दिव्यांसी मिश्रा
जादू और चमत्कार दिखाकर हर व्यक्ति बाबा कहलाये ज़रूरी नहीं कुछ लोग चमत्कार दिखाकर एंटरट्रेनर कहलाते हैं। सत्य को समझने के लिए बुद्धि होना जरूरी है।
राम ने अपने संम्पूर्ण जीवन काल में कभी भी स्वयं के भगवान होने का दंभ नहीं भरा, बल्कि उन्होंने अपने जीवनकाल में कभी स्वीकार नहीं किया कि वे स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं। राम ने कभी कोई चमत्कार दिखाकर किसी को प्रभावित करने का प्रयास नहीं किया।
श्रीकृष्ण ने भी अनावश्यक कभी अपनी चमत्कारी शक्तियों का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं किया। महान ज्ञानी ऋषियों जैसे परशुराम, वशिष्ठ, पुलस्त, अगस्त, दुर्वासा, और तमाम सप्तर्षि सहित किसी भी ऋषि ने कभी बिना कारण अपनी विद्या का प्रदर्शन नहीं किया।
सनातन कथा-कहानियों में हमने कभी नहीं पढ़ा कि किसी संत, , साधु महात्मा ने सार्वजनिक रूप से स्वयं की शक्तियों का प्रदर्शन किया हो। जनकल्याण की भावना से भी कभी किसी उच्च ज्ञानी संत ने अपने तप या तपस्या का चमत्कारी शक्ति कहकर प्रदर्शन करते हुए अपमान नहीं किया।
हमने कहानियों में पढ़ा कि जब भी किसी सुर, असुर, राजा , ऋषि या संत आदि ने स्वयं को भगवान घोषित करते हुए या भौतिकता की किसी भी अवस्था में कोई चमत्कार दिखाया तो उसे दंड दिया गया और उससे वो शक्तियां छीन ली गयीं।
वर्तमान में समाज आध्यात्म और कर्मकांड दोनों को ही लेकर भटका हुआ है क्योंकि वर्तमान में लोग अपनी धार्मिक पुस्तकों, उपनिषदों, ऋचाओं व मीमांसाओं को पढ़ने का समय नहीं निकाल पाते हैं।
लोगों के पास न पुस्तकें पढ़ने का समय है न ही रुचि है । इसलिए सो कॉल्ड बाबा लोग तमाम तरह से स्वयं का महिमामंडन करते हुए लोगों को तरह तरह से प्रभावित कर रहे हैं।
लोग मूर्ख बने समझ नहीं पा रहे हैं कि जो वास्तव में संत होगा , ज्ञानी होगा , परम तेजस्वी होगा वो अपने ज्ञान का प्रदर्शन करके पैसा नहीं कमाएगा , न ही भोतिकता का उपभोग करेगा। जो स्वयंसिद्ध होगा वो भीड़ जोड़कर बार-बार स्वयं को सिद्ध करने का प्रयास नहीं करेगा।
हमारा इतिहास गवाह है चमत्कार दिखाकर , पैसे कमाने वाले ठग , जादूगर या बाजीगर कहलाते थे । उनको कभी तेजस्वी और ज्ञानी कहकर धार्मिक स्थानों पर पूजा नहीं गया।
ये तो खैर पुरानी बातें हो चुकी हैं अभी हमारी नई पीढ़ी के कुछ बच्चे उसी बाजीगरी और चमत्कारी जादूगरी की परम्परा को आगे बढ़ते हुए लोगों को न सिर्फ प्रभावित कर रहे हैं , बल्कि पैसे भी कमा रहे हैं । और इसमें सबसे ईमानदार बात ये है कि ये स्वयं को भगवान का राजदूत नहीं कहते हैं।
गाली-गलौज करते हुए किसी को ललकारते नहीं, अपमानित नहीं करते हैं। ये भगवान का भय दिखाकर धार्मिकता का आडम्बर नहीं करते हैं। ये स्वयं आसन पर बैठ कर सीधा भगवान से बातें करने के दावे नहीं करते हैं। ये भी लोगों के मन की बात बताते हैं।
ये सब ट्रिक्स हैं और इनका बकायदा कोर्स और विज्ञान है। ये आदर करते हैं अपनी कला का और बिना किसी छल और दावे के , सम्मान के साथ पैसे कमाते हैं।
मेरे मन में इनकी कला के लिए भरपूर सम्मान है, क्योंकि ये धर्म के नाम पर चमत्कारों की दुकान खोलकर नहीं बैठे हैं। लोगों की धार्मिक भावनाओं को छल नहीं रहे हैं। आस्था के नाम पर भेदभाव नहीं फैला रहे हैं।
याद रखियेगा ईश्वर के निकट जाने के लिए सदमार्ग ही काफी है किसी बिचौलिए की आवश्यकता कतई नहीं है।
जो परम ज्ञानी औऱ तेजस्वी होगा वो अपनी आत्मा की सदगति के कार्यों में लिप्त होगा उसके पास स्वयं की महिमामंडन का समय ही नहीं होगा और उसकी बुद्धि में ज्ञान का प्रदर्शन तुच्छ और हेय होगा।
बरहाल आगे जिसकी जितनी बुद्धि वो उतना ही समझ पाएगा।