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गुलज़ार और रामभद्राचार्य को ज्ञानपीठ का मिलना!

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100+ पुस्तकें लिख चुके हैं ‘तुलसी पीठ’ के संस्थापक, 68 साल से लिख रहे हैं संपूर्ण सिंह कालरा

डॉ श्रीगोपाल नारसन

सुविख्यात फ़िल्मी हस्ती, गीतकार और शायर सम्पूर्ण सिंह गुलज़ार के साथ-साथ संस्कृत भाषा के विद्वान जगद्गुरु रामभद्राचार्य को 58वें ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चुना गया है।गुलज़ार को साहित्य अकादमी और दादा साहब फाल्के पुरस्कार पहले ही मिल चुके हैं।वहीं रामभद्राचार्य पद्म विभूषण से सम्मानित हैं। जाने माने गीतकार गुलज़ार को उर्दू भाषा में उनके अतुलनीय योगदान के लिए यह ज्ञानपीठ पुरस्कार से मिल रहा है। जबकि जगद्गुरु रामभद्राचार्य को संस्कृत भाषा में उनके योगदान के लिए चयनित किया गया है।

चित्रकूट में तुलसी पीठ के संस्थापक तथा प्रमुख रामभद्राचार्य एक आध्यात्मिक गुरु, शिक्षक और 100 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं।जबकि सम्पूर्ण सिंह गुलजार हिंदी सिनेमा में अपनी गीत रचना तथा उत्कर्ष फिल्में बनाने के लिए पहचाने जाते हैं।उनकी गिनती देश के नामचीन उर्दू शायरों में होती हैं। गुलज़ार को उर्दू भाषा में उनके योगदान के लिए सन 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार,सन 2013 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार, सन 2004 में पद्म भूषण और 5 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल चुके हैं।गुलज़ार की चर्चित कृतियों में चांद पुखराज का, रात पश्मिने की और पंद्रह पांच पचहत्तर आदि शामिल है।
गुलज़ार का असली नाम संपूर्ण सिंह कालरा है, उनका जन्म 18 अगस्त सन 1934 को अविभाजित भारत (अब पाकिस्तान)के झेलम जिले के गांव देना में हुआ था। उनके पिता का नाम मक्खन सिंह था, जो छोटा-मोटा कारोबार कर आजीविका चलाते थे। मां के निधन के बाद उन्होंने अधिकांश समय पिता के साथ ही बिताया था। उन्हें पढ़ाई में ज्यादा रुचि नहीं रही,वे 12वीं की परीक्षा में भी फेल हो गए थे, लेकिन साहित्य उनके लिए प्राण वायु की तरह रहा।सम्पूर्ण सिंह गुलज़ार के आदर्श रचनाकारों में सबसे पहले रवींद्रनाथ टैगोर और शरत चंद के नाम आते है

।वही अपने जन्म के 2 माह बाद ही अपनी आंखों की रोशनी गंवाने वाले जगद्गुरु रामभद्राचार्य एक अच्छे शिक्षक होने के साथ-साथ संस्कृत भाषा के विद्वान भी हैं। कई भाषाओं के जानकार जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने 100 से अधिक पुस्तकें लिखी है।उन्हें 22 भाषाओं का ज्ञाता माना जाता है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य को सन 2015 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा चुका है। रामभद्राचार्य द्वारा रचित पुस्तकों में श्रीभार्गवराघवीयम्, अष्टावक्र, आजादचन्द्रशेखरचरितम्, लघुरघुवरम्, सरयूलहरी, भृंगदूतम् और कुब्जापत्रम् शामिल हैं।
ज्ञानपीठ चयन समिति ने सन 2023 के लिए यह सम्मान देने की घोषणा की है।

सन 2022 का ज्ञानपीठ पुरस्कार गोवा के लेखक दामोदर मावजो को दिया गया था। दुनिया के मशहूर गीतकार बनने से पहले गुलजार एक मोटर ग़ैराज में मैकेनिक के तौर पर काम करते थे।गुलजार के जीवन में नया मोड़ तब आया जब उनकी मुलाकात उस समय के बड़े फ़िल्म निर्देशक बिमल रॉय से हुई। उन्होंने गुलजार को बंदिनी फिल्म में गाना लिखने का अवसर दिया। वह भी तब जब उनका फिल्म के लिए पहले से गाना लिख रहे गीतकार से मनमुटाव हो गया था। जिसके बाद उन्होंने गुलजार पर भरोसा किया गए और गुलज़ार का भाग्य चमक गया।गुलजार ने फ़िल्म निर्देशन की दुनिया में भी कदम रखा। उस पहली फिल्म में तो वह एक ही गाना पाए थे,क्योंकि रूठा गीतकार तब वापस लौट आया था। लेकिन यही एक गाना उन्हें गुलजार बनाने की पहली सीढ़ी जैसा था। इसी गाने के बाद गुलजार की प्रतिभा को बिमल रॉय ने पहचान लिया और उन्हें बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर जोड़ लिया। उनका पहला गाना था,मोरा गोरा अंग लई ले, मोहे श्याम रंग दइ दे।गुलजार ने आंधी और किरदार जैसी फिल्में निर्देशित की। उन्होंने टेलीविजन धारावाहिक मिर्जा गालिब का भी निर्देशन किया।उन्होंने सन 1973 में बॉलिवुड अभिनेत्री राखी से शादी की थी।

लेकिन शादी के एक साल बाद ही दोनों अलग हो गए। गुलजार की एक बेटी भी है जिसका नाम है मेघना गुलजार है।गुलजार को अभी तक लगभग 20 फिल्म फेयर अवॉर्ड मिल चुके हैं। इनमें से 11 अवॉर्ड उन्हें बेस्ट गीतकार के लिए मिले हैं। 4 अवॉर्ड उन्हें बेस्ट डायलॉग लिखने के लिए मिले हैं। उन्हें जय हो गीत के लिए ऑस्कर अवॉर्ड से भी नवाजा गया है।उन्हें रुड़की का गीतकार शैलेंद्र स्मृति सम्मान भी मिला है।इसी अवसर पर जब उनसे मुलाकात हुई तो उन्होंने जीवन के कई रहस्यों पर से पर्दा उठाया।बेहद शालीन व्यक्तित्व के धनी गुलज़ार आज भी अर्श के बजाए फर्श को देखकर चलते है।गुलजार ने जो दर्द बचपन में झेला उसे कभी भुला नहीं पाते हैं ।उन्होंने लिखा कि ‘आंखों को वीजा नहीं लगता, सपनों की सरहद होती नहीं,बंद आंखों से रोज मैं सरहद पार चला जाता हूं’।भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौर में गुलजार का परिवार भी भारत आ गया था।

उस समय11-12 साल के इस सम्पूर्ण सिंह नामक लड़के ने अपनी आंखों के सामने जिस तरह की हिंसा देखी, कत्लेआम देखा, घर-परिवार को उजड़ते देखा,इसी जख्म ने उनके अंदर गहरी जड़ें जमा ली थी,जो उनकी शायरी-कविता और किस्सों में उभर कर सामने आता है। बचपन से ही उन्हें कविता व शायरी लिखने का शौक था, उनके पिता का मानना था कि इससे गुजारा नहीं होगा।हर पिता की तरह ही उनके पिता को भी बेटे की जिंदगी को लेकर चिंता सताती थी।पिता के तानों से परेशान होकर उन्होंने अपने भाई के काम में हाथ बंटाने के लिए मुंबई आने का फैसला किया। वे मुंबई आए और भाई के साथ मोटर गैराज में काम करने लगे. लेकिन कविता-कहानी लिखने वाला नाजुक मन भला मोटर गैराज की मशीनी जिंदगी से कब तक तालमेल बैठाता।उनका रुझान फिल्मी दुनिया की तरफ होने लगा,जब रुझान हुआ तो शैलेंद्र जैसे गीतकारों से संपर्क में आए।बिमल रॉय के साथ उन्हें काम करने का मौका मिला। शैलेंद्र ने उन्हें सलाह दी कि बिमल रॉय की फिल्मों में गाने लिखो। कहते हैं कि जब गुलजार ने लिखना शुरू किया तो बिमल रॉय के एक सहयोगी थे देबू सेन, उन्होंने कहा कि सम्पूर्ण नाम कुछ जम नहीं रहा और इस प्रकार वे सम्पूर्ण से गुलजार हो गए।
(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार है)

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