सुब्रतो चटर्जी
भुखमरी
बेरोजगारी
हत्याएं
बलात्कार
मंदी
भ्रष्टाचार
अशिक्षा
कुपोषण
बीमारी
हमारा आंतरिक मामला है
हमें किसी बाहरी हस्तक्षेप की
ज़रूरत नहीं है
हम
जब चाहें एक पूरे सूबे को
जेल बना दें
और किसी भी जेल को
अपराधियों के लिए स्वर्ग
और मासूम लोगों के लिए
नर्क बना दें
ये हमारा आंतरिक मामला है
हम
कीड़े पड़े एक पुराने नक़्शे को देश
और देश को
लफ़ंगों के नारों में ढूंढ सकते हैं
ख़ुदकुशी करते किसान और युवा
हमारे नागरिक हैं
इसलिए उनकी मौत
हमारा आंतरिक मामला है
सूखे हुए जलाशयों के किनारे
मरे हुए जानवर
पनपी सभ्यताओं के गले में
सुशोभित हार है
जेठ की धौंकनी सा हांफता समय
और कभी न ख़त्म होने वाली अमावस
हमारा आंतरिक मामला है
बाहरी हस्तक्षेप
नवजात के मुंह में पड़ने वाली
पोलियो के टीके की दो बूंद सी
कड़वी है
हम अपने आंतरिक मामलों को
खुद निबटाने को समर्थ हैं
लोकतंत्र के चारों स्तंभ
अब कुष्ठ रोगी को ढोते
ठेले पर सवार है
कुछ दिनों में
वे ढूंढ लेंगे
चूतड़ के नीचे फटे टायर की सीट
और हाथों में
लकड़ी के खंडाऊ
आख़िर एक
स्वनिर्भर क़ौम को
अपनी नियति की तरफ़
बढ़ने के लिए
इतने उपादान तो चाहिए
काली रातों के शाख़ों पर
उल्टे लटके
रक्तपिपासु चमगादड़ देखकर
जब कभी डरता है कोई बच्चा
मां कहती है
चुप हो जा
ख़ून का बनना
और चूसा जाना
हमारा आंतरिक मामला है !!