ज्यादा
डर जाते हैं आप।
दडबे में घुस जाते है।
कछुए की तरह से बाहर आते हैं
वो भी होकर
हवा पर सवार।
तब तक तो जुटा लेते हैं
हम ही अपने में विश्वास।

हजूर आप हैं
जन-गण-मन अधिनायक
भाग्य विधाता
महाराष्ट्र, उड़ीसा, मणिपुर, बिहार
या हो
गुजरात।
माई-बाप, गुस्ताखी हो माफ
जय हो, जय हो, जय हो।

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