वीरेंद्र भदौरिया
जगा रहे जिस शहर को,
वह तो अस्त व्यस्त है,
पर नित अभिनंदित होकर,
नेता जी मदमस्त हैं।
टूटी सड़कें चिढ़ा रही मुंह,
जगह-जगह कूड़े के ढेर,
धूल, धुंआ और धुंध को,
कहते हैं किस्मत का फेर।
इसी उजड़ते शहर के,
कुछ व्यापारी नेता,
स्वागत की बीमारी के,
खुद मुख्तार प्रणेता।
होने दो बर्बाद शहर को,
पर,पब्लिक को न चिढ़ाओ,
इन नाकारा नेताओं को,
इतना सर न चढ़ाओ।
किसी शहर में एमपी के,
सुना नहीं स्वागत का शोर,
स्वागत की बीमारी का,
ग्वालियर में क्यों इतना जोर?
ग्वालियर चंबल में इन्वेस्टर,
क्यों आने से घबराते हैं?
श्रीमंत जी इन प्रश्नों से,
बहुत अधिक घबराते हैं।
बिना काम तारीफ करें,
पहनाते ढेरों माला,
बात शहर की दुर्गति की हो,
लग जाता मुंह पर ताला।
चारों तरफ जाम लगा है,
कैसे जाएं बाड़ा ?
स्वागत की नौटंकी ने,
ग्वालियर का किया कबाड़ा।