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चमत्कार को नमस्कार, घण्टों का मिनिटों में….

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शशिकांत गुप्ते इंदौर

इश्तिहार देखने सुनने पर पता चलता है कि, सिर्फ दो मिनिट में बच्चों की भूख मिट सकती है। इश्तिहार में दर्शाया जाता है। बच्चा बोलता है,मम्मी भूख लगी है।मम्मी कहती है, बस बेटा दो मिनिट।घण्टों का काम मिनिटों में होने लगा है। आश्चर्य की बात नहीं है।भूख किसी को सहन नहीं होती है।पशु और पक्षियों का आहार निश्चित होता है।पशु और पक्षियों में भी मांसाहारी और शाकाहारी होतें हैं।मानव के आहार का स्वरूप व्यापक होता है। मानव की भूख अमिट है।

मानवों  की भूख शाकाहार और मांसाहार तक सीमित नहीं है।मानव सर्व पदार्थ भक्षी है।मानव के खाने के तरीक़े भी बहुत अनोखे हैं।खाद्य पदार्थो को तो मानव ग्रास बनाकर मुँह में रख कर दांतों से चबाकर खाता है।खाद्य पदार्थो के अलावा जो भी खाता है।वह पदार्थ मुँह से मांगकर नहीं सांकेतिक भाषा इशारे से खाता है।यह पदार्थ खाने के लिए सारे कानून कायदे नीति नियमों को ताक़ में रखना पड़ता है।कानून के अंदर घुस कर कानून की कमजोरियों को ढूंढ कर खाता है।सम्भवतः इसीलिए उसे घूस कहतें होंगे?मुद्दा है,दो मिनिट का।कोई व्यक्ति अपने हक़ की लड़ाई के लिए शासकीय कार्यालयों के वर्षो तक चक्कर लगाता है।जैसे ही उसे कोई अनुभवी या भुक्त भोगी अथवा कोई बिचौलिया समझता है कि,वह सम्बंधित शासकीय कर्मी को मुद्राओं के आहार का भोग लगाएगा तो दो मिनिट में काम हो जाएगा।पीड़ित व्यक्ति इस ‘अ’ नैतिक कहलाने वाली क्रिया पर ‘बे’ मन से अमल करता है।(इनदिनों ‘मन’ का महत्व अंतरराष्ट्रीय हो गया है।) पीड़ित व्यक्ति जैसे ही सम्बंधित शासकीय कर्मी को मुद्राओं का भोग लगाता है।वर्षो से अटकी फाइल दो मिनिट में निपट जाती है।यदि कोई भी पीडित व्यक्ति  ऐसा नहीं करता है,तो उस व्यक्ति के दिल की मंशा दिल में ही रह जाती है।कभी कभी तो उसका दिल हिंदी में सिर्फ टूटता नहीं है इंग्लिश में ब्रेक होकर फैल भी जाता है।

मानव के जीवन की फाइल असमय ही निपट जाती है।देश की स्वतंत्रता के बाद पहली बार Good governance का इश्तिहार देखने पढ़ने और सुनने को मिल रहा है।नई व्यवस्था में तो एक मिनिट में बैंक से ऋण प्राप्त करने सुविधा प्रदान करने का विज्ञापन किया जाता है।सुखद अनुभूति होती है।जब सुनने,पढ़ने और देखने आता है कि रामजी की मूर्ती विराजित करने के लिए जमीन का सौदा बहुत ही चमत्कारिक ढंग से होता है।सिर्फ दो मिनिट में दो करोड़ की संख्या में बहुत से शून्य लग जातें हैं। करोड़ की गिनती मात्र दो मिनिट में बहु वचन अर्थात कोरोडो में तब्दील हो जाती है।आश्चर्यजनक बात यह है कि, यह सारी चमत्कारिक प्रक्रिया को नगर के प्रथम नागरिक का दर्जा प्राप्त व्यक्ति ( महापौर ) के निवास स्थान पर आंजाम दिया जाता है।भगवान पर आस्था का चमत्कार है। यह करोड़ की तब्दीली करोड़ो में जब होती है तब धर्मी,विधर्मी, सभी सर्वधर्मसमभाव का परिचय देतें हैं। 

अभी तो सिर्फ मंदिर बनने की प्रक्रिया शुरू ही हुई है।भव्य दिव्य स्वरूप विकसित होने तक पता नहीं ऐसे कितने चमत्कार होने की सम्भवनाएँ हैं?मानव की भूख अमिट होने से मानव कभी कभी उसके उदर की क्षमता से अधिक खा लेता है।ऐसे स्थिति में अजीर्ण होना स्वाभाविक है।यदि ऐसी अजीर्ण की स्थिति का घूस विरोधी महकमें को पता चलता है।घूस विरोधी महकमें की कार्यवाही के दौरान अजीर्ण की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के हमाम की छत से शयनागार से,बिस्तर से,दीवार से,और बैंक के खातें और लॉकर से कनक,रजत और कागज की मुद्राओं का वमन होता है।हमारी कानून व्यवस्था में एक विशेष प्रावधान है।आरोपी तब तक आरोपी ही होता है, जब तक अपराध सिद्ध न हो जाए।आरोपी से अपराधी तक की प्रक्रिया बहुत जटिल है।इस पर गहराई से तो क्या सामान्य तौर पर भी विचार करना हर किसी के बस की बात नहीं है।दो मिनिट में क्या से क्या हो जाता है। इस बात को ध्यान में रखतें हुए चमत्कार को नमस्कार करते हुए इस चर्चा को यहीं पूर्ण विराम।
शशिकांत गुप्ते इंदौर

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