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जायदाद के लिए श्मशान में रिश्तों का ‘अंतिम संस्कार’….रिश्ता निभाना कैसे सिखाए सरकार?

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भारतीय समाज में परिवार एक सबसे महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। हमारे यहां माता-पिता अपनी औलाद की बेहतरी के लिए अपना जीवन खुशी-खुशी खर्च कर डालते हैं। उनमें औलाद को लेकर एक उम्मीद जरूर होती है कि ये हमारे बुढ़ापे का सहारा बनेगा। लेकिन बदलते समाज में धीरे-धीरे ये धारणा टूटती नजर आ रही है। आप इसे तरक्की की जंग कह लीजिए नौकरी का दबाव या संयुक्त परिवार टूटने और न्यूक्लियर फैमिली के साइड इफेक्ट… लेकिन सच ये ही है कि रिश्तों की डोर धीरे-धीरे बुरी तरह उलझती जा रही है। हालांकि माता-पिता के अपने बेटे या बेटी के लिए सब कुछ दांव पर लगाने की धारणा नहीं बदली है लेकिन बदले में बुढ़ापे का सहारा वाली उम्मीद जरूर बिखरती नजर आ रही है।

अर्थी पर एक मां का शव 9 घंटे तक मुखाग्नि का इंतजार करता रहे और उसी श्मशान घाट में उसकी तीन बेटियां संपत्ति के बंटवारे की जंग लड़ती रहें तो आप क्या कहेंगे? घर में मां की मृत्यु हो जाए और 20 दिन बाद उसकी सड़ी-गली लाश निकले और महज 30 किलोमीटर दूर रहने वाले बेटे को पता तक न चले, ऐसी स्थिति को और आप क्या कहेंगे?

उत्तर प्रदेश के मथुरा का ये मामला है। यहां 85 वर्षीय महिला पुष्पा की मौत हो गई, अंतिम संस्कार के लिए शव श्मशान घाट लाया गया। लेकिन अर्थी पर रखा गया शव मुखाग्नि के लिए 9 घंटे तक ‘इंतजार’ करता रहा। क्योंकि पुष्पा की तीन बेटियां उसी श्मशान घाट में जमीन के हक की लड़ाई लड़ रही थीं। दरअसल पुष्पा की तीन बेटियां मिथिलेश, सुनीता और शशि हैं। पुष्पा कुछ दिन पहले बड़ी बेटी मिथिलेश के घर में रहने चली गई थीं। विवाद की जड़ ये है कि दूसरी बहनाें का आरोप था कि मिथिलेश ने अपनी मां को फुसलाकर करीब डेढ़ बीघे खेत बेच दिया। जब पुष्पा की मौत के बाद शव को लेकर मिथिलेश के परिजन श्मशान घाट पहुंचे तो दो अन्य बेटियां सुनीता और शशि भी यहां पहुंच गईं।

श्मशान घाट जिसे मोक्ष धाम भी कहा जाता है, वहां जमीन को लेकर लड़ाई शुरू हो गई। तीनों बहनें संपत्ति का बंटवारा कराने के लिए आपस में जूझती रहीं। वहीं बगल में चिता पर रखा शव अंतिम संस्कार के लिए तरसता रहा। अंतिम संस्कार कराने आए पंडित को रोक दिया गया। बवाल इतना बढ़ गया कि पुलिस को दखल देना पड़ गया। कई घंटे मशक्कत के बाद आखिरकार तीनों बहनों के बीच उसी श्मशान में लिखित समझौता हुआ, बंटवारा फाइनल हुआ तब जाकर मां के शव का अंतिम संस्कार किया जा सका।

सोचिए इन तीनों बहनों का जीवन बसाने के लिए मां ने जीवन भर कितने जतन किए होंगे। ये घटना तो सिर्फ बानगी भर है। नोएडा गाजियाबाद से लेकर हर शहर में ऐसे न जाने कितने किस्से मिल जाएंगे। कहीं बेटा इतना व्यस्त है कि पिता की मौत के बाद उसके शव को मुखाग्नि देने की ‘फुरसत’ नहीं है। कहीं संपत्ति के लिए बेटियां लड़ी-कटी जा रही हैं।

मां की मौत मिली सड़ी गली लाश

इसी तरह साल भर पहले ग्रेटर नोएडा में बीटा वन कॉलोनी में एक 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला डॉक्टर की लाश बरामद की गई। शव पूरी तरह सड़ चुका था, उसमें कीड़े पड़ गए थे। पता चला कि महिला की मौत 20 दिन पहले ही हो चुकी थी। जांच में सामने आया कि उसका एक बेटा भी है लेकिन वह करीब 30 किलोमीटर दूर गाजियाबाद में रहता है। चार महीने से उसकी अपनी मां से बात नहीं हुई थी। उसकी सास ने जब मां से मिलने की इच्छा जताई तो वह मां के पास पहुंचा था। मगर बहुत देर हो चुकी थी। पता चला कि महिला बिहार में सरकारी डॉक्टर हुआ करती थीं। रिटायरमेंट के बाद वह ग्रेटर नोएडा में आकर रहने लगी थीं। पति से तलाक हो चुका था। बेटा उनके साथ रहता था। लेकिन कुछ महीनों पहले वह अपने परिवार के साथ गाजियाबाद में सेटल हो गया। महिला के बारे में पता चला कि वह सीनियर सिटीजन क्लब बनवाना चाहती थीं, ताकि बुजुर्गों को जीवन काटने के लिए किसी सहारे की जरूरत न पड़े।

सरकार बुजुर्ग मां-पिता के अधिकार कर रही सुरक्षित

बुजुर्गों की इसी समस्या को देखकर सरकार उन्हें ‘मरते दम तक’ कीमती बनाए रखने की जतन भी करती रही हैं। यूपी सरकार उत्तर प्रदेश माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण एवं कल्याण नियमावली 2014 में संशोधन करने जा रही है। प्रस्तावित संशोधन में न सिर्फ बुजुर्ग माता-पिता के बच्चों, बल्कि रिश्तेदारों को जोड़ा गया है। पीड़ित माता-पिता अगर चाहें तो वह अपना केस को पहले एसडीएम और फिर प्राधिकरण के सामने प्रस्तुत कर सकते हैं। एसडीएम के आदेश के बाद ऐसे बच्चों को वह अपनी संपत्ति से बेदखल कर सकते हैं जो उनकी देखभाल नहीं करते या उन्हें प्रताड़ित करते हैं। दरअसल जब पहली बार ये नियमावली आई थी तो इसे सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया। बुजुर्ग माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों की सम्पति के संरक्षण के लिए कोई भी विस्तृत कार्य योजना नहीं बनाई गई थी। मामले में बुजुर्ग माता-पिता की शिकायतें आने के बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से इस नियमावली को और प्रभावशाली बनाने के निर्देश दिए थे।

यह है कानून

2017 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक गुजारा भत्ता एवं कल्याण कानून, 2007 के प्रावधानों को तीन माह के भीतर लागू करने का निर्देश दिया था। यह कानून राज्य सरकार को वरिष्ठ नागरिकों को गुजारा खर्च, चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने की व्यवस्था करने और वरिष्ठ नागरिकों के जीवन की रक्षा करने की सहूलियत प्रदान करता है।

आपको रिश्ता निभाना कैसे सिखाए सरकार?

सरकार सीनियर सिटीजन के अधिकार सुरक्षित कर सकती है। लेकिन जब बुजुर्ग समय के साथ अक्षम हो जाए। उसे सिर्फ एक सहारे की जरूरत हो। धन दौलत नहीं औलाद का कंधा ही उसके लिए काफी हो तो सरकार कैसे उसकी औलाद को रिश्ता निभाना सिखाए? हमारे आसपास ही ऐसी तमाम कहानियां भरी पड़ी हैं। कहीं एक ही घर में बेटा अपने परिवार को दुलार कर रहा है, और उसके ही बुजुर्ग माता-पिता खाने के लिए टिफिन सर्विस के सहारे हैं। कहीं अकेले घर में मां या पिता सन्नाटे में घुटने को मजबूर हैं क्योंकि बेटे या बेटी अपने परिवार के साथ अलग सेटल हैं। सोचिएगा।

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